Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 7
________________ आत्म-शान्ति का स्रोत : सामायिक सामायिक है - समत्व में अवस्थिति । समत्व से अभिप्राय है, चित्त की उस अवस्था का, जिसमें राग-द्वेष, ईर्ष्या-द्रोह आदि और विषय तथा विकारी वृत्तियों को उद्वेलित / उत्तेजित करने वाले भावों का अभाव हो । बड़ा चंचल है यह मन । साम्य स्थिति में स्थिर रहता ही नहीं । कभी राग की रागिनी में लिप्त हो जाता है तो दूसरे ही क्षण द्वेष के दावानल में दहकने लगता है; कभी क्रोधभरी फुंकारें मारता है तो कभी मान के हाथी पर सवार हो जाता है, कभी ईर्ष्या सर्पिणी के डंक से आहत हो जाता है तो कभी घृणा और नफरत की गंदगी से सड़ने लगता है । इस चंचल मन को स्थिर करना, साम्यावस्था में लाना और समत्व की भावना (५)Page Navigation
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