Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 18
________________ सुख क्या है ? मन के अनुकूल अनुभूति और दुख है वह अनुभूति जो चित्त के प्रतिकूल होती है । मन को अच्छी नहीं लगती अथवा मन-मस्तिष्क में-हृदय में वितृष्णा का, घृणा का भाव उदय होता है । मनुष्य इस दुःखमय अनुभूति को दूर हटाना चाहता है अथवा स्वयं उससे दूर होने का प्रयत्न करता है। लेकिन सभी स्थितियों में उसके प्रयास सफल नहीं हो पाते तब उसकी दुःखानुभूति अन्तर की पीड़ा के रूप में उभार पाने लगती है । ऐसी पीड़ा की स्थिति में मन-मस्तिष्क क्षुभित होने लगते हैं और अधिकांशतया वे दुःखमुक्ति के प्रयास जो ऐसी मानसिक स्थिति में किये जाते हैं, उनकी सफलता और भी अधिक संदिग्ध हो जाती है । इस पीड़ामय स्थिति से उबरने का

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