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आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...53
• इस मुद्रा का सर्वाधिक प्रभाव यह है कि मोटापा दूर होकर शरीर प्रमाण युक्त हो जाता है जिससे आधुनिक यान्त्रिक साधनों के मुहताज नहीं रहना पड़ता। किसी भी प्रकार के दर्द या मस्तिष्क में भारीपन को कम करने में भी उपयोगी है।
. इस मुद्रा के दीर्घकालिक अभ्यास से पर्याप्त ऊर्जा और उष्णता शरीर में परिव्याप्त रहती है जिसके फलस्वरूप पाचन शक्ति का विकास होता है और पुरानी कब्ज की शिकायत दूर होती है।
• उदर सम्बन्धी, सर्दी सम्बन्धी, मोटापा सम्बन्धी आदि कई रोगों का निवारण होने पर मानसिक तनाव भी सहजतया दूर हो जाते हैं।
• धार्मिक दृष्टि से भी अंगूठा एवं अनामिका का प्रयोग मूल्यवान है। अंगूठा एवं अनामिका से ही ललाट (ज्योति केन्द्र) पर तिलक किया जाता है। अनामिका और अंगुष्ठ दोनों प्रति समय तेजस्वी विद्युत प्रवाह करते हैं अत: यौगिक दृष्टि से इनके द्वारा विधि पूर्वक तिलक कर कोई भी स्त्री या पुरुष अपनी अदृश्य शक्ति को अन्य में पहुँचाकर उसकी शक्ति द्विगुणित कर सकता है। इसके पीछे मुख्य हेतु यह है कि अंगूठा एवं अनामिका से निसृत ऊर्जा प्रवाह द्वारा ज्योतिकेन्द्र (पीयूष ग्रन्थि) सक्रिय हो जाता है।
• आध्यात्मिक क्रिया-कलापों में गुरु के द्वारा शक्तिपात भी इसी अंगुली से किया जाता है। इस मुद्रा का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह संकुचित विचारधारा को विराट्ता प्रदान करती है तथा दैहिक पुष्टता के साथ-साथ सूक्ष्म तत्त्वों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करती है। शरीर में नवीन स्फूर्ति, आनन्द का उद्भव और रोम-रोम में ओज का संचार इस मुद्रा प्रयोग के निश्चित फल है।
• भौगोलिक दृष्टि से अंगूठा अग्नि तत्त्व का तथा अनामिका पृथ्वी तत्त्व का विकिरण करते हैं। पृथ्वी ऊर्जा से प्रभावित होती है एवं अग्नि तत्त्व को आत्मसात कर लेती है। अग्नि तत्त्व में संप्रेषण क्षमता है जबकि पृथ्वी तत्त्व संग्राहक है। जहाँ संप्रेषण एवं संग्रहण उभय शक्तियों का संयोजन होता है वहाँ असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं।
• यह मुद्रा शरीररस्थ सप्त चक्रों आदि के सुप्रभावों को उत्पन्न करती है
चक्र- विशुद्धि, आज्ञा एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- वायु, आकाश एवं अग्नि तत्त्व ग्रन्थि- थायरॉइड, पैराथायरॉइड, पीयूष ग्रंथि, एड्रिनल, पैन्क्रियाज