Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 45
________________ (१) साम-साम का अभिप्राय है सभी प्राणियों के प्रति मैत्री भाव रूप समता रखना । मैत्री, अहिंसा, करुणा, अभय, मृदुता, क्षमा आदि रूप परिणाम अथवा भाव जब आत्मा में स्थान पाते हैं तो आत्मा में निर्मलता एवं शुद्धि विकसित होती है । इसका परिणाम यह होता है कि साधक को अपूर्व मधुरता का अनुभव होता है । इसी कारण इस सामायिक को मधुर परिणामरूप माना गया है। अर्थात् सामायिक का प्रथम रूप हैमानसिक मृदुता और मधुरता । भावों का परिवर्तन और परिष्करण करना-सामायिक है। वस्तुतः द्वेष और उसके परिवारी क्रोध, मान, ईर्ष्या आदि कटु परिणाम वाले, कटु स्वभावी और कटु रस वाले हैं । इन भावों (४३)

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