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96... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? विधि
आशीर्वाद मुद्रा दो प्रकार से होती है। एक आशीर्वाद दिखाते हुए एवं दूसरा आशीर्वाद देते हुए। यहाँ आशीर्वाद देने से अभिप्रेत है। हाथ की सभी अंगुलियों को बिल्कुल सीधी और एक-दूसरे से सटाते हुए रखें, अंगूठे को भी तर्जनी के निकट स्पर्शित करते हुए रखें। फिर दोनों हाथों को आशीर्वाद की भावना से किसी के मस्तक पर रखना आशीर्वाद मुद्रा है।
निर्देश- यह मुद्रा बिना किसी प्रयास के सहज रूप से बनती है। इस मुद्रा को खड़े-बैठे, चलते-फिरते सभी स्थितियों में कर सकते हैं। सुपरिणाम
इस मुद्रा के द्वारा निम्न ग्रन्थियों आदि पर दबाव पड़ने से अध्याय-1 के अनुसार अनेक लाभ होते हैं
चक्र- मणिपुर एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाड़ी संस्थान,पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, पाँव, गुर्दे एवं मेरूदण्ड। 25.1. सुरभि मुद्रा
सुरभि मुद्रा को धेनु मुद्रा भी कहा गया है। शब्दकोश में सुरभि का दूसरा नाम कामधेनु भी है। भारतीय संस्कृति में 'धेनु' गाय को कहते हैं। कामधेनु से तात्पर्य विशिष्ट प्रकार की गाय है। कामधेनु शब्द कल्पवृक्ष, कामकुंभ, चिंतामणि रत्न के समानार्थक है। जिस प्रकार कल्पवृक्ष मनोवांछित पूर्ण करते हैं उसी प्रकार कामधेनु मुद्रा (सुरभि मुद्रा) इच्छित वर प्रदान करती है। कामधेनु गाय की भाँति यह मुद्रा सभी प्रकार की सफलता हेतु सर्वोत्तम मुद्रा है।
सुरभि मुद्रा बनाते समय अंगुलियों का आकार गाय के थनों जैसा हो जाता है इसीलिए इसका नाम सुरभि मुद्रा है। गाय के थनों से दूध मिलता है और दूध से शरीर पुष्ट होता है वैसे ही इस मुद्रा से शरीर संतुलित और पुष्ट होता है। इस प्रकार सुरभि मुद्रा अपने नामानुरूप गुण के अनुसार बाह्य (शारीरिक-भौतिक) एवं आभ्यन्तर (आध्यात्मिक) समृद्धि की प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती है।