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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...67 विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, रक्त संचरण तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ।
• अर्वाचीन प्रतियों के अनुसार हंसी मुद्रा का प्रयोग पौष्टिक कर्म में किया जाता है। इससे धन-धान्य आदि की वृद्धि होती है एवं परास्त व्यक्ति विजयी बनता है। यह केवल यज्ञीय मुद्रा है। इस मुद्रा में जप आदि करने का विधान नहीं है। मृगी, हंसी और सूकरी मुद्राओं से अग्नि में शाकल्य समर्पित की जाती है। वैसे यज्ञ में पूजन आदि के अवसर पर विभिन्न मुद्राओं का सहस्रों बार प्रदर्शन और प्रयोग करने की आज्ञा है। 11. मृगी मुद्रा
संस्कृत व्याकरण के अनुसार मृग् + क् प्रत्यय से मृग शब्द बनता है। मृग हरिण को कहते हैं। स्त्रीलिंग में मृगी शब्द बनता है। वह हरिणी का प्रतीक है। संस्कृत कोश में मृग: शब्द के अनेक अर्थ किये गये हैं किन्तु यहाँ ‘हरिण' अर्थ ही ग्राह्य है।
मृगी मुद्रा