Book Title: Acharang Sutra Saransh
Author(s): Agam Navneet Prakashan Samiti
Publisher: Agam Navneet Prakashan Samiti

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Page 4
________________ प्रथम अध्ययन का सारांश:प्रथम उद्देशक: (1) पूर्व भव का स्मरण और आगे के भव की जानकारी तथा प्रात्म स्वरूप का ज्ञान अधिकांश जीवों में नहीं होता हैं। विशिष्ट ज्ञान होने पर या विशिष्ट ज्ञानी के माध्यम से किसी-किसी को उन अवस्थाओं का ज्ञान हो सकता है। (2) प्रात्म स्वरूप का ज्ञाता ही लोक स्वरूप, कर्म स्वरूप, और क्रियाओं के स्वरूप का ज्ञाता होता है। (3) क्रियाएं तीन करण, तीन योग और तीन काल के संयोग से 27 प्रकार की कही गई है। (4) कर्म बन्ध की कारण भूत क्रियाओं को जीव इन कारणों से करते हैं-१. जीवन निर्वाह करने के लिए, 2. यशकोति, पूजा, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान के लिए, 3. आई हुई आपत्तिदुःख या रोग का निवारण करने के लिए। (5) कई जीव मोक्ष प्राप्ति के लिए अर्थात् धर्म हेतु भी कर्म बन्ध की क्रियाएं करते हैं। (6) इन क्रियाओं का त्यागी ही वास्तव में मुनि है। उद्देशक 2 से 7 तकः__इन छः उद्देशकों में क्रमशः पृथ्वीकाय आदि छः कायों का अस्तित्व एवं उनकी विराधना का स्वरूप और विराधना के त्याग की प्रतिज्ञा का कथन किया गया है। कुछ विशेष विषय इस प्रकार है (1) सांसारिक प्राणी उपरोक्त कारणों से छ काय जीवों की प्रारम्भ जनक क्रियाएं करते हैं। वे सभी प्रारम्भ जनक क्रियाएं उनके अहितकर और प्रबोधि रूप फलदायक होती है अर्थात्

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