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में स्फूर्ति का संचार होता है । हताशा, उदासी की स्थिति समाप्त होती है । शरीर की शिथिलता समाप्त होती है, बुद्धि सूक्ष्मग्राहिणी बनती है, उसमें निर्मलता आती है।
सबसे बड़ा आध्यात्मिक लाभ यह होता है कि उसे आत्म-स्वरूप का स्पष्ट आभास होता है । इसे ही आत्म-साक्षात्कार कहा गया है।
ज्ञान से जिस आत्मा के स्वरूप को जाना था, ज्ञान-सामायिक में जिन आत्मगुणों का चिन्तन किया था; दर्शन से जिस आत्मस्वरूप की श्रद्धा की थी, दर्शन-सामायिक में जिस आत्मभाव में साधक ने अवस्थिति की थी; चारित्र सामायिक में उसकी पूर्णता होती है-आत्म-साक्षात्कार के रूप में स्वसंवेदन के रूप में।
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