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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...103
शून्य सुरभि मुद्रा बाह्य प्रपंचों से मुक्त होकर अंतर्मुखी बनने का प्रयत्न प्रारम्भ होता है। अनहद आनंद की अनुभूति एवं अपूर्व शान्ति का विकास होता है। नियमित अभ्यास से साधक अपनी आत्मसंपदा से परिचित हो सकता है और गुण समृद्धि को सहस्रगुणा बढ़ा सकता है। सम्यक अभ्यासी योगी पुरुष ब्रह्मनाद का स्पष्ट अनुभव करता हुआ उसमें लीन रहता है।
• शारीरिक स्तर पर इस मुद्रा से कान सम्बन्धी किसी भी दर्द में राहत मिलती है। आकाश शून्य एवं शब्द गुण वाला है इसलिए इस मुद्रा से शब्दों में सामंजस्य बैठता है अर्थात वक्तृत्व कला का विकास होता है। • इस मुद्रा के अभ्यास से व्यक्ति के शरीर का शून्य बढ़ जाता है। वह विश्व के कोलाहल से दूर हो जाता है। साधक को अनेक प्रकार के नाद स्वत: ही सुनाई देने लगते हैं। कर्ण इन्द्रिय शून्य हो जाती हैं फलत: व्यक्ति बहरा हो सकता है। यह योगी पुरुषों के लिए चमत्कारी मुद्रा है।
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि यह मुद्रा आत्म साधना की दृष्टि से