Book Title: Aatmshakti Ka Stroat Samayik
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 11
________________ उलझनें उसके मन में जलन पैदा कर रहे हैं । चिन्ताओं की दाह या ज्वाला सी लगी है उसके भीतर । क्रोध, द्वेष, भय और लालच की चिनगारियाँ सी चुभ रही हैं उसके मन में । कहीं ठंडी हवा में बैठे, कूलर के सामने बैठे या वातानुकूलित कमरे में बैठे-परन्तु उसे तो क्षणभर भी चैन नहीं है । चैन कहाँ से, कैसे मिलेगी ? जब भीतर में आग लगी है तो बाहरी ठंडक क्या लाभ करेगी ? सामायिक-कुशल अनुभवी वैद्य की वह चिकित्सा है जो उसके भीतर की ज्वाला को शान्त करती हैं, मन की आग को बुझाकर उसे शान्ति और शीतलता का अनुभव कराती है। .. चूल्हे पर रखा बर्तन का पानी तब तक उबलता ही रहेगा, जब तक नीचे आग जल रही है, इसी प्रकार जब तक मानसिक

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