Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 51
________________ फिर भी सम्यक्त्व की विराधना नहीं होती। जबकि सम्यक्त्व सामायिक में चित्त की साम्यावस्था अनिवार्य है; यदि मन विषम स्थिति में प्रवर्तित हो गया तो सामायिक की भी अवस्थिति नहीं रह पाती। यही कारण है कि उपयोग की अपेक्षा सामायिक की निरन्तरता एक अन्तर्मुहूर्त से कुछ न्यून काल मानी गई है। (२) ज्ञानसामायिक-ज्ञान बहुत विशद और व्यापक है । इसके अनेक भेद भी हैंलौकिक, पारलौकिक, व्यावहारिक, अंकगणितीय, लिपिसंबंधी, भूगोल, खगोल, नक्षत्र सम्बन्धी, भौतिकी-ज्ञान, रसायनज्ञान आदि अनेक प्रकार हैं ज्ञान के । लेकिन ज्ञानसामायिक के सन्दर्भ में ज्ञान का अभिप्राय सम्यक्ज्ञान है ।। और सम्यक्ज्ञान है, वस्तुतत्व का यथार्थ (४९)

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