Book Title: Abhinav Vikruti Vigyan Author(s): Raghuveerprasad Trivedi Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकथन प्रस्तोता - डॉ० प्राणजीवन माणेकलाल मेहता एम. डी., एम. एस., एफ. सी. पी. एस्., एफ. आई. सी. एस्. डाइरेक्टर सैण्ट्रल इन्स्टीच्यूट आफ रिसर्च इन इण्डाइजीनस सिस्टम्स आफ मैडीसिन - जामनगर । आयुर्वेदीय शिक्षा संस्थाओं के पूर्ण विकास के लिए भारतीय स्वातन्त्र्य ने अतीव अनुकूल वातावरण प्रदान किया है । इस अवसर ने अभीप्सित लक्ष्यपूर्ति के निमित्त दो समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं । इन दो -समस्याओं में से एक उच्चकोटि के अध्यापकों की प्राप्ति तथा दूसरी उत्कृष्ट पाठ्यग्रन्थों की रचना है । पाठ्यग्रन्थों की समस्या के समाधान के दो दृष्टिकोण हो सकते हैं । उनमें प्रथम दृष्टिकोण आयुर्वेदीय विषयों पर उच्चकोटि के साधिकारिक पाठ्यग्रन्थ का निर्माण करना है। प्राचीन आयुर्वेदीय ग्रन्थों की रचना विश्वकोश जैसी है जब कि आधुनिक प्रवृत्ति विषयानुसार अध्यापन को महत्त्व देती है । अतः एक अभिनव और व्यापक ऐसा सङ्कलन अपेक्षित है जो उस विषय पर जिसके लिए वह लिखा गया है पूर्ण प्रकाश डालता हो । द्वितीय दृष्टिकोण विद्यमान आधुनिक चिकित्सा वाङ्मय का अनुवाद करना है ताकि वह [ तुलनात्मक अध्ययन निमित्त निर्देशनार्थ आयुर्वेदीय विचारकों को उपलब्ध हो सके । इस कार्य में बहुत बड़ी कठिनाई उपस्थित हो जाती है क्योंकि एक उच्चकोटि के ऐसे शब्दकोश का इस समय नितान्त अभाव है जो पाश्चात्य शब्दों के द्वारा व्यक्त होने वाले भावों का पूरा-पूरा ज्ञान दे सके तथा अर्थ बतला सके। उनके वास्तविक अर्थों में बहुत सम्भ्रम पहले से ही उपस्थित है। और जो आकस्मिक यत्न इस सम्बन्ध में किए जाते हैं वे और भी सन्देह बढ़ा देते हैं । प्रत्येक आधुनिक विचार और विषय प्राचीनकाल में यथावत् थे यह प्रमाणित करने की कुछ व्यक्तियों की तीव्र लालसा भरी उमंग ने अनुवाद को इतना बेढंगा बना दिया है तथा अर्थ का इतना अनर्थं किया है कि उनके द्वारा फैलाए गए भ्रामक अर्थों का प्रभाव हटाने के लिए अतिरिक्त समय अपेक्षित है। यह वस्तुस्थिति है । पाठ्यग्रन्थों की इतनी शीघ्र मांग है कि हम अनिश्चित भविष्य तक प्रतीक्षा करते हुए नहीं रह सकते । इस कारण समय की यह एक पुकार है कि आयुर्वेद के विद्वान् मिलकर पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ समूह्यकर्म के रूप में इस कार्य को उठावें और उसका उत्तरदायित्व पूर्णगम्भीरता तथा त्याग की भावना से ओत प्रोत होकर ग्रहण करें। इसमें For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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