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52... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? की कमी है तो बाहर से दिखाई देने वाला स्थूल शरीर भी किसी काम का नहीं होता। सूर्य किरणों के प्रभाव से व्यक्ति ऊर्जावान बनता है। सूर्य मुद्रा से ऊर्जा का आकर्षण एवं संवर्द्धन होता रहता है। यहाँ सूर्य मुद्रा जगत व्यापी ऊर्जा को द्रुतगति से संग्रहित एवं आवृत्त शक्ति को अनावृत्त करने के उद्देश्य से की जाती है।
विधि
___ इस मुद्रा की मूल्यवत्ता को अक्षुण्ण बनाये रखने में उपयोगी पद्मासन या सिद्धासन में बैठे। फिर अनामिका अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के मूलभाग पर लगायें। फिर अंगूठे से अनामिका अंगुली पर हल्का सा दबाव देते हुए शेष अंगुलियों को सीधी रखते हुए सूर्य मुद्रा बनती है।
निर्देश- सूर्य मुद्रा का प्रयोग पूर्वोल्लिखित आसन में निरंतर आठ मिनट किया जा सकता है। सर्दी काल में 24 मिनट तक भी किया जा सकता है किन्तु ग्रीष्म काल में उष्णता बढ़ जाने के भय से एक साथ अधिक समय तक नहीं करना चाहिए। ___ अधिक कृशकाय वाले व्यक्ति को इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना
चाहिए।
सुपरिणाम
• शारीरिक संरचना के अनुसार शरीर शास्त्रियों ने अनामिका को पृथ्वी तत्त्व का प्रतीक माना है तथा अंगूठे को अग्नि तत्त्व का स्थान माना है जबकि सामुद्रिक वैज्ञानिकों ने अनामिका को सूर्य का स्थान कहा है। ऐसी स्थिति में अनामिका (सूर्य तत्त्व) को अंगूठे (अग्नि तत्त्व) के मूल में रखकर अंगूठे से उस पर दबाव दिया जाता है तब बहुत अधिक ऊर्जा निकलती है जिसकी तुलना सूर्य ऊर्जा से की जा सकती है। इस तरह अधिक शक्ति का संचय होने के साथ-साथ उस शक्ति का शीघ्र अनुभव होता है।
• इस मुद्रा से आलस्य, नींद, निष्क्रिय, मूर्दापन जैसे दुर्गुण दूर होकर सजगता, अप्रमत्तता, सक्रियता का आविर्भाव होता है। जो प्रमाद या आलस्य के कारण कुछ नहीं कर पाते हों उन्हें यह मुद्रा अवश्य करनी चाहिए।
• इस मुद्रा के माध्यम से सूर्यस्वर शुरू हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप अग्नि तत्त्व की वृद्धि होती है। इसी के साथ कफ सम्बन्धी रोग जैसे दमा, सर्दी, निमोनिया, टी.वी., प्लुरसी, सायनस आदि समस्याओं का अन्त होता है।