Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 46
________________ का अभाव होने से तथा मैत्री, अभय, मृदुता आदि कोमल परिणामों के उत्कर्ष के प्रभावस्वरूप आत्म-भावों में माधुर्य का समावेश होता है और उसी माधुर्य भाव का रसास्वाद साधक को आता है। . (२) सम-सामायिक का यह भेद समता से सीधा सम्बन्धित है । इसे तुल्य परिणाम रूप कहा गया है । तुल्य का अभिप्राय है राग-द्वेष-हीनता । सकारात्मक रूप में मध्यस्थता अथवा तटस्थ रूप आत्म प्रवृत्ति सम सामायिक है । ऐसा साधक राग-द्वेष, क्रोध आदि के प्रसंगों पर भी समत्व बनाये रखता है। मध्यस्थता का अभिप्राय अपकारी और विपरीत वृत्ति वाले लोगों की भी कल्याण कामना करना है । पक्ष-विपक्ष के बीच स्व-अक्ष-अर्थात् अपने केन्द्र में रहना । (४४)

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