Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 50
________________ विश्वास रहता है तब तक वह सम्यक्त्व अथवा सम्यग्दर्शन है; लेकिन जैसे ही सम्यक्त्व के साथ समत्व का सम्मिलन होता है, राग-द्वेष आदि भावों का विसर्जन करके व्यक्ति साम्यभाव में अवस्थित होता है, मधुर कोमल भावों में स्थित होता है, आत्मस्थ होता है, आत्मभाव में रमण करता हैं, मनुष्य की उस समय की आत्मिक वृत्ति दर्शन अथवा सम्यक्त्व सामायिक कहलाती है । सम्यक्त्व–सम्यग्दर्शन और दर्शन सामायिक में अन्तर इस बात का है कि सम्यग्दर्शन, यदि वह क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन हो तो ६६ सागरोपम तक रह सकता है । इस कालमान में राग-द्वेष-कषाय आदि शुभ-अशुभ वृत्तियों में भी उस व्यक्ति की प्रवृत्ति हो सकती है; (४८)

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