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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...59
ध्यान मुद्रा भाव का क्रमश: अभिवर्द्धन होने लगता है। अत: वीतराग मुद्रा को ब्रह्म मुद्रा भी कहा जाता है।
यौगिक परम्परा में यह मुद्रा धर्मगुरुओं और आराधकों द्वारा की जाती है। यह शान्ति एवं स्थिरता की प्रतीक है। विधि
इस मुद्रा की तीन विधियाँ हैं
प्रथम विधि के अनुसार पद्मासन या सुखासन में बैठकर बायीं हथेली पर दाहिनी हथेली रखें, फिर दोनों अंगूठों को एक दूसरे से संयुक्त कर एवं दोनों हाथों को एक दूसरे से मिलाते हुए उन्हें नाभि के ठीक नीचे स्थापित करना ध्यान मुद्रा है।
द्वितीय विधि के अनुसार पद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठकर बायीं हथेली पर दाहिनी हथेली रखें। फिर दोनों अंगूठों को एक-दूसरे के ऊपर रखते हुए नाभि के पार्श्व में सुस्थिर करना ध्यान मुद्रा है।
तृतीय विधि के अनुसार दोनों हथेलियाँ आकाश की तरफ रहें, अंगूठा और तर्जनी का अग्रभाग परस्पर में स्पर्शित हों, शेष तीन अंगुलियों को