Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 35
________________ छिन्न-भिन्न कर देती है, तनावों, चिन्ताओं के सागर के मध्य एक ऐसा टापू है, जहाँ तक उद्विग्नताओं और निराशाओं की तूफानी लहरें नहीं पहुँच पातीं और मानव मस्तिष्क स्थिर रहता है, शांति का अनुभव करता है । गीता का निष्काम कर्मयोग चिन्ताओं, तनावों से मुक्ति के लिए गीता ने एक मार्ग प्रस्तुत किया - निष्काम कर्मयोग । गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं D कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेर्तुभू मतिसंगोऽस्त्वकर्मणि ।। , - गीता २/४७ - अर्थात् - हे अर्जुन ! कर्म करने में तेरा अधिकार है, फल प्राप्ति में नहीं । अमुक कर्म का अमुक फल मिले ऐसी इच्छा अपने (३३)

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