Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 55
________________ आत्मस्थ होते है ; आत्मा के दर्शन-ज्ञान-चारित्र आदि गुणों का चिन्तन-मनन-निदिध्यासन करते हैं, चित्त-वृत्तियों को साम्यावस्था में रखते हैं, तब वे सर्वविरति सामायिक में लीन होते (४) देशविरतिसामायिक-देश-विरति का अभिप्राय है-आंशिक रूप से व्रत ग्रहण करना । श्रावक अणुव्रतों, गुणवतों, शिक्षाव्रतों के रूप में व्रत ग्रहण करता है । इनमें से अणुव्रत और गुणव्रत तो वह जीवन भर के लिए ग्रहण करता है और शिक्षाव्रत काल की मर्यादा के साथ । श्रावक का सामायिक व्रत भी काल की मर्यादा को लिए हुए होता है; क्योंकि इसकी गणना शिक्षाव्रतों में की गई है । श्रावक के लिए यह काल मर्यादा कम से कम एक मुहूर्त (५३).

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