Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 64
________________ यह अनुभव साधक को अलौकिक होता है, उसे अनुपम रस का रसास्वादन होता है, वह ऐसे अनिर्वचनीय आनन्द में सराबोर हो जाता है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता । । गूँगे केरी शर्करा, खाय-खाय मुस्काय -यह स्थिति हो जाती है । यही सामायिक साधना का ध्येय है, उद्देश्य है, लक्ष्य है और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साधक सामायिक की साधना करता है । इस साधना का व्यावहारिक परिणाम यह होता है कि साधक अवसाद, चिन्ता, तनाव, आशंका, कुशंकाओं से मुक्त हो जाता है, वह वर्तमान क्षण में जीना सीख जाता है । उसके जीवन में प्रमाद, आलस्य आदि की मात्रा न्यूनतम हो जाती है । सावधानी, (६२)

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