Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 56
________________ ( ४८ मिनट) निर्धारित की गई है । अपनी योग्यता, क्षमता और शक्ति के अनुसार वह इससे भी अधिक काल तक सामायिक की साधना कर सकता है । एक मुहूर्त काल ही क्यों ? 1 वस्तुतः चारित्र सामायिक का एक ध्येय है - वृत्ति परिवर्तन । अब तक जो वृत्तियाँ बहिर्मुखी थीं, वे अन्तर्मुखी बनें । व्यक्ति : जो अब तक रूप, रस, गन्ध आदि विषयों में सुख मान रहा था; उसे अपने अन्तर में अधिक सुख की अनुभूति हो तभी तो वह अन्तर्मुखी बनेगा । जब अन्तर्जगत में उसे बाह्य उपलब्धियों की अपेक्षा अधिक ओज-तेज- स्फूर्ति की उपलब्धि होगी तभी तो वह सामायिक साधना में सुख का अनुभव कर सकेगा । उसे लगेगा कि कुछ उपलब्धि हुई, कोई अलौकिक अनुभव हुआ, (५४)

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