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यह अनुभव साधक को अलौकिक होता है, उसे अनुपम रस का रसास्वादन होता है, वह ऐसे अनिर्वचनीय आनन्द में सराबोर हो जाता है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता । । गूँगे केरी शर्करा, खाय-खाय मुस्काय -यह स्थिति हो जाती है ।
यही सामायिक साधना का ध्येय है, उद्देश्य है, लक्ष्य है और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साधक सामायिक की साधना करता है ।
इस साधना का व्यावहारिक परिणाम यह होता है कि साधक अवसाद, चिन्ता, तनाव, आशंका, कुशंकाओं से मुक्त हो जाता है, वह वर्तमान क्षण में जीना सीख जाता है । उसके जीवन में प्रमाद, आलस्य आदि की मात्रा न्यूनतम हो जाती है । सावधानी,
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