Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 17
________________ वह अपनी जीवन-नौका को चलाता है और गरजते-लरजते, उछाले मारते अनेक हिंसक क्रूर घड़ियालों से भरे सागर को पार कर जाता है। सुख-दुःख में तितिक्षा तितिक्षा का अभिप्राय है-सहिष्णुता, सहनशीलता । कष्ट और दुःखों के क्षणों में तितिक्षा भाव बनाये रखना, बड़े ही धैर्य और संयम का काम है । धैर्यशाली व्यक्ति ही ऐसे क्षणों में सफल हो पाते हैं; अधिकांश व्यक्ति तो विचलित हो जाते हैं । दीर्घ-साधना और धैर्य से सधती हैतितिक्षा । इसके लिए लम्बा अभ्यास आवश्यक है । तितिक्षा के लिए दृढ़ मनोबल जरूरी होता है । मनोबल जितना दृढ़ होगा, तितिक्षा भी उतनी ही उच्चकोटि की होगी । तितिक्षा जीवन-व्यवहार में आवश्यक है। (१५)

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