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Ghblish Ibollebic 1%
BEIसाहेन, लापनगर. ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨
300४८४१
जन की लायनरी प्रधानाला २८
भी ललितप्रभसूरीश्वरः
पाटण चैत्य-परिपाटी.
प्रकाश श्रीहंसविजयनी फ्री लायोरी सेक्रेटरी
अमदावाद
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શાંતમૂત્તિ મુનિરાજ શ્રી હંસવિજયજી મહારાજ.
જન્મ:-વડોદરા. મુનિપદ –અંબાલા (પંજાબ) સં. ૧૯૧૪ અશાડ વદી ૩૦ સ. ૧૯૩૫ માહ વદી ૧૧.
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श्रीहसविजयजी जैन फ्री लायब्रेरी ग्रंथमाला नं. २८
पाटण चैत्य-परिपाटी.
संपादक
मुनिराज श्रीकल्याणविजयजी.
-ane
प्रकाशकसेक्रेटरी जेशंगभाइ छोटालाल सुतरीआ. श्रीहंसविजयजी जैन फ्री लायब्ररी लुणसावाडा मोटी पोळ-अमदावाद
आवृत्ति पहेली] वी. सं. २४५२ [आ. सं. ३० ।।
प्रत २०००
वि. सं. १९८२
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धी सूर्यप्रकाश प्रीन्टींग प्रेस टंकशाळ - अमदावाद
पटेल मुळनंदभाई त्रीकमलाले छाणी.
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=
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१२,१३
नंबर. पुस्तकनुं नाम.
कीमत. नीतिदर्पण
०-४-० २,४,७,२६ प्राणीपोकार
भेट हंसविनोद
०-१२-० स्नात्रपूजा
०-०-६ नवतत्त्व संक्षिप्तसार
०-२-० नर्मदासुंदरी कथा
भेट शोलवतो कथा १२,१७,२५ तिथि तप माणिक्यमाळा गहुंली संग्रह
०-३-० २४,२१ श्रीनेमिनाथनी १०८ प्रकारीपूजा ०-२-०
विविधपूजा संग्रह गिरनार गल्प
भेट हीरप्रश्न अष्टापद पूजा शुकराज कथा (सं.) धर्मदत्त कथा , धर्मविधि सिंदूरप्रकर " चैत्य परिपाटी यात्रा ०-१-० पाटण चैत्य परिपाटी ०-६-० हीरप्रश्नावली
०-५-० देशाटन प्रश्नोत्तर पुष्पमाला
०-१४-० प्राप्तिस्थानश्रीहंसविजयजी जैन फ्री लायब्रेरी.
लुणसावाडा मोटी पोळ-अमदावाद.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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किंचिद् वक्तव्य.
ACCAN
सुज्ञ वाचक बंधुओ!
प्राचीन गूजराती भाषानुं परिशीलन करनार साहित्यप्रेमी इतिहासगवेषी सजनोने परम आनंद थशे के २७ नक्षबोनी मालासमान अथवा साधुओना २७ गुणो जेवी २७ ग्रंथपुष्पोनी माला समर्पण करू पछी आजे अम्हे 'पाटण चैत्यपरिपाटी' नामर्नु २८ मुं ग्रंथपुष्प आपना कर-कमलमा सादर मूकवा शक्तिमान् थया छीए. ___ गूरातनी प्राचीन राजधानी अणहिल्लवाड पाटणमा रहेलां विक्रमना १७-१८मा सैकानां जिनचैत्यो-मंदिरोनी परिस्थितिनो परिचय करावनार आ 'पाटण चैत्य परिपाटि'ने अम्हे तेनी प्राचीन भाषामां विकृति कर्या विना प्रकाशित करवा बनतुं लक्ष्य आप्यु छे. छतां आ पुस्तकमां आपेली बे परिपाटियोमांथी वि.सं. १६४८मां पूर्णिमागच्छीय ललितप्रभसूरिए रचेली परिपाटिनी प्राचीनप्रति जेवी परिशिष्टमां मूकेली (वि.
१ ग्रंथोनुं लिस्ट प्रथम पेजमा आप्यु छ; लायब्रेरीना परिचय माटे सं. १९६६ थी सं. १९७५ सुधीनो रिपोर्ट वांचो.
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सं. १७२९मां तपागच्छीय हर्षविजयजी रचित) परिपाटिनी प्राचीन शुद्धप्रति न मळवाथी ते अंशमां तेम बनी शक्यु नथी एम अम्हारे आ स्थळे खिन्न अंत:करणे जणाक्वु जोइए. वि. सं. १९५९मा प्रवर्तकजी श्री कांतिविजयजी महाराजनी प्रेरणाथी पं. हीरालाले रचेली पाटणनां वर्तमान जिनालयोने सूचवती सं. जिनालयस्तुतिने परिशिष्टमां मूकी वर्तमान जिनमन्दिरोनुं सूचन करवा अम्हे बनतो प्रयास कर्यों छे.
साक्षररत्न मुनिराज श्रीकल्याणविजयजी महाराजे अतिपरिश्रम लइ विचक्षणताथी गवेषणापूर्वक लखेल प्रस्तावना अने परिपाटिसारथी आ ग्रंथ विशेष विभूषित-अधिक उपयोगी थइ शक्यो छे, ए वाचको स्वयं समजी शके तेम छे. अत एव अम्हारे ए संबंधमां विशेष वक्तव्य प्रकट करवान अवशिष्ट रहेतुं नथी, किंतु अम्हारी कृतज्ञता दर्शाववा तेओश्रीनो अंतःकरणपूर्वक आभार मानवानुं अम्हे समुचित समजीए छीए. ____ आ ग्रंथना संशोधनकार्यमां पूज्य मुनिराज श्रीहंसविजयजी महाराजश्री तथा पंन्यासजी संपद् विजयजी महा. राजश्रीनी प्रेरणाथी मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराजे तथा मुनिराज श्रीशंभुविजयजी महाराजे तथा पं. लालचन्द्र भगवानदास गांधीए करेली सहायताथी अम्हे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अम्हारा कार्यमा सफल थया छीए - उपकृत थया छीए; ए प्रकट करवानी अम्हारी फरज विचारीए छीए.
अम्हारा आ ग्रंथप्रकाशन कार्यमां पाटणना झवेरी मणीलाल छगनलालनी धर्म परिन केसरबाई, सुरतना शा. अनोपचंद नगीनदास स्वनाम धन्य स्वर्गवासी लाला ठाकुरदासजी खानगाम डोगरां ( पंजाब ) वाले के सुपुत्र श्रीमान् लाला प्रभदयालजी दुगड लाहोर ( पंजाब ) वालेने पोतानी लक्ष्मीनो सद्व्यय करी अम्हने प्रोत्साहित करवा साथै अन्य धनाढ्याने अनुकरणीय कर्तव्यमार्ग दर्शाव्यो छे. तेमनो उपकार मानवानुं अम्हे आ स्थळे भूली शकता नथी.
आ ग्रंथमां मतिमंदताथी, प्रमादथी या दृष्टिदोषथी रही गयेली स्खलनाओ सज्जनो सुधारी वांचशे अने अम्हने सूचवा तस्दी लेशे तो पुनरावृत्ति - प्रसंगे साभार सुधारवा प्रयत्न थशे.
शासनदेवनी कृपाथी विशेष प्रगति करी साहित्यसेवापूर्वक अधिक शासन सेवा बजाववा अम्हे भाग्यशाली थइए एवी हार्दिक भव्य भावना प्रकट करी अत्र विरमीशुं.
वीरलं. २४५२
पार्श्वप्रभु - जन्मतिथि,
प्रकाशक
ऑ. से. 'श्रीहंसविजयजी जैन फ्री लायब्रेरी - अमदावाद.
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प्रस्तावना.
स्वभावथी ज भारतवर्षना प्राचीन विद्वानोर इतिहास लखवा तरफ थोडं लक्ष्य आपेलुं छे. अने जे कंह लखायु हतुं तेनो पण घणो खरो भाग राज्यविप्लवोना दुःसमयमां नाश पामी गयो छे, मात्र व्याख्यानिक साहित्यमा उपयोगी थतो केटलोक जैन ऐतिहासिक साहित्यनो अंश व्याख्यानरसिक जैन साधुओना प्रतापे बचा पाम्यो छे; पण तेमां इतिहास करतां उपदेशतत्त्वने मुख्य स्थान आपेलु होवाथो तेवा चरित्र प्रबन्धादि ग्रन्थो पैकीना घणो भाग औपदेशिक साहित्य ज गणो शकाय, मात्र केटलाक राता. ओ अने प्रबन्धो उपरांत शिलालेखो प्रशस्तिओ चैत्यपरिवाडीओ तथा तीर्थमालाओज आधुनिक दृष्टिए प्राचीन तिहासिक साहित्यमां गणवा योग्य छे. ऐतिहासिक साहित्यमा चैत्यपरिवाडोओन स्थान.
जो के चैत्यपरिवाडी वा तीर्थमालाओ तरफ घगा थोडा विद्वानोनुं लक्ष्य गयुं छे अने तिहासिक दृष्टिए तेनी खरी कीमत आंकनारा साक्षरो तो तेथी ये थोडी संख्यामां नीकलशे; एटलुं छतां पण इतिहासनी दृष्टिए चैत्यपरिवाडी ए घणुं कीमती साहित्य छे, एना उंडाणमां रहेला तात्कालिक धार्मिक इतिहासनो प्रकाश, धनी रुचि तथा प्रवृत्तिनुं दर्शन अने गृहस्थोनी समृद्ध दशानुं चित्र इत्यादि अनेक
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इतिहासना कीमती अंशो चैत्यपरिपाटिओना गर्भमांथो जन्मे छे के जेनी कीमत थाय तेम नथी.
चैत्यपरिवाडीओनो उत्पत्तिकाल. चैत्यपरिवाडीओ क्यारथी रवावा मांडी तेनो निश्चित निर्णय आपी शकाय तेम नथी. चैत्य परिवाडीओ, तीर्थमालाओ अ. थवा एवाज अर्यने जणावनारा रासाओ घणा जुना वखतथी लखाता आव्या छे एमां शक नथी, पण एवा भाषासाहित्यनी उत्पत्तिना प्रारंभकालनो निर्णय हजी अंधारामां छे, कारण के आ विषयमा आज पर्यन्त कोइ पण विद्वाने ऊहापोह तक कों नथी, छतां जैन साहित्य ना अबलोकनयी एटलुं तो निश्चित कही शकाय के जैनोमां चैत्य वा तीर्थयात्राओ करवानो अने तेनां वर्णनो लखवानो रीवाज घगो ज प्राचीन छे. तीर्थयात्राओ करवानो रिवाज विक्रमनी पूर्व चोथी सदीमा प्रचलित हतो एम इतिहास जणावे छे, ज्यारे तेनां वर्णनो लखवानी शरुआत पण विक्रमनी पहेली वा बीजी सदी पछीनी तो न ज होइ शके; ए विषयनो विशेष खुलासो नीचेन। विवेचनथी था शकशे
जैन साहित्यमा सर्वथी प्राचीन सूत्र आचारांगनी नियुक्तिमा तात्कालिक केटलांक जैन तीर्थोनी नोंध अने तेने नमस्कार करवामां आव्यो छे. निशीथ चूर्णिमां धर्मचक्र, १ “ अट्ठावय उज्जिते गयग्गपर य धम्मचके य । . पासरहावतानगं चमरुपायं च वन्दामि ॥"
.-" गजानपदे-दशार्ग कूटवर्तिनि । तथा तक्षशिलायो धर्म चक्रे तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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देवनिर्मित स्तूप,जीवितस्वामि प्रतिमा, कल्याणभूमि आदि तीर्थोनी नोध करवामां आवी छे.'
छेदसूत्रोना भाष्य अने टीकाकारो लखे छे के अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्व दिवसोमां सर्व जैन देहरासरोनी वंदना करवी जोइये, भले ते चैत्य संघर्नु होय के अमुक गच्छनी मालिकीनु होय तो पण तेनी यात्रा करवी, वखत पहोंचतो होय तो सर्व ठेकाणे संपूर्ण चैत्यवंदन-विधि करवी जोइये अने वखत न पहोंचतो होय तो अक अक स्तुति वा नम. स्कार ज करवो पण गामना सर्व चैत्योनी यात्रा करवी.२
व्यवहार मूचना भाष्य अने चूर्णिमां लख्युं छे के अहिच्छत्रायां पार्श्वनाथस्य धरगेन्द्रमहिमास्थाने ।”
-आचारांगनियुक्ति पत्र ४१८ । १ " उत्तरावहे धम्म वक, मयुराए देवणिम्मिओ थूभो, कोसलाए जियंतसामिपडिमा, तित्थंकराणं वा जम्मभूमिओ।
-निशीथं चूर्णि पत्र २४३-२ । २ निस्सकडमनिस्सकडे चेइए सबहिं थुई तिन्नि । वेलें व वेइआणि व नाउं इक्वेिक्किा वा वि ॥
-भाष्य ३ अट्ठमी-वउद्दसीसुं चेइय सव्वाणि साहुणो सम्वे ।
वन्देयव्या नियमा अवसेस-तिहीसु जहसत्तिं ॥ एएसु चेत्र अट्ठमीमादीसु चेइयाई साहुणो वा जे अण्णाए वसहीए ठिा ते न वंदंति मासलहु ।
-व्यवहारभाप्य अने चूर्णि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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आठम चौदश आदि पर्व-तिथिदिनोमां गामनां सर्व देहराओमा रहेली जिनप्रतिमाओ अने पोताना तथा बीजा उपाश्रयोमा रहेला सर्व साधुओने पर्यायलघु साधुओओ वंदन कर, जोइये, जो न करे तो ते साधु प्रायश्चित्तनो भागी थाय. ___ महानिशोथ सूत्रमांथी .पण चैत्य तीर्थ अने तीर्थोमां भराता मेलाओनी सूचना मले छे.' आ सर्व जोतां अटलं तो निश्चित छे के जैनोमां तीर्थयात्रा अने प्रतिमापूजानो रिवाज घणो ज जूनो पुराणो छ, तीर्थ तरीके प्रसिद्ध थयेल स्थानोर्मा भाविक जैनो घणा दूर दूरना देशो थकी संघो लेइ जता अने तीर्थाटन करी पो. तानी धार्मिक श्रद्धाने सफल करता, पोताना गाम नगरोनां चैत्योने ते हमेशां भेटता, चैत्यो अधिक वा समय आछो मलतां नगरनां सर्व चैत्योनी यात्रा नित्य न थती तो छेवटे आठम चउदश जेवा खास धार्मिक दिवसोमां तो पूर्वोक्त यात्रा अवश्य करता ज, कालान्तरे आ प्रवृत्तिमां पण मंदता न पेसो जाय अटला माटे श्रुतधर पूज्य आचार्यो नियम घडयो के आठम चउदशे तो सर्व चैत्योनो वंदना करवी ज, अने जो साधु के व्रती गृहस्थ आ नियम प्रमाणे न
१ अहन्नया गोयमा ते साहुणो तं आयरियं भगति जहा णं जइ भयवं तुमं आणावहि ता णं अम्हहिं तित्थयत्तं करि(र)या चंदप्पहसामियं वदि(द)या धम्मचकं गंतूणमागच्छामो ।
-महानिशीथ ५-४३५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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वर्तशे तो ते दंडनो भागी थशे. आ प्रमाणे नगर वा गामनां सर्व चैत्योनी यात्रा ते ' चेइअपरिवा. डोजत्ता' (चैत्य परिपाटियात्रा) कहेवाती. अने से प्रवृति विशेष प्रचलित थतां उतावलने लीधे । यात्रा' शब्द निकलो जइने 'चैत्यपरिपाटि' शब्द ज प्राथमिक मूल अर्थने जणावधामा रूढ थइ गयो. वखत जतां चैत्यपरिपाटी-चैत्यपरिवाडी-चैत्य प्रवाडी- वैत्रप्रवाडी इ । त्यादि अनेक प्रकारना 'चेइअपरिवाडीजत्ता' ना स्थाने संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश शब्दो रूढ थया जे आज पर्यन्त ते अर्थने जणाधी रह्या छे.
उपरना विवेचनधी थे वात स्पष्ट थइ के 'चैत्यपरि. वाडी' ओ नाम अक प्रकारनी यात्रानुं छे, अने उपचारथी तेवी यात्रानुं वर्णन के विवेचन करनार प्रबन्ध वा स्तवनो पण 'चैत्यपरिवाडी' ना नामथी ओलखावा लाग्यां के जे बनाव साहित्यमार्गमां एक स्वाभाविक घटना छे
तीर्थमाला अने चैत्यपरिवाडियोनो वास्तविक भेद. ___ यद्यपि तीर्थमाला वा तीर्थमालास्तवनो अने चैत्यपरिवाडी वा चैत्यपरिवाडी स्तवनोमां सामान्य रीते भेद नथी गणवामां आवतो तथापि तेनां नाम अने लक्षणो तपासतां ते बन्ने प्रकारनी कृतिनो वास्तविक भेद खुल्लो जगाइ आवे छे.
तीर्थमाला सवनोनुं लक्षण ए होय छे के पोते भेटेलां वा सांभळेलां के शाखोमां वर्णवेलां नामी नामी तीर्थीनां चैत्य वा प्रतिमाओनुं वर्णन, तेनो साचो वा कल्पित इति. हास तेनो महिमा अने ते संबंधी बीजी बाबतोनुं वर्णन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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करवा पूर्वक तेनी स्तुति वा प्रशंसा करवी. आचारांगन युक्ति अने निशीथचूर्णिमां थयेली तीर्थोनी नाँध ते आजकालनी तीर्थमालाओ अने तीर्थकल्पोनुं मूल बीजक सम जवुं जोइये. सिद्धसेन सूरिनुं सकलतीर्थ स्तोत्र', महेन्द्रसूरिनुं तीर्थमालास्तवन, २ जिनप्रभसूरिनी शाश्वताशश्वतचैत्यमाला, ३ विविधतीर्थकल्प४ विगेरे संस्कृत प्राकृत अप
3
१ आ संस्कृत स्तोत्र पाटणमां संघवीनी शेरीना ताडपत्रोना पुस्तक भंडारमां छे. एना कर्त्ता सिद्धसेन सूरि क्यारे थया तेनो निश्चय नथी, छतां संभव प्रमागे तेरमी सदीना पूर्वार्धमा थइ गयेला सिद्धसेन ज एना कती होवा जोइये.
२ आ प्राकृत स्तवन पण तेरमी सदीमां ज बनेलं संभवे छे. महेन्द्रसूरि नामना बे आवार्य थया छे - १ ला पूर्णतल्लगच्छीयः प्रसिद्ध आचार्य हेमचंद्रजीना शिष्य जे १२१४ मां विद्यमान हता. २ जा नाणकीयगच्छीय जे सं. १२२२ मां विद्यमान हता, अ स्तवनना कर्त्ता आ बेमांथी कया तेनो निश्चय थतो नथी.
३ आ चैत्यमाला अपभ्रंश भाषामा छे, एना कर्त्ता जिनप्रभसूरि जे १४ मी सदीमां थइ गया छे, जेमगे अनेक चरित्रो अने रासो अपभ्रंशमां लखेला छे, जेटली अपभ्रंशनी कविता पाटंगना भंडारोमा एमनी मळे छे, तेटली वीजा कोइ पग कविनी नथी मळती.
४ संस्कृत अने प्राकृतमां बनेला आ तीर्थकल्पो प्रसिद्ध छे. एना कर्त्ता जिनप्रभसूरि खरतरगच्छनी लघुशाखामां थइ तेमणे आ तीर्थकल्पसंग्रह विक्रमनी १४ मी सदीना बनाव्यो छे.
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गया छे. उत्तरार्धम
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भ्रंश अने लोकभाषामां लखायेला उपर्युक्त लक्षणवाला स्तवनोनी कोटिना अनेक प्रबन्धो आजे दृष्टिगोचर थाय छे.
चैत्यपरिपाटी स्तवनोनुं लक्षण ए थया करे छे के कोइ पण गाम के नगरनां यात्राना समयमा क्रमवार आवतां देहरातरोनां नाम, ते ते वासोनां नाम, तेमां रहेली जिनप्रतिमाओनी संख्या विगेरे जणाववा पूर्वक महिमा वर्णन करवू अने तेनी स्तुति करवी. विजयसेन. सूरिनो रेवंत गिरिरातो', हेमहंसगणिनी गिरिनारचैत्यपरिवाडी, सिद्धपुर बैत्य परिवाडी,३ नगागणिनी जा. लोरचैत्यपरिवाडी४ विगेरे संख्याबन्ध चैत्यपरिवाडिआ उपर जगावेल लक्षणवाली आजे विद्यमानता धरावे
१ आ रासो प्राचीन गूजराती भाषामा लखायेलो छे, एना कर्ती विजयसेनमूरि नागेन्द्रगच्छमां प्रसिद्ध मंत्री वस्तुपालना समयमां अर्थात् विक्रमनी तेरमी सदीना उत्तरार्धमा थइ गया छे. वस्तुपालना संघ साथे गिरनारनी यात्राये गया ते समये तेमगे आ रास बनाव्यो हतो.
२ हेमहंसगगि प्रसिद्ध आचार्य मुनिसुंदरमूरिना शिष्य हता, तेओ सोळमी सदीना प्रथम चरगमा विद्यमान हता, आरंभासध्धिवार्तिक, न्यायमञ्जूषा विगेरे अनेक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थो एमगे बनाव्या छे. आ चैत्यपरिवाडो तेमगे क्यारे बनावी ते जगाव्यु नथी, पग सोळमी सदीनी शरुआतमा ज बनावी होवानो संभव छे.
३ आ चैत्यपरिवाडीना कर्ता के समयनो पत्तो लाग्यो नथी, परिवाडी जूनी होवानो संभव छे.
४ आ चैत्यपरिवाडी सं. १६५१ ना भाद्रवा वदि ३ ने
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छ। प्रस्तुत 'पाटण वत्यपरिपाटी' पण ए ज बीजी कोटिनोनिबन्ध छे.
आटला विवेचन उपरथी समजायुं हशे के तीर्थ चैत्ययात्राओ अने नगर चैत्ययात्राओ करवानो रिवाज जैनोमां घणाज प्राचीन कालथी चाल्यो आवे छे. आरिवाजोनी प्राचीनता ओच्छामां आच्छी बे हजार वर्षनी होवी जोइये एम पूर्व सूचवेल शास्त्रवाक्योथी सिद्ध थाय छे, अने ए उपरथी तीर्थमालास्तवना अने चैत्यपरिपारीस्त वनो लखवानी रूढि पण घणी प्राचीन होवी जोइये ए वात सहेजे समजी श. काय तेवी छे; छतां पण एटलुं तो सखेद जणाप पडे छे के आ प्रवृत्तिनी प्राचीनताना प्रमाणमां तेना वर्णनग्रन्थो, ती. थमालास्तवनो अने चैत्यपरिपाटी स्तवनो तेटलां प्राचीन आजे मलतां नथी.
दिने जालोरमां बनी हती, एना का नगा वा नगर्षिगाण आचार्य श्रीहीरविजयमूरिना शिष्य कुशलवर्धनगगिना शिष्य हता.
१ स्व० आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजीए संपादन करीने भावनगरनी श्रीयशोविजय जैन ग्रन्थमाला द्वारा 'प्राचीन तीर्थमाला संग्रह' नो प्रथम भाग बहार पाड्यो छे. जेमां जुदा जुदा कविओनी करेली चैत्यपरिवाहिओ, तीर्थमालाओ अने तीर्थस्तवनी मळीने २५ प्रबन्धो छे. ए सिवाय पग संख्याबंध तीर्थमालाओ अने चैत्यपरिवाडीओ
जैन भंडारोमा अस्तित्व धरावे छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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पाटण.
प्रस्तुत परिवाडो जेना नाम साथे बंधायेली छे, ते पाटण नगरनो आ स्थले संक्षेपमा परिचय आपवो उपयोगी गणाशे. ___पाटण' ए गुजरातदेशनी राजधानी-हिन्दुस्थानना प्रा. चीन अने प्रसिद्ध शहेरोमांनुं एक छे, एतुं वास्तुस्थापन जैन मंत्रोथी थयुं हतुं, एनो वसावनार 'वनराज' नामनो चावडावंशनो एक बाहोश शूरवीर राजपुत्र हतो, ते नागे. न्द्रगच्छना जैन आचार्य शीलगुणसूरिनो परम भक्त जैन उपासक हतो'.
वनराज पोते, तेना राजकारभारियोनुं मंडल अने तेनी प्रजानो अधिक भाग जैनधर्मी होइ पाटण शहेर ए ते वखतमां गुजरातना जैनोना धार्मिक साम्राज्यनी राजधानी बनी
१ वनराजने बाल्यकालमा ज उक्त शीलगुगरिए आसरो दीधो हतो, तेथी कृतज्ञ प्रकृतिना वनराजे पाछळथी पोते राजा थतां जैनधर्मनी कीमती सेवा बजावी हती, एटलं ज नहि बलके पाटगमा नामी जैन मंदिर बनावरावी पोतानी कीर्तिने विशेष अमर करी हती. वनराजनुं बनावेलुं आ 'वनराजविहार' नामर्नु चैत्य सं. १३०१ मां विद्यमान हतुं ए वात नीचेना शिलालेख उपरथी जणाशेः
“ संवत् १३०१ वर्षे वैशाख शुदि ९ शुक्रे पूर्वमण्डलिवास्तव्य मोढज्ञातीय नागेन्द्रा.........सुत श्रे० जाल्हणपुत्रेग श्रे० राजकुाक्षShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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गयुं हतुं. जैनोमां चालता ते समयना सर्व गच्छ अने मतोनुं अस्तित्व पाटणमांजणाइ आवतुं हतु:धर्मवीर अने युद्धवीर जै. नोनी व्यवस्था अने आबादीथी पाटण एक वखत पूरी जाहो. जलाली भोगवतुं थयुं हतुं. विक्रम संवत् ८.२ ना वर्षमा पहेल प्रथम अणहिलबाड ' वा 'अणहिलपाटण' ए नामथी पाटण वस्युं अने दिवसे दिवसे उन्नति करतुं चावडावंशना राजाओनी राजधानी तरीके प्रसिद्ध थयं.
चावडा वंशना कुल ७ सात राजाओए । राज्य कर्या बाद पाटणनी राज्य लगाम चौलुक्य वंशना राजाओना हाथमां गई, आ वखते पण पाटग पूरी जाहोजलालीमा हतुं
समुद्भवेन ठ० आसाकेन संसारार............योपार्जितावत्तेन अस्मिन् महाराजश्रीवनराजविहारे निजकीर्तिवल्लीविस्तार.........विस्तारितः। तथा च ४० आसाकस्य मूत्तिरियं सुतठ० आरोसिंहेन कारिता प्रतिष्ठिता.........सम्बन्धे गच्छे पंचासरातीर्थे श्रीशीलगुणमूरिसंताने शिष्य श्री......देव वन्द्रमूरिभिः ॥ मंगलं महाश्रीः ॥
( पाटगमां पंचासरापार्श्वनाथना मंदिरमा रहेली 'वनराज 'नी मूर्ति पसिनी ठ० आसाकनी मूर्तिनो शिलालेख )
१ पाटगनी राजगादी उपर नीचेना आठ चावडावंशी राजाओ थया छे:
___१ वनराज २ योगराज ३ रत्नादित्य ४ वरिसिंह ५ क्षेमराज ६ चामुंडराज ७ राहड ८ सामंतसिंह । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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एटलुज नहिं पण पाटणना चौलुक्य राजाओए आसपासना देशो जीती पोतानी राजसत्तानो विशेष वधारो करवा मांड्यो. जे कुमारपाल सुधी चालु रह्यो कुमारपाल जे चुस्त जैनधर्मी हतो, तेणे पोते पण अनेक लडाइओ करी उत्तर मारवाड, कोंकण विगेरे अनेक देशोना राजाओने जीतीने गुजरातना महाराजाधिराज तरीके पोतानी सत्ता सर्वोत्कृष्ट बनावी हतो, परंतु गुजरातनी उन्नतिनी आ छेल्ली हद हती, ए पछीना गुजरातना राजाओए पोतानो सत्ता वधारी होय एम इतिहास जणावतो नथी. आ तो राज्यसत्तानी वात थइ पण गुजरातमा अने खास करीने पाटणमां जैनधर्मनी प्रबलता पण ओछी न हती, चावडावंशना तमाम राजाओ जैनधर्मना पालनारा नहिं तो उपासक तो अवश्य हता, मंत्रिमंडल अने बीजा राजकर्मचारियों पण प्रायः जैनो होइ प्रजानो अन्यधर्मी वर्ग पण जैनधर्मने पूज्य दृष्टिथी जोतो, आ स्थिति चौलुक्य पहेला भीम सुधी चालती रही, भीमना वखतमां तेना वीर दंडनायक विमल अने राजा वच्चे वैमनस्य उत्पन्न थतां पारणनी जैन प्रजाने कंइक धक्को पहोंच्यो होय तो बनवा • जोग छे. एम कहेवाय छे के दंडनायक विमलने विषे राजा भीमना मनमां कंइक विपरीत भाव उत्पन्न थयो, चतुर अने मानी विमलने राजाना मननी स्थितिनुं ज्ञान थतां दिलगीरी अने दयानुं पात्र न बनतां ते गुप्तपणे पाटणनो त्याग करी चाली निकल्यो, अने तेणे आबुना दक्षिण कटिभागमा वसेली चंद्रावती नगरीमा आवीने निवास कर्यो, चंद्रावतीनो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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प्रथमनो राजा' विमलना आगमनथी डरी जह भागी जतां विमल त्यांनी राजा थइने रह्यो. २
राजानी नाराजगीथी जैन समाजनो मान्य पुरुष विमल पाटण छोडीने चाल्यो गयो, ए वात जाहेर थतां पाटणनो
१ आ राजानुं नाम क्याइ जगाव्युं नथी, कोइ परमार वंशीय राजा हतो, धारनो धंधुक तो न होय ?
२ विमल चन्द्रावतीनो राजा थयानी हकीकत विमल प्रबन्धमा जणावेली छे.
३ कुमारपालना समकालीन हरिभद्रसूरि मन्त्रीश्वर पृथ्वीपालनी प्रार्थनाथी रचेल चन्द्रप्रभस्वामिचरित(प्रा.) नी प्रशस्तिमां जगावे छे के विमल दण्डनायक भीमदेव राजाना व वनथी सकल शत्रुना वैभवने ग्रहग करी प्रभुप्रसादथी प्राप्त थयेल वड्डावली ( चन्द्रावती ) विषयने भोगवतो हतो. जुओ ते उल्लेखः" सिरिभीमएव रज्जे नढो त्ति महामई पढमो ॥ बीओ उ सरयससहनिम्मलगुगरयगमांदरमुदारं । निययप्पहापअरियतरणी विमलो त्ति दंडवई ॥ अह भीमएवनरवइवयगेण गहीयसयलरिउविहवो । बड्डावल्लीविसयं स पहुवलद्धं ति भुजंतो ॥"
-(वि. सं. १२२३ मां लखायेली पाटगना संघवीना पाडाना जैनभंडारनी ताडपत्र प्रति). आ अभिप्रायने अनुसरता मलाधरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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जैन संघ राजा उपर भारे गुस्से थयो,एटलं ज नहिं,पण सेंकडो जैन कुटुंबो विमलनु अनुसरण करी पाटण छोडो चंद्रावतीमां जइने वस्यां.जो उपरनी हकीकत साचा इतिहासमांखपती होय तो कहेवू जोइये के पहेला भीमदेवना वखतमां पाटणनी जैन वसतिमां कंइक भंगाण पड्यु हशे ज, परंतु आ बनाव साचो होय तो पण तेनी विशेष स्थायी असर थइ जणाती नथी, कारण के ते पछीना चौलुक्य राजा कर्णदेव, सिद्धराज, कुमारपाल विगेरेना राज्यकालमां पण लगभग तमाम राज्य. कारभार जैन मंत्रिओना हाथमां ज हतो, एलुं ज नहिं पण सिद्धराज के जे शैवधर्मी हतो छतां जैनधर्म अने जैनध. मीओने घणु ज मान देनारो अने जैन विद्वानोने पूजनारो हतो. ए उपरथी समजाय छे के पाटणमां जैनधर्मनी.प्रवलता घणा लांबा काल सुधी टकी रही हती. कहेवाय छे के पक समये प्रसिद्ध आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिनु पाटणमा आगमन थयु त्यारे १८०० अढारसो कोरिध्वज शेठिआओ
राजशेखरसूरि वि. सं. १४०५मां रवेला प्रबन्धकोषमांवस्तुपालप्रबन्धमां-'प्राग्वाटवंशे श्रीविमलो दण्डनायकोऽभवत् । स चिरमर्बुदाधिपत्यमभुनक् गूर्जरेश्वरप्रसत्तेः' अर्थात् 'गूर्जरेश्वर (भीमदेव) नी प्रसन्नताथी विमले लांबा समय सूधी आबू उपर आधिपत्य भोगव्युं हतुं.' एम जणावे छे. ___ आ उल्लेख जोतां विमलने भीमदेव साथे वैमनस्य थवाना वृतान्त माटे सन्देह राखवो पो छे. -ला. भ. गांधी ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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तेमना नगरप्रवेश महोत्सबमां एकठा थया हता.' आ एकज दाखला उपरथी पाटणना जैनोनी संख्यानो अने तेमनो समृद्धि. नो ख्याल आवी जशे. कुमार पाल पछी पाटणनी राज्यगादीए आवेला अजयपालना वखतथी पाटणना जैनोनी अने साथे ज राज्यनी अवनतिनो पायो नंखाणो. अजयपाले घणा खरा जुना जैन मंत्रिओने पदभ्रष्ट कर्या अने केटलाकोने भयंकर शिक्षाओ फरी. खास करीने कुमारपालना मरजीदान मनुष्योने अजः यपाले भारे त्रात्त आप्यो,२ कुमारपालनां पुण्यकार्योनो तेणे बन्यु तेटलो नाश कर्यो, पण ओवां अधम कामो घणा काल सुधी करवाने ते जन्म्यो न हतो, राज्याभिषेकने त्रीजे ज वर्षे अजयपालनुं तेना एक नोकरना हाथे खून थयु अने त्यार पछी धार्मिक विप्लव बंध थयो, राज्यकारभार पण. पाछो नियमित थइ गयो पण सिद्धराज अने कुमारपाले जे गुजरातना राज्यनी हद वधारी चौलुक्य राजाओनी सार्वभौम सत्ता स्थापन करी हती, ते लांबो काल टकी शको नहिं. जे क्रमथी पाटण अने तेना राजाओनी सता दिवसे दिवसे वधी हती ते ज क्रमथी घटवा लागी, अजयपालना वखतथी
१ आ हकीकत हिन्दी कुमारपाल चरितनी प्रस्तावनामां जोवी.
२ हेम चन्द्रमूरिना शिष्य राम वन्द्र, मंत्री कपर्दी आदि हेमचन्द्र अने कुमारपालना मानीता पुरुषोने अजयपाले केवी भयंकर शिक्षाओ करी हती ते प्रबन्ध चिन्तामणिमा चौलुक्य राजाओनो
इतिहास जोवाथी जणाशे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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पाटणना राज्यकारभारमांथी जैन गृहस्थोनो हाथ निकलवा लाग्यो हतो, प्रसिद्ध पोरवाल वीर जैन मंत्री वस्तुपाल अने तेजपालना समयमां थोडाक वखतने माटे गुजरातनी झांखी पडेलो कीर्ति पाछी उज्ज्वल बनी हती. जो के अजयपालना बखतथी गुजरातनी राज्यसत्ता मंद थवा मांडी हती तो पण बाघेला चौलुक्य सारंगदेव पर्यन्त गुजरात देश अने तेना राजाओए पोतानुं महत्व ठोक ठीक टकावी राख्युं हनुं, पण छेला राजा करणवाघेलाना समयमां पाटण अने गुजरातना उपर हमेशाने माटे पराधीनतानो दंड पड्यो १
वनराजथी उगेल, सिद्धराज अने कुमारपालथी उन्नतिनी छेल्ली हदे पहोंचेल पाटणनी कीर्तिवल्ली करण वाघेलाना वखतमां सदाकालने माटे करमाई गई.
आ प्रमाणे वनराज, भीमदेव, सिद्वराज, कुमारपाल जेवा युद्धवीरोना पराक्रमोथी, जांबक, चंपक, त्रिमल, शांतु,
9 पाटनी राजगादी उपर चौलुक्य अने एज वंशनी वाघेला शाखाना राजाओ नीचेना क्रम प्रमाणे थया छे: - वौलुक्य राजाओ :- १ मूलराज ( १ ) २ चामुंडराज ३ वल्लभराज दुर्लभराज ५ भीमदेव ( १ ) ६ कर्णदेव ( १ ) ( सिद्धराज ) ८ कुमारपाल ११ भीमदेव ( २ ) १२ त्रिभुवनपाल । वाघेला राजाओ- -१ धवल २ अर्णोराज
९ अजयपाल
१०
५ वीसलदेव
६ अर्जुनदेव
-
४ वीरधवल
कर्णदेव |
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७ जयसिंहदेव
मूलराज ( २ )
३ लवगप्रसाद ७ सारंगदेव
८
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उदयन, बाहड, संपत्कर, वस्तुपाल, तेजपाल जेवा बाहोश मुसहोमोनी कार्यकुशलताथी उन्नतिना शिखरे चढेलु पाटण -गुजरातनुं राज्य कर्णवाघेलानी स्त्रीलंपटता अने माधव अने केशव जेवा झेरीली प्रकृतिना नागर कारभारियोना पापे एकवेला स्वर्गीय नगर बनेलं पाटण संवत् १३५६ ना वर्षमा अलाउद्दीनना सेनापति मलिक काफुरना हाथे जमीनदोस्त थ,एक वेला जे स्थले हजारो कोटिध्वज श्रेष्ठियोनी हवेलीओ शोभी रही हती, ते प्राचीन पाटणना स्थानमा आजे एक बे कुआ वावडी के बे च्यार प्राचीन मकानोना खंडहरो' सिवाय जंगली झाड अने घास उगेला नजरे पडे छे, जे स्थान लाखो मनुष्योनी वसतिथी रळीयामगुं हतुं ते आजे सियाळ अने वरु जेवां जंगली जानवरोनी लोलाभूमि बनी रह्यं छे !
नवू पाटण.
मुसलमानोना हाथे नष्ट भ्रट थयेलु पाटण फरिथी क्यारे आबाद थयु तेनो चोकस समय क्यांह मलतो' नथी.
१ प्राचीन पाटगना अवशेषो तरीके आजे 'राणकी वाव' अने 'दामोदर कुओ' ए बे मुख्य गगाय छे, एना संबंधमां लोकोमां कहेवत छे के-राणकी वाव ने दामोदर कुओ, जोयो
नहि ते जीवतो मूओ.' ए सिवाय एक मोटुं मकाननू खंडेर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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छतां केटलाक बनावो उपरथी एम कही शकाय के वर्तमान पाटण विक्रम संवत् १३६० अने १३७९नी वच्चे बसेलुं होवुं जोइये. पाटणनी 'जैन मंदिरावली' नी प्रस्तावनामां तेना लेख के जणावेलुं छे के— “अल्लाउद्दीनना वखतमां प्राचीन पाटणनो नाश थतां सं० १४२५ ना वर्षमां आ वर्तमान पाटण फरिथी वस्युं छे.”
पण आमां जणावेली साल खरी होवामां शंका छे. संवत् १३५६ मां नाश पामेलं नगर बे पांच वर्षमां पार्छु न वसतां लगभग अर्धसदोथी पण अधिक समय पछी वसे ए वात साची मानवामां जरा संदेह रहे छे. जो प्राचीन नगर सर्वथा नाश पामी गयुं होय अने नवेसर वसवा जेवी स्थिति उभी थइ होय त्यारे तो ते तरत ज वसवुं जोइये, अने जो मुसलमानोना हाथे पटलु बधुं नक्शान न थयुं होय के जेथी फन्नेि शहेर नवुं वसाववुं डे तो त्यार बाद साठ सित्तर वर्षमां ज एवं शुं कारण आत्री प युं हशे के मुसलमानोना हाथे जोखमायेल पाटणमां ६० वर्ष पर्यन्त रहोने फरिथी नागरिकोने नवुं पाटण वसाववुं पड्र्युं होय ? अमारा अनुमान प्रमाणे तो आधुनिक पाटण सं०१४२५ मां नहिं पण १३७० नी आसपासमा वसेल होवुं जोइये, ' कारण के पाटण भंगना घख नथी पाट मां बनतां जैन मंदिरो उंची चट्टान पर आवेलुं छे, लोको तेने 'राजमहल' कहे छे. बीजी पण प्रचुरण निशानीओ त्यां सेंकडो मले छे.
१ वि.सं. १३७१ शत्रुंजयतीर्थना उद्धारक संघपाते देसल भने समरा साह पाटणम वसता हता, एटले ते समये पाटण हयात ज हतुं. -ला. भ. गांधी.
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अने प्रतिमानी प्रतिष्ठाओ एकदम बंध पडे छे अने ते सं० १३७९ ना वर्षमा पाछी शरु थती देखा दे छे अने ते पछीना वखतमां ते प्रवृत्ति दिवसे दिवसे वधती जती जणाय छे, संवत् १३७१ अने १३८१ नी सालमा खरतरगच्छ संबन्धी शान्तिनाथ विधिचैत्यमां जिनकुशलसूरिना हाथे अनेक जिन बिम्बो अने आचार्यमूर्तिनी प्रतिष्ठाओ थाय छे, आ शांतिनाथ विधिचैत्य आजे पण खराखोटडीना पाडामां सुधरेल दशामा विद्यमान छे. संवत् १४१७, १४२० अने १४२२ ना वर्षमां पण पाटणमा प्रतिष्ठाओ थयाना लेखो त्यांनी मूत्तिओ उपरथी मली आवे छे, तेथी आ वात निश्चित थाय छे के प्राचीन पाटणना भंग पछी संवत् १३७९ ना वर्ष पहेलाना कोइ पण वर्षमा आधुनिक पाटण वसी गयं होवू जोइये.
उपर प्रमाणे चौदमी सदीना छेल्ला चरणमा फरिथी वसेल नूतन पाटणे पण दिवसे दिवसे उन्नति करवा मांडी अने वखत जतां ते पोतानी प्राचीन कीर्तिने जालवी राखवाने योग्य थइ गयुं, अल्लाउद्दीनना जुल्मथी त्रास पामेला, मुसलमानोना नामथी पण भडकता हिन्दुओनां हृदयो तुगलक फिरोजशाहनी सरदारीना वखतमां कंडक शांत पडयां, मुसलमानोना भयनी शंकाथी नवीन देहरासरो बनावबामां संकोचाता हिन्दुओ फिरोजशाहना वखतमा निर्भय थया अने फरिथी नवीन चैत्यो बनाववामा प्रवृत्त थया, आपणा आ पाटणमां पण आ बखाथी मांडीनेज नवां देहरा अने नवी प्रतिमाओ विशेष प्रमाणमां बना लागी. जे प्रवृत्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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लगभग सत्तरमी सदीना छेडा पर्यन्त चालु रही, आ लगभग त्रणसो वर्ष जेटला लांबा गालामा प्रस्तुत नवीन पाणमां सेकडो देहरां अने हजारो प्रतिमाओ बनी चुकी हती, लीलं झाड प्रचण्ड पत्रनना झपाटाथी पडी जतां तेना ज मूलमाथी फूटेला फणगा कालान्तरे मूलवृक्षनुं रूप धारण करे छे, ते ज रीते प्राचीन पाटण अलाउद्दीनना अन्यायनो भोग थर पडतां तेना ज सीमाप्रदेशमां नवं वसेलुं पाटण कालान्तरे एक समृद्ध नगर बनी पोतानी पूर्व रूपातिने ताजी राखत्रा समर्थ थयुं. प्रस्तुत चैत्यपरिवाडी ते आ बीजा पाटणनी समृद्ध दशाना समयमां बनेली तात्कालिक जैन मंदिरोनी नोंध वा 'डीरेक्टरी' समान छे.
कर्ता अने समय-निर्देश.
आ चैत्यपरिवाडीना कर्ता कोण छे अने तेमणे आ परिवाडी क्यारे बनावी इत्यादि हकीकत तेमणे पोते ज समाप्ति लेखमां जणावो दोधी छे, जेनो सार आ प्रमाणे छे
'घूनमिया गच्छनी चन्द्र (प्रधान) शाखामां भुवनप्रभसूरि थया, तेमनी पाढे कमलप्रभसूरि अने कमलप्रभनी पाटे आचार्य श्री पुण्यप्रभसूरि थया, पुण्यप्रभता पट्टधर विद्याप्रभसूरि थया, विद्याप्रभसूरिना' पट्टधर शिष्य श्रीललितप्रभ सूरि थया, ते लतिप्रभसूरिए विक्रम संवत् १६४८ ना आसोज वदि ४ अने रविवारने दिवसे अगहिल पाटणमां आ पाटणनी चैत्यपरिवाडी बनावी.
"
१ सं. १६६७ ना कार्तिक सुदि ७ ने शुक्रवारने दिवसे पाटणमां उपाध्याय श्रीधर्मसागरजीने संघवहार करनार जुदा जुदा गच्छोना १२ आचार्योंमां आ विद्याप्रभसूरि पग सामेल हता ।
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उपरनी नोंध सिवाय परिवाडोकार ललितप्रभसूरिना संबन्धमा विशेष हकीकत जाणवामां आवी नथी.' तेमनी कृति उपरथी तेओ सारा विद्वान् होवानो दावो करी शकता नथी, परंतु आ प्रस्तुत कृति तेमनी संग्रहशीलतानो सारो परिचय आपे छे, ग्रंथकार पोते पूनमगच्छना आचार्य होह ढंढेरवाडामा रहेता हता,२ अने तेथी ज प्रस्तुत परिवाडीनी शरुआत तेमणे ढंढेरवाडाना चैत्योथी ज करेली जणाय छे, तेमना पछी लगभग ८० वर्षे बनेली बीजी पाटणचैत्यपरिवाहीनी शरुआत पंचासराना चैत्योथी थाय छे, कारणके तेना कर्ता हर्षविजय तपागच्छीय यति हता अने तपागच्छना यतियोनुं मुख्य आश्रयस्थान पंचासरामां हतुं.
आ प्रमाणे जुदा जुदा कर्ताओनी परिवाडीओ जुदा जुदा स्थानोथी शरु थतां वासोना अनुक्रममां घणो घोटालो थइ जाय छे, अने तेम थतां एकनी साथे बीजी चैत्यपरिवाडी- मेलान करवामां केटली मुश्केलीओ नडे छे, तेनो ठीक ठीक अनुभव आ प्रस्तावनाना लेखकने थयो छे.
१ प्रस्तुत ललितप्रभमरिए वि. सं. १६५४ मा प्रतिष्ठित पंवतीर्थी (सम्भवनाथ बिम्बनी मुख्यतावाली) धातुप्रतिमा चाणसमा गाममां जिनमन्दिरमा विद्यमान छे. ( जूओ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भा० १, १०१)
ललितप्रभसरिए वि. सं. १६५५ मां अणहिलपाटगमा ढुंढेरवाडाना उपाश्रयमांज श्री बंदकेवलिचरित(रास) पण रच्यो छे.
-ला. भ. गांधी.. २ आजे पण ढंढेरावाडामा पूनमगच्छनो उपाश्रय मौजुद छे. __Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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नामनिवासोमातिमाओनीनां तम
परिवाडीनो परिचय. प्रस्तुत चैत्य परिवाडी कविता-साहित्यमी दृष्टिए विशेष उपयोगी न होवा छतां पुरातत्त्वनी दृष्टिए घणी उपयोगी छे, परिवाडीकारे ते समयनां पाटणनां तमाम जैनमंदिरोनां नाम, तेमा रहेली प्रतिमाओनी संख्या, तेना बनावनारानां नाम, जे जे वासोमा जे जे चैत्यो आवेलां छे ते ते वासोनो नाम निर्देश इत्यादि हकीकतो जणावधानो जे महान् परिश्रम उठान्यो छे ते आपणे माटे घणो उपयोगी निवड्यो छे, आजथी सवा त्रणसो वर्ष उपर पाटणमा केटलां देहरां हतां, ते सर्वमा केटली प्रतिमाओ हती, देहरा बनावनारा शेठिआओनां शां शां नामो हतां, ते वेलाना पाटणना भाविक जैन गृहस्थोमां धर्मश्रद्धा केवी होची जोइये,साथे ज तेमनी पासे द्रव्यबल पण केरलुं होवु जोइये इत्यादि अनेक वातीनां साचां अनुमानो करवाजें आ चैत्यपरिवाडी उप. रथी बनी शके तेम छे.
चैत्यपरिबाडी-यात्रानो साचे साचो ढंग लेखके आ परिवाडीमां गोठव्यो छे, जाणे के पोते संघनी साथे नग. रनी चैत्ययात्रा करवा निकल्या छे अने क्रमवार वच्चे आवतां तमाम देहरांओने वांदता जाय छे. संघ जे वासमां जाय छे ते वासनु नाम पोते प्रथम सूचवे छे, पछी तेमां केटलां देहरां छे तेनी संख्या जणावे छे, पछी मूलनायकोनां नाम अने छल्ले तेमांनी प्रतिमाओनी संख्या, आ ढंग लेखके लगभग आखी परिवाडीमां जालवी राख्यो छे, पण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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प्रतिमाओनी संख्या जणाववामां जरा घोटालो करी दीधो छे, ते एवी रीते के केटलेक ठेकाणे तो पोते मूलनायकन नाम लखी " अवर प्रतिमा " " अवर जिनवर" इत्यादि उल्लेखोनी साथे बिंबोनी संख्या जणावे छे के जेनो अर्थ मूलनायक सिवायनी प्रतिमाओनी संख्या जणावनारो थाय छे, ज्यारे घणे टेकाणे "अबर' के 'अन्य' कंड पण शब्द. प्रयोग कर्या वगर प्रतिमासंख्या लखी दीये छे तेथी तेवा स्थलोमा ए शंका रही जाय छे के आ संख्या मूलनायक सहितनी जाणवी के मूलनायक सिवायनी प्रतिमाओमी ? आनो खुलासो मूलनायक सहित गणतां थतो नथी, तेम मूलनायक सिवायनी प्रतिमाओनी संख्या गणतां पण थतो नथीपारण के बेमांथो कोई पण रीते गणतां आखेरी बिम्बसंख्याना सरवालो मलतो नथी. एथी ए वात सहेजे जणाइ आवे छे के ग्रन्थकारे जणावेली ते ते चैत्योनी प्रतिमामंख्या वेटलेक ठेकाणे ती मूलनायक सहितनी छे अने केटलेक स्थले ते सिवायनी छे, पण सहितनी क्यां अने रहितनी क्यां तेनो खुलासो थवो अशक्य छे.
ग्रन्थकारे जेम प्रत्येक वासनां देहराओनी संख्या अने तेनी प्रतिमासंख्या जगावी छे, तेम आखा नगरनां सर्व देहराओनो आंकडो अने सर्व प्रतिमाओनी संख्यानो आंकडो पण तेमणे जणावी दीधा छे.
परिवाडीकार प्रतिमासंख्या जणावतां पहेलो देहरा.. ओने बे विभागमां वहेंची दिये छे, म्होटां जिनमंदिरोने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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पोते 'चैत्य' अने 'देहरां' कहे छे अने तेनी संख्या १०१ एकसो ने एक जणावे छे, छोटां वा घरमंदिरोने 'देहरासर' नामथी उल्लेखे छे.' अने तेनी संख्या ९९ नवाणुं होवार्नु कहे छे, पहेला दर्जानां चैत्योनी प्रतिमासंख्या ५४९७ पांच हजार चारसो ने सत्तागुंनी जणावे छे, बीजा प्रकारनां जिनमंदिरो-घरमंदिरोनी कुल प्रतिमासंख्या २८६८ बे हजार आठसो ने अडसठ एटली जणावे छे.
एज प्रसंगे प्रतिमाओनी नोंध करतां परिवाडीकार लखे छे के पाटणमा प्रतिमा विद्रुम-प्रधालानी छे, २ सी. पनी अने ३८ अडत्रीश रत्ननी प्रतिमाओ छ, ४ च्यार गौतम स्वामीनां बिंब छे अने ४च्यार चतुर्विशतिपट्टको छे.
आलुं विवेचन कर्या बाद परिवाडीकार बन्ने प्रका. रनां चैत्योनी प्रतिमाओनी कुलसंख्यानो ८३९४ ए आंकडो जणाधे छे,पण पूर्व जणान्या प्रमाणे अत्र पण संख्यानो सरवालो मलतो नथी, बन्ने प्रकारनां चैत्योनी प्रतिमाओनो
१ बीजा चैत्यपरिवाडीकारोए पण म्होटा मंदिर वा जिनप्रासादोने माटे देहरं' अने छोटा घरमंदिरोने माटे ‘देरासर' शब्द वापर्यो छे जुओ-"देहरासर तिहां देहरा सरखं" ( हर्षविजयकृत पाटण त्यपरिवाडी) " जिनजी पंचाणुने माझने श्रीजिनवरप्राप्ताद हो xxx देहरासर श्रवगे सुण्या पंच सया सुखकार हो" ( हर्षवि०पा०चै०परि०) "सूरतमाहे त्रण भूयरां देहरां दश श्रीकार दोय सय पणतीस छे देहरासर मनोहार ॥"(लाधा
शाहकृत मूरतचैत्यपरिवाडी-प्राचीन तीर्थमालासंग्रह भा०१पृ०६७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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सरवालो ५४९७+२८६८-८३६५ आठ हजार घणसोने पांसठनो थाय छे, अने जो रत्नादिनी प्रतिमाओ जुदी गणीने तेनी ४१ ए संख्या आमां उमेरोए तो सरवालो ८४०६ ए आवे छे, पण परिवाडीकारे आपेल टोटल मलतुं नथी, एर्नु कारण तेमनी गफलत नहिं, पण तेमनी मानसिक अपेक्षा छे. पटले के आपेली छेल्ली संख्या पूर्वोक्त बे संख्या मोनो मात्र सरवालो ज नहिं पण ते संख्यामां केटलीक परचुरण संख्या वधारीने जणावेली संख्या छे, पण आ अपेक्षा निबन्धकारे शब्दद्वारा व्यक्त करी नथी.'
__ पाटण शहेरनी चैत्यपरिवाही पूरी करीने तेने लगती ज पाटणनी आसपासनां न्हानां म्होटां लगभग १२ गामडाओनी चैत्यपरिवाडी पण आ साथे जोडी दीधी छे.
आ १२ बार गामोना चैत्योनी संख्या २५ अने प्रतिमासंख्या १२०७ जेटली थाय छे, आ संख्या पूर्वोक्त पाटणनी प्रतिमासंख्यामां जोडीने परिवाडीकारे आ प्रमाणे संख्या जणावेली छे-९५९८नव हजार पांचसो ने अठाणुं. आ संख्यामां पण ३ ना फरक आवे छे.
परिवाडीकारनी जणावेली पाटणनी बिंबसंख्याना ८३९४ ए आंकडो अने बहारगामनां चैत्योनी बिंबोनी सं. ख्यानो आंक जे १२०७ नो थाय छे; ए बेने भेगा करतां ८३९४+१२०७=९६०१ नव हजार छ सो ने एक थाय छे, ज्यारे परिवाडीकारे आपेली संख्या ९५९८ छे.
_____एज रीते आपणे प्रत्येक महोल्लाना चैत्योनी प्रतिमाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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आनी संख्या तारवीने तेनी जोड देतां जे संख्या आवे छे, तेनो साथे परिवाडीकारे जणावेली पाटणनी प्रतिमासंख्या मलती नथी. तेनु कारण पण लेखकनी संख्याप्रतिपादक 'पद्धतिर्नु अनिश्चितपणुंज होह शके,वली बे चैत्योनी प्रतिमा. संख्या परिवाडीकारे मुहल जणावी नथी, तेथी पण तेमनी संख्या आपणी तारवेली संख्या साथे नहिं मलती हाय तो बनवा जोग छे.
परिवाडीबा परिशिष्टरूपे जणावेली १२ गामोनी चैत्यपरिबाडीमां रूपपुरनी चैत्यसंख्या ध्यान खेचनारी छे, तेमा कुले १० जिनमंदिर अने ३६७ जेटली प्रतिमा जणाधी छे. रूपपुर पूर्व केवडं म्हॉटुं होवु जोइये ते वात आ वर्णन उपरथी जणाइ आवे छे. जे वेला रूपपुरनी ए दशा हती, ते वखते चाणसमामा मात्र एक मंदिर अने ३४ प्रतिमाओ हती. आजे रूपपुरमा मात्र एक मंदिर २९ प्रतिमा छे अने श्राव. कोनां ३-४ वणच्यार घर छे, न्यारे चाणसमाप्रां ८-१० मंदिर जेवटुं विशाल चैत्य छे, अने अनेक प्रतिमाओ छे, जैनवसति पण घणी छे. एम लागे छ के रूपपुरनी वसति तूटवाथी ज चाणसमानी विशेष आबादी थइ हशे काला. न्तरे शहेरनां गाम अने गामनां शहेर केवी रोते बने छे, तेनो आ प्रत्यक्ष पूरावो छे.
परिवाडीकारे कोर ठेकाणे ए वातनो खुलासो नथी कों के पोते जे प्रतिमासंख्या जणावे छे ते केवल पाषाणमय प्रतिमाओनी छ के धातु, पाषाण अने रत्न विगेरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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सर्व प्रकारनी प्रतिमाओनी ?, परंतु परिवाडीकारना आ. मौननो खुलासो परिवाडीना परिशिष्टना एक उल्लेख उपर थी स्वयं थइ जाय छे --'कुमरगिर' ना बीजा चैत्यनी संख्या जणावीने ते “पोतल पडिमा चारसे वली, छन्न उपरि मनहरु ।" आवो एक नषो उल्लेख करे छे,यधपि ए उल्लेखनो अर्थ एवो पण लेइ शकाय के 'चैत्यनी प्रतिमा-संख्या गणव्या बाद आ पीतलमय प्रतिमाओनो संख्या गणववाथी बीजे सर्व स्थले बतावेली सामान्य प्रतिमासंख्या पाषाणनी प्रतिमाओनी ज होवी जोइए, परंतु ग्रन्थकारना अभिप्रायनो विचार करतां आ कल्पना टकी शकती नथी,ए वात खरी छे के ग्रन्थकारे कोइ ठेकाणे पीतलनो के धातुनी प्रतिमाओनो जुदो उल्लेख कर्यो नथी, मात्र आ एक ज स्थले कयों छे अने ते पण जुदो, छतां ते संख्या तेमणे प्रतिमाओनी कुल संख्यामा सामेल करी छे, जो पाटणनां २०० बसो देहराओनी धातुमय प्रतिमाओने गणनामां न लीधी होय तो कुमरगिरना एक ज देहरानी पीतलनी प्रतिमाओने भेली गणवानुं कांइ कारण न हतुं. ए उपरथी खुल्लुं समजाय रे के परिवाडीकारे दरेक चैत्यनी जे प्रतिमा संख्या बताथी छे, तेमां धातुनी प्रतिमाओ पण सामेल समजवानी छे, दरेक ठेकाणे तेनो जुदो उल्लेख न करवार्नु कारण विस्तार थइ जवानो भय हतो, अने कुमरगिरमां जुदो उल्लेख करवाचं कारण धातुप्रतिमाओनी बहुलता बताववी एज होइ शके. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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किया वासमां केटलां देहरां अने केटली प्रतिमाओ छे, ते प्रत्येकनी तेम ज सर्वनी संख्या परिवाडीना सारमां ते ते स्थळे जणावी दीधी छे. पटलं छतां पण वासोना नामनी साथे चैत्य अने प्रतिमासंख्यानुं कोष्टक आ नीचे आपवामां आवे छे. पनी नीचे सं. १७२९ ना व मां बनेली चैत्य परिवाडीमां जगावेल वास, चैत्य अने बिनी संख्यानु कोष्टक अने ते पछी वर्तमान समयना पाटणना वास अने चैत्यसंख्या जणावनाएं कोष्टक आपवामां आवशे, जे उपरथी सं. १६४८ मां पाटणनी शी दशा हती, १७२९ मां मां केलो फेर पड्यो अने वर्तमानमां पाटणना चैत्योनी केटली संख्या छे-ए सर्व जाणवानुं घणुं सुगम थइ पडशे.
सं. १६४८ मां बनेली प्रस्तुत चैत्यपरिवाडीने अनुसारे श्रीपाटण - चैत्य - प्रतिमा- कोष्ठक १
नं० वासनाम १ ढंढेरवाटो
२ कोकानो पाडो ३ खेतरपालनो पाडो१ ४ जगुपारेखनो पाडो २ ५. पहेली खारी वात्र १ ६ बीजी खारी वाव १ १३
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० प्र० नं० वासनाम
११ ५५६
३. २६६
१६७
१५
४
चै० प्र०
१
७ नागमढ
८ पंचासर
५. ९७
९ उंची शेरी
१ २३.
१० ओशवाल महोल्लो ३ ३१ ११ पीपलानो पाडो १ ५ १२ चिंतामणिनो पाडो ३ ९५
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नं० वासनाम १३ खरा कोटडी
१४ त्रांगडोआपाडो २५ मणिहट्टिपाडो १६ मांका महेतानो पाडो
२
-१७ कुंभारीयापाडो
१८ तंवालीबाडो
१९ खेजडानो पाडो बडावाडो
२०
२१ वडी पोसालनो उपाडो
चै० प्र०
८ ३८४
१ ३७५
२ १८
१
२
૨૮
२२ साहनो पाडो
२३ कंसारवाडो
२४ भलावैद्यनो पाडा १ २५ सातवाडो
१
२६ सहावाडो
२ ६९
नं० वासनाम
२७ सगरकुई
२८ हैबतपुर
२९ मोढेरनो पाडो
२१
४२ | ३२ फोफली आवाडो
३
३६
३० नारंगा पाडो
३१ सोनार वाढो
चै० प्र०
६ ३५२ ३३ जोगीवाडो
१
९ | ३४ मफलीपुर
९०
३५ मालीवाडो
३६ मांडणनो पाडो ३ ५ ७५ ३७ गदा वदानो पाडो ३ २१५७ ३८ मल्लिनाथको पाडो १ ५ ७६
३ ८३
१ १०५
ક
२ २७४
२ १५
११ २९५
३ ६४
१ १२
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३९ भाणानो पाडो १ ९८ ४० समुद्रफडीओ १. १९ ४१ चोखावटीनो पाडो २ ४२ बलीयानो पाडो १ ११
१८
૨૪
८९
९०
१७६
१ 'खराकोटडी' नो अर्थ ' खरतरगच्छवालाओनी बेठक ' ओवो संभव छे, कारण के त्यां खरतरगच्छवालाओनो जत्थो हतो, आजे पण त्यांना रहेवासीयोमांना केटलाक पोताने खरतरगच्छीय तरीके ओलखावे छे.
२ आजे ओ वास ' मणियाती पाडो' कहेवाय छे.
३ हालनो 'झवेरीवाडो' ए ज वडीपोसालनो पाडो छे.
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नं. वासनाम चै० प्र०। नं. वा० ४३ अबजी महेतानो ५. दोशीबाडो १ -
पाडो' २ ७ | ५९ शांतिनाथनो पाडो५ १२८ ४४ कुसुंभीया पाडो ४ ६८ | ६० कटकीआ वाडो २ ६९ ४५ नाकर मोहीनो
६१ आनावाडो १ ३४ पाडो
६२ सालवीवाडो४६ मालु संघवीन
त्रसेरोओ स्थान
| ६३ कुरसीवाडो ४७ लटकणनो पाडो १ १२ ६४ कइआवाडो २ १९ ४८ भंडारीनो पाडो १ ५ ६५ कल्हारवाडो ४९ भाभानो पाडो ४ १५७ ६६ दणायगवाडो १ ७० ५० लींबडीनो पाडो ३ ४२ | ६७ धांधुली पाडो १ ७१ ५१ करणशाहनो
६८ ऊंचो पाडो पाडो२
६९ सागपाडो ५२ बांभणवाडो ८ ८३
८ ८३ | ७० पुन्नागवाडो १ १० ५३ खेतलवसही १२४७ ७१ गोल्हवाड ३ १२५ ५४ लटकणनो पाडो ५२०० | ७२ धोली परव४ १२२ ५५ कुंपादोशीनो पाडोर ३० | ७३ गोदडनो पाडो ४ २३९ ५६ वीसावाडो ५१०१ ७४ नाथाशाहगे पाडो ६ ३६९ ५७ सरहीआवाडो १ २३ । ७५ महेतानो पाडो २ २३
१ आ वासना बे चैत्योमांना एकनी प्रतिमा संख्या जगावी नथी. २ हालमा ए वास — कनाशानो पाडो ' कहेवाय छे. ३ आज काल ए स्थान खेतरवसही' ए नामथी प्रसिद्ध छे.
४ अहिंना शांतिनाथना देहरामां केटली प्रतिमा हती ते जणाव्यु नथी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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३०
नं० वा० १ वाडीपुर २ दोलतपुर ३ कुमरगिर' ४ वावडी ५ वडली ६ नगीनो'
परिशिष्ट. चै० प्र० | नं० वा० १ २ ७ नवो नगीनो १ १ ८ कतपुरा २ ५८५ ९ रूपपुर १ १८ १० चाणतमा २ ४१ | ११ कंबोइई १ ७ १२ मुंजपुर
चै० प्र० २ १२० २ ८ १० ३६७ १ ३४ १ २१
१ नंबर १, २, ३, ६, ७ ए गामोनो हाल पाटगनी नजीकमां पती नथी.
__२ पाटगथी दक्षिगमा ३ गाउने छेटे वावडी छे, हालमां त्यां देहरु नथी.
३ पाटगथी पश्चिमे ब्रश कोशने छेटे वडली गाम छे. ___४ पाट गथी दक्षिगमा २ कोश छेटे रूपपुर पासे कतपुरा आवेल छे.
५ रूपपुर अने चाणसमा पाट गथी दक्षिण पूर्व ६, ७ कोश उपर छे.
६ कंबोई २ बे छे, १ ली सोलंकीनी कंबोह पूर्व दक्षिगा २ जी काकरेचीनी कंबोड पश्चिम दक्षिगना खूगा तरफ ६ गाउ
उपर छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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संवत् १७२९ ना वर्षमा रचायेली चैत्यपरिवाडीना अनुसारे
श्रीपाटण-चैत्यप्रतिमा-कोष्टक २. नं० वा. चै० प्र० । नं० वा० ऋ० प्र० , पंचासा ५ १८०१९ सगर कई १ ३५ २ उची शेरी १ ५१ | २० वलियारवाडो १ . ३ पीपलानो पाडो २ १६४ | २१ जोगीवाडो २ ९५ ४ चिंतामणिपाडो २ २९२ | २२ मल्लिनाथनो पाडो २ ३१८ ५ सगालकोटडी १ ३ २३ लखीयारवाडो ३ ४४७ ६ खराखोरडी ५ ३०८ | २४ न्यायशेठनो पाडो१ ६८ ७ त्रांगडीआवाडो १ ४०४ २५ चोखावटीनोपाडो१ ४७ ८ कंसारवांडो २ १०१ / २६ बलीया पाडो १ १५१ ९ साहना पाडो १ २८२ | २७ अवजी महे१० वडोपोसालनो .
तानो पाडो २ ४९ पाडो ३ ६३८ | २८ कप्तुंबियावाडो २ ८४ ११ भेडावाडो १ ५७१ २२ वायुदेवनो पाडो १ १०१ २२ तंबोलीवाडो १ १३० । ३० चाचरीयो १३ कुंभागीयावाडो १ ८२ / ३१ पदमापारेखनी १४ मांका महेतानो
| पोल पाडो १ १६ ! ३२ सोनारवाडो १ ४७ १५ मणीयाही १ ४१ । ३३ खेजडानो पाडो १ १३८ १६ पखाली (वाडो?) १ ३१ ३४ फोफलीयावाडो ३ ४६८ १७ सावाहो २ ६०४ ३५ खजुरीनो पाडो १ १५८ :१८ भेसातवाडो १ ६७ ३६ भाभानो पाटो १ ४०१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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नं० वा० चै० प्र० । चै० वा० चै० प्र० ३७ लींबडीनो पाडो १ ३०७ | ५० जगुपारेखनो पाडो१ ३४ ३८ करणसाहनो पाडो३ ९५३ | ५१ कियावहोरानो ३९ संघवीपोल १ १३३ पाडो
१ २६ ४० खेतलवसही २ ३७९ ५२ क्षेत्रपालनो पाडो१ २९१ ४१ अजुवसापाडो १ ७७ | ५३ कोकानो पाडो २ ३९५ ४२ कुंपादशेशीनो पाडोर १६ ५४ ढंढेरवाडो ३ २७३ ४३ वसागडो १ २२८ | ५५ महेतानो पाडो २ ३६५ ४४ दोसीवाडो १ ९१
१६ वखारनो पाडो २ -
५७ गोदडनो पाडो १ ९६ ४५ आंबादोसीनो पाडो१ १६
५८ वसेरीओ ४६ पंचोटडी १ १२० | ५९ कलारवाडो १ ५३ ४७ घीयापाडो २ १३६ / ६० दणायगवाडो १ १५४ ४८ कटकीओ १ १०७ | ६१ धोधोल २ २६४ ४९ धोलीपरव १ ४६ / ६२ खारी वाव १ १३
__ आ बीजी चैत्यपरिवाडीना लेखक हर्षविजये पाटणनां कुल छोटां महोटां चैत्यो अने तेमांनी प्रतिमाओनी संख्या नीचे प्रमाणे जणात्री छे"जिन जी पंचागुनइ माझने श्रीजिनवर प्रासाद हो । जिनजीभाव धी मस्त के वंदीए मुकी मन विखवाद हो|जि०॥ जिनजी जिनबिनी संख्या सुणो माझने तेर हजार हो । जिनजी पांच से बहोतर बंदीए सुख संपत्ति दातार हो ॥ जिन नी देहरासर श्रवणे सुण्या पंचसया सुखकार हो । जिनजी तिहां प्रतिमा रलीयामणी माझने तेर हजार हो॥ " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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३३
उपर जणावेलां ९५ जिनप्रासाद नाम ठामनी साथै परिवाडीमां जणावी दोघां छे, बीजां घरमंदिरो जेने घणा खरा परिवाडीकारो ' देहरासर ' ए नामथी ओलखावे छे तेनी संख्या ५०० पांचसोनी जणावी ने तेमां १३००० तेर हजार प्रतिमाओ होवानुं जणावे छे. प्रथम १३५७३ ए संख्या पण जणावेली छे. परिवाडीकारना कहेवाना आशय पवो होय के 'पाटणमां ९५ म्होटां अने ५०० न्हानां जिनमंदिरो इतां अने तेमां अनुक्रमे १३५७३ अने १३००० प्रतिमाओ हती.' परंतु आवो अर्थ करवा जतां विचार प आवे छे के सं. १६४८ मां पाटणमां न्हानां महोटां २०० मंदिशे अने ८३६५ प्रतिमाओ हती तेना स्थानमा सं. १७२९ मां ५९५ मंदिरो अने २६५७३ प्रतिमाओनुं होवुं मन कबूल करतुं नथी, ८० वर्षमां उपर प्रमाणे वधारो थवो शक्य होय तेम लागतुं नथी, कदाच पम होइ शके के प्रथमनो ज १३५७३ प संख्या बीजो वेला सामान्यपणे तेर हजार तरीके लखी होय अने देहरासरानी ५०० ए संख्या पूर्वे जणावेल ९५ चैत्यो अने घरमंदिरो सर्व भेलां गणीने जणावी होय तो बनवा जोग छे, अने तेमज होवुं जोइये, कारणके परिवाडीकारे पोते पण सर्व घरमंदिरो गण्यां नथी पण तेमणे 'श्रवणे सुण्यां' छे, मतलब के धरमंदिरोनी संख्या चोक्कस नथी, छतां पटलं तो नक्की छे के १६४८ पछी पाटणमां घरमंदिरो अने प्रतिमाओनो खासो भलो वधारो थयो हतो.
सं. १७२९ थी मांडीने सं. १९६७ ना वर्षपर्यन्त पाटण
3
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३४
मी स्थिति केटली ददे नबली पडी अने देहरांनी खास करीने घरदेहरासरोनी संख्या केटली बधी ओछी थइ गइ तेनो ख्याल आ नीचेना कोष्टक उपरथी आबी जशे.
सं. १९६७ मां प्रगट थयेली पाटणनां जिनमंदिरोनी मंदिरावली' प्रमाणे पाटण - चैत्य संख्या कोष्टक ३.
नं० वा०
१ पंचासर
२ कोटावालानी धर्मशाला ११६ कटकीयावाडे
३ कोकानो पाडो
४ खेतरपालनो पाडो
प्र० नं० वा०
१३
५ पडीगुंदीना पाडे।
६ ढंडेरवाडो
७ मारफतिया महेतानो पाडो
८ वखारनो पाडो
९ गोदडनो पाडेा १० महालक्ष्मीमो पाडो
११ गोलवाडनी शेरी १२ नारणजीनो पाडो १३ धांधल
१४ कलारबाडो
१
१
१ |
३
૨
१५ तर सेरीआनो पाडो
१७ घीयानो पाडो
१८ वागालनो पाडो
१९ पंचोटीनो पाडो
२० वसावाडो
२१ अदुवानो पाडो
२२ खेतरघसीनो पाडो
२३ ब्राह्मणवाडो
२४ कनासानो पाडो
१५ लांबडीनो पाडो
२६ भाभानो पाडो
ខ
२
२
१
२७ खजुरीनो पाडो १ २८ वासुपूज्यनी बडकी
१
२९ संघवीमो पाडो
До
करनारी कमीटी तरफथ बहार पाडवामी भावी है.
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४
१ आ ' मंदिरावली ' श्री पाटण जैन श्वेताम्बर संघालुनी सरभरा
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३५
नं ०
वा०
до
३० कसुंबीयावाडो
१
३१ अबजी महेतानो पाडो १ ३२ बलीया पाडो
१
३३ चोखावटोआनो पाडो ३ ३४ केशुशेटचो पाडो
१
३५ निशालनो पाडे।
१
३६ लखीयारवाडो
३७ मल्यातम्रो पाडो ३८ जोगीवाडा ३९ फोफली आबाडो ४० सोनीवाडो
४२ मणीआती पाडे।
४२ डंक महेतानो पाडो
नं०
वा०
४३ कुंभारीया पाडो
४४ तंबोलीवाडी
४५ कपुरमहेतानो पाडो
४६ खेजडानो पाडो
४७ तरभेडावाडो
४८ सातवाडो
४९ शाहबाडो
५० सानो पाडो
५१ वडीपीसानो पाडो ५२ टांगडीआवाडेा
·
प्र०
१
१
६
१०
५३ खराखोटडीनो पाडो ३ ५४ अष्टापदजीमी खडकी ४
-उपरना कोष्टक उपरथी जणाशे के वर्तमान समयमां पाटणना ५४ चोपन वासोमा कुल १२९ नो संख्यामां जैनमंदिरों विद्यमान छे. जेमां मुख्य मंदिरो वा देहराओनी संख्या ८५ पंचाशीनी छे अने बाकीनां ४४ आश्रित बैत्यो वा देहरासरो छे के जेमां घणे भागे घरमंदिरोनों पण समावेश थइ जाय छे, आ उपरथी घरदेहरासरो केटलां बधां उठी गयां छे तेनो ख्याल आधी जशे.
आ घटाडानां त्रण कारणो मानी सकाय. १ जैनसमाजमां धर्मश्रद्धा अने देवपूजा - भक्तिनुं कमी थवुं, २- श्रावकोनी
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वसतिनो घटाडो, ३-श्रावकोर्नु विशेषे करीने परदेशोमां रहे,.
उपर जणावेलां सं. १६४८, सं. १७२९ अने सं. १९६७ नी सालमा विद्यमान चैत्योनी संख्यानां त्रणे कोष्टको उपरथी पाटणनी चडती पडतीनां अनुमानो थइ शकशे.
यद्यपि आजे पण पाटण एक भव्य शहेर गणाय छे, हजारोनी संख्यामां अस्तित्व धरावता प्राचीन ग्रन्थोना संग्रहो-भंडारोना दर्शन निमित्ते अनेक भारतीय अने यूरोपीय विद्वानोनुं ध्यान पाटण पोतानी तरफ खेची रयुं छे, श्रीमंत अने धनिष्ठ जैनधर्मी मनुष्योनी लगभग ५-६ हजार. जेवडी म्होटी संख्याथी पाटण हजी पण पोतार्नु “जैनधर्मनी राजधानी" ए प्राचीन मानतु नाम केटलेक अंशे निभावी रह्यं छे, एटलुं छतां पण पाटणनी ते प्राचीन श्रेष्ठता, प्राचीन भव्यता, प्राचीन समृद्धि आजना पाटणमा रही नथी,ते श्रेष्ठताओ माजे तेनी प्राचीन स्मृतिमांज नजरे पडे छे; कृतिमा नहि.
उपरना संक्षिप्त विवेचनयी प्रस्तुत परिवाडीनी भैतिहासिक उपयोगिता वांचकगणना ध्यानमां आव्या वगर रहेशे नहि.
आ प्रस्तुत परिवाडीनो शब्दानुवाद न करतां तेनो सारांशमात्र तारवीने शरुआतमां आपी वीणे छे के जे उपरथी परिवासीनी सर्व ज्ञातव्य वातो जाणी शकाशे, अने आशा छे के एक बार ए 'सार' वांच्या पडी परिवाडी वांचनारने तेमां न समजाय तेवी कंड पण बाबत जणाशे नहि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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आ प्रस्तुत चेत्यपरिवाडी तेना लेखके कुल २३ ढालो, एक चौपाई अने २०४ गाथाओमां पूरी करी छे.
जे प्रति उपरथी एनी प्रेस-कॉपी करवामां आवी छे, ते मूल प्रति सं. १६४८ ना पोष वदि १ ना दिवसे लखेल छे एटले के रचाया बाद मात्र त्रण महिनानी अंदर ज लखेल होइ परिवाडी पोताना मूल रूपमा जलवाइ रही छे. प्राचीन गूर्जर साहित्यना समालोचकोने तेनुं खरं स्वरूप जणाइ आवे एटला माटे तेमां कंइ पण भाषाफेर न करतां तेने पोताना मूल स्वरूपमा ज कायम राखी प्रकट करवा उचित धार्यु छे.
कदरदान वाचकगण पठन-पाठन द्वारा आ चैत्यपरिवाडीथी लाभ हांसिल करी लेखक अने प्रकाशकना उद्देशने सफल करो एवी शुभाकांक्षा,साथे विरमीए छीए.
-मुनि कल्याणविजय.
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प्रस्तुत पाटण चैत्यपरिपाटीनो सार.
__ (चोपाई) १ ढंढेरवाडो
ते समयमां ढंढेरवाडामां त्रण म्होटां अने आठ घर देरासर मली कुल ११ अग्यार देहरां हता, म्होटो ३ देहराओमा ? सामला पार्श्वनाथर्नु,२ महावीरनुं अने ३ पार्श्वनाथन. आठ घरमंदिरोमां-१ गोवाल झवेरी, २ पन्नादोसीनु, ३रायमलनु,४ शा. धनाजीनु, ५ मेला वीसानु,६ वीसाभीमा, ७ राजु दोसी, अने ८ रतन संघवी.२
ढंढेरवाडानां आ सर्व देहरांनी सर्व मली ५५६ पांच सो छप्पन्न जिनप्रतिमाओ हती.
ढंढेरवाडाथी आपणो आ संघ कोकाना पाडा भणी जाय छे.
१ पाटण चैत्यपरिवाडीना कर्ता आचार्य श्रीललितप्रभसरि पूनमियागच्छना होइ पोताना उपाश्रयवाला वासढंढरवाडाथी चैत्यपरिवाढी यात्रा शरू करे छे.
२ आ घरमंदिरो मूलनायकना नामथी न जणावतां तेना करावनार गृहस्थना नामथी ज जणान्यां छे, आगे पण केटलेक ठेकाणे आ प्रमाणे ज समजवान छे.
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(ढाल १ ली) २ कोकानो पाडो
त्यां प्रथम कीका पारेखने देहरे ऋषभदेव विगेरेने वांदीने कोकापार्श्वनाथने भेटे छे, अने त्यार पछी श्रीवंत दोसीने घरे वासुपूज्य स्वामीने वांदे छे, कोकाना पाडानां उपर्युक्त ३ देहगसरोमां ५+१३९+६२२६६ बसो छासठ प्रतिमाओ जुहारी संघ खेतरपालने पाडे गयो. ३ खेतरपालनो पाडो
आ पाडामा एकज देहरुं हतं जेमां भगवान् शीतलनाथनी प्रतिमा १६७ एकसोने सडसठ जिनबिंबनी साथे विराजमान हती; तेने वांदीने संघ जगुपारेखने पाडे गयो. ४ जगुपारेखनो पाडो__आवासमां भगवान् नेमिनाथनुं अने शांतिनाथर्नु एम बे देहरां हता, प्रथममां नेमिनाथजी विगेरे ३ प्रतिमाओ हती ज्यारै बोजामां-के जे जयवंत शेठना देहरा तरीके प्रसिद्ध हतुं तेमां-शांतिनाथ अने बीजी अग्यार मली कुल १२ प्रति
१ परिवाडीना कर्ताए पाडानु नाम लख्यु नथी, छतां 'कोकापार्श्वनाथ उपरथी अमोए आ वासने 'कोकानोपाडो' कहीने ओलखाव्यो छे.
-लेखक.
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५०
माओ हती, ते वांदीने संघ खारीवाव उपर गयो. ५ पहेली खारी वाव__ पहेली खारीवावे ऋषभदेवने देहरे ४ प्रतिमाओनां दर्शन करी संघ बीजी खारीवावे गयो. ६ बीजी स्वारीवाव
त्यां जइ महावीर प्रभुने भेट्या, अहीं १३ तेर जिनप्रतिमा अने बे गौतम स्वामिनां बिंब हतां, ए सर्वने वांदी संघ नागमढे आव्यो.
(ढाल २ जी) ७ नागमढ
ज्यां भगवान् नेमिनाथन देहरुं अने ९ नव जिनप्रतिमाओ हती तेने वंदन कयु अने त्यारवाद संघ पंचासराना पाडामां गयो. ८ पंचासरानो पाडो--
पंचासराना पाडामां आ वखते कुल ५ पांच जिनमंदिर हतां. १ महावीरनुं २ वासुपूज्यनुं ३ पंचासरा पार्श्वनाथन ४ ऋषभदेव, अने ५ नवघरानुं पार्श्वनाथनु. आ पांचे देहरासरोमां सर्व मली ९+२७+८+१०(१) ४३=९७ सत्ताणुं वा तेथी पण अधिक प्रतिमाओ हती. पंचासरथी संघ उंची शेरी भणी गयो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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४१
९ उंची शेरी___ उंची शेरीमां शांतिनाथन देहरुं हतुं जे 'भणशालीन देहरुं' ए नामथी प्रसिद्ध हतुं, त्यां कुल २३ जिनप्रतिमाओ हतो. अहींथी आगे संघ ओशवालना महोल्लामा गयो. १० ओशवाल महोल्लो__ ओशवालोना महोल्लामा ३ त्रण देहरां हता, १ शांतिनाथन, २ भोलडीया चन्द्रप्रभy अने ३ श्रावका पार्श्वनाथY. आत्रणे जिनमंदिरोमां सर्व मली प्रतिमाओ +१+ २३३१ एकत्रीश हती. ए पछी संघ पीपलाने पाडे गयो.
(ढाल ३ जी) ११ पीपलानो पाडो
अहिं शांतिनाथ- देहरुं तुं अने शांतिनाथ उपरांत बीजी च्यार प्रतिमाओ हती, तेने वांदी संघ चिंतामणिने पाडे गयो. १२ चितामणिनो पाडो-- __ अत्र शा. वछुने देहरे अजितनाथ विगेरे सात जिनप्रतिमाओने वांदी संघ शांतिनाथने देहरे थइ चिंतामणि पार्श्वनाथने देहरे गयो, चिन्तामणिना पाडामां कुल ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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देहरां अने ७+२१+६७=९५ पंचाणु प्रतिमाओ हती; अहींथी संघ खराखोटडीमां आव्यो. १३ खराखोटडी____ अत्रे अनेक जिनमंदिरो अने प्रतिमाओ हती. १ आसधीर ठाकरने देहरे चन्द्रप्रभ अने वीजी बे प्रतिमा. २ सदय वछ ठाकरने देहरे पार्श्वनाथ अने बीजी बे प्रतिमा. ३ अष्टापदावतार नाम, देहरुं (आमांनी बिंबसंख्या जणावी नथी, प्राय २४ बिंब हशे) अने ४ चन्द्रप्रभy देहरुज्यां ओगणसाठ जिनप्रतिमाओ हती, जेमां एक रत्नमयी हती. ५ खरतरगच्छनी निश्रावालुं शांतिनाथy बावन जिनालयवाल (विधिचैत्य) अने ६ ऋषभदेव- देहरु, आ बन्ने देहरांनी मली २७२ बसो बहोंतेर प्रतिमाओ हती, अने तीर्थकरोनां माता-पितानी मूर्तिओ पण अत्र हती. ७ सोनी तेजपालनु पार्श्वनाथवालं घरमंदिर अने ८ टोकर सोनीनुं सुमतिनाथ- घरमंदिर आ बेमां अनुक्रमे २९+४ प्रतिमाओ हती. आ प्रमाणे खराखोटडीमां कुल ८ मंदिर अने ३+३+२४+५९+२७२+२९+४३८४ त्रणसो चोराशी प्रतिमाओ हती. ए सर्वने जुहारी आपणा यात्रिको ब्रांगडी.
आपाडे आव्या. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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४३
(ढाल ४ थी) १४ त्रांगडीआपाडो
आ पाडामां ऋषभदेवर्नु एक म्होटुं देहरुं हतुं, जेमां ३७५ त्रणसो पंचोत्तेर प्रतिमाओ विराजमान हती. अहींथी संघ मणिहट्टि पाडे आव्यो. १५ मणिहटि पाडो___ आ पाडामां बे जिनमंदिरो हतां १ महावीरनुं अने २ देवदत्त. आ बन्नेमा प्रतिमाओ अनुक्रमे ५+१३ हती. मणियाती पाडामांथी संघ मांका महेताने पाडे गयो. १६ मांका महेतानो पाडो___ ज्यां भगवान् शांतिनाथ, एक देहरु हाँ, अने मूलनायक सिवाय वीस प्रतिमाओ त्यां विराजमान हती, अहीं वंदन करी संघ कुंभारोये पाडे पहोंच्यो. १७ कुंभारीया पाडो___ अत्र २ बे देहरां हतां, १ अमीचंद सोनीन अने २ वछ जवेरी. पहेलामा मूलनायक शांतिनाथ उपरांत १७ सत्तर जिनप्रतिमाओ हती, बीजामा चोवीस तीर्थकरोनी प्रतिमाओ. हती तेने वांदीने आपणो यात्रालु संघ तंबोलीवाडे गयो.
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४४
(ढाल ५ मी) १८ तंबोली वाडो___अहिं कुल ६ देहरां हता. जेमां १ सुपार्श्वनाथनुं हतुं ज्यां ७३ जिनबिंब हता, २ बीजा मंदिरमा ७ बिंब हतां, ३ रूपा वहोरानुं आदिनाथनु, ४ मेघा पारेखनु चन्द्रप्रभy, ५ घूसीनु, ६ शा. सीराजनुं संभवनाथनु छेल्लां ४ देहराओमां जिनबिंब अनुक्रमे १०+६+२+२५५ हता. सर्व मंदिरोनी प्रतिमासंख्या ७३+७+१०+५+२+२५५-त्रणसो बावन हती. तंबोलो वाडाथी संघ खेजडाने पाडे गयो. १९ खेजडानो पाडो____ ज्यां ' सारंगनुं देहरुं ' करीने एक जिनमंदिर इतुं, तेमां नव प्रतिमाओ हती तेने जुहारी संघ बडावाडे गयो. २० नंबडा वांडो
बडा (तरभेडा ) वाडामां जइ शांतिनाथने वांद्या, अत्रेनें देहरु घणुं रमणीय होइ ९९ नवाणु जिनबिंबोथी अलंकृत हतुं, त्यांथी दर्शन करी संघ वडी पोसालना पाडामां आव्यो. २१ वडीपोसालनो पाडो
आपाडामां कुल ५ मंदिरो अने ३४+८+६+१४+१३
__Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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४५
= ७५ प्रतिमाओ हती. देहराओमां १ सोमा शेठनुं ऋषभदेवनुं, २ भुजबल शेठनुं श्रीश्रेयांसनाथनुं, ३ वाडीपुर मंडन पार्श्वनाथनुं, ४ सहसा पारेखनुं श्रीपार्श्वनाथनुं अने ऋषभदेवनुं. आ पांचे देहरां जुहारी संघ शाहने पाडे गयो. ( ढाल ६ ठी )
२२ शाहनो पाडो --
चाहना पाडामां २ देहरां हतां. १ आदीश्वरनुं अने २ रायसिंघ ने घरे शांतिनाथनुं. प्रथममां ८७ सत्याशी प्रतिमाओ हती, ज्यारे बीजामां ७० हती. ए पछी संघ कंसार वाडे गयो. २३ कंसारवाडी-
अत्र १ देहरुं शीतलनाथनुं आव्युं, ज्यां १२ जिनप्रतिमाओ हती. २ शांतिनाथना देहरामा २२ प्रतिमाओ वांदी ३ शा. चांपाने देहरे जइ १६ सोल प्रतिमाओ वांदी त्यांथी ४ चोथा शाहने घरे बे रत्नमयी प्रतिमाओनां दर्शन करी ५ पार्श्वनाथने देहरे चोवीस जिनप्रतिमाओने नमन कर्यु, आ रीते कंसारवाडामा कुल ५ मंदिर अने १२+२२+१६+ २+२४=७६ जिनप्रतिमाओ वांदी संघ भलावैद्यने पाढे गयो. २४ भलावैद्यनो पाडो
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ज्यां चन्द्रमभनुं देहरुं अने बे त्रण प्रतिमा हती. वैद्यना पाडाथी यात्रालु संघ भंसातवाडे पहोंच्यो. २५ भेंसातवाडो
(अत्र शांतिनाथ आदि ३६ छत्रीस जिनमूर्तिओ हती,) 'एक गौतमगणधरनी प्रतिमा पण विराजमान हती. भेंसातवाडाथी संघ सहावाडे आव्यो.
____ (ढाल ७ मी) २६ सहावाडो___ज्यां सुपार्श्वनाथ अने पार्धनाथनां बे देहरां जुहार्या, अहीं ८५+६१२=६९७ छसो सत्ताणुं प्रतिमाओ हती. हवे संघ सगरकुई आव्यो. २७ सगरकुई____ अत्रे त्रण देहरा हतां-१ पार्थमापन २ पुजाशेठने घरे ऋषभदेवतुं अने ३ जयचंद शेठवालं शांतिनावमुं, आ मंदिरोमां २०+३०+३३८३ प्रतिमाओ हती तेने वांदी संघ हेबतपुरे गयो. २८ हेक्तपुर--
ज्या १०५ एकसो पांच जिनपिंच बांदी संघ मोटेरना पाडा भणी गयो.
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४७
२९ मोढेरना पाडो-
मोढेरना पाडामां ४ च्यार प्रतिमाओ वांदी आपणो आ भाविक संघ नारंगे पाडे आव्यो. ( ढाल ८ मी )
३० नारंगापाडो-
आ पाडामां नारंगा पार्श्वनाथनुं अने ' शोभीनुं ' एम बे मंदिशे हतां, बनेनी मळी ४२+२३० = २७२ प्रतिमाओ हती, तेने वांदी संघ सोनारवाडे थइ फोफली आवाडे गयो. ३१ सोनारवाडो
-
सोनारवाडामां ने देहरां हां - १ शांतिनाथनुं अने २ महावीरनुं . बन्नेमा प्रतिमा १४+१ = १५ हवी. ३२ फोफलीआवाडो
फोफली आवाडो आजनी माफक पूर्वे पण घणो विशाल हतो, त्यां वासमंदिर अने घरमंदिर मली कुल ११ अग्यार जिनमंदिरो इतां; जे नीचे प्रमाणेना नामोथी ओलखातां १ ऋषभदेवनुं, २ शांतिनाथनुं, ३ राजाशेठनुं - संभवनाथनुं, ४ काछखानुं मुनिसुव्रतनुं ५ वीरजी शेठनुं पार्श्वनाथनुं ६ थावरपारेखनुं, ७ महुलाशेठनुं मुनिसुव्रतनुं, ८ कंकुशेठनुं - पार्श्वनाथनं, ९ राजाशेठनुं - नेमिनाथनुं, १० बछा दोसीनुं पार्श्वनाथनं
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अने ११ पार्श्वनाथन. आ सर्व देहराओमां पतिमा नीचे प्रमाणे हती-७८+२५+२०+१२+४+४६+१५+३४+३६+ १५+१०=२९५. फोफलीआ वाडाथी संघ जोगीवाडे गयो.
(ढाल ९ मी) ३३ जोगीवाडो___ आ महोल्लामा ३ त्रण जिनमंदिर हतां. १ पार्श्वनाथर्नु, २ विद्याधर शेठन अने ३ भोजादोशी--पार्श्वनाथनु. आत्रणे मंदिरोमां प्रतिमा २०+३४+१०=६४ चोसठ हत्ती, अहीथो संघ मफलीपुरे गयो. ३४ मफलीपुर--
. ज्या पार्श्वनाथना मंदिरमा १२ बार जिनबिंब वांयां, न्यांथी संघ मालोवाडे गयो. ३५ मालीवाडो--
ज्यां श्रीजीरावला पार्श्वनाथ अने २४ चोवीस जिनप्रतिमा वांदी संघ मांडणने पाडे आव्यो. ३६ मांडणनो पाडो
मांडणने पाडे त्रण जिनमंदिरो हतां-१ संभवनाथनु, २ धनराजनुं-पार्श्वनाथ, अने ३ शेठ कमलशीनुं शांतिनाथर्नु. आ देहराओमां सर्व मली ९+४४+३६८९ नव्याधी जिनप्रतिमाओ इती, जे वांदी संघ गदावदाने पाडे गयो.
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( ढाल १० मी) ३७ गदावदानो पाडो-- ___आ पाडामा १ शांतिनाथर्नु, २ गला जिनदत्तनु-शांतिनाथनुं अने ३ धूपाधूलान: एम प्रण देहगं हतां जेमां प्रतिमा ५८+२५+७=९. नेवु हती. अत्रथी संघ मल्लिनाथना पाडामां गयो. ३८ मल्लिनाथनो पाडो
मल्लिनाथना पाडामां मल्लिनाथ विगेरे १७६ एकसो छहोतेर जिनप्रतिमा वांदी संघ भाणाने पाडे गयो. ३९ भाणानो पाडो___ भाणाना पाडामां पार्श्वनाथन एक देहरुं हतुं, जेमां ९८ अठाणु जिन बिंब विराजमान हतां,ते वांदी संघे समुद्रफडीआ नरफ प्रयाण कयु. ५० समुद्रफडीओ
समुद्रफडीआमां शांतिनाथनुं एक देहरुं अने कुले १९ प्रतिमाओ हती. त्यांथी संघ चोखावटीने पाडे आव्यो.
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४१ चोखावटीनो पाडो___ अहीं शांतिनाथ आदि दश जिनप्रतिमा जुहारी साणेसरा ऋषभदेवजीने देहरे जइ आठ जिनप्रतिमाओ वादी संघसमुदाय बलीयाने पाडे गयो. ४२ बलीयानो पाडो____ बलीयानापाडामां भगवान ऋषभदेव विगेरे अग्यार जिनबिंबोनी यात्रा करी संघ अबजी महेताने पाडे आव्यो. ४३ अबजी महेताना पाडो____ आ पाडामां बे देहरा हतां, १ शीतलनाथन अने २ शांतिनाथन. पहेला देहरामा ७ जिनप्रतिमाओ हती; ज्यारे बोजा देहरानी प्रतिमासंख्या परिपाटीकारे जणाची नथी. हवे संघ कुसुंभीआ पाडामां आव्यो.
(ढाल ११ मी) ४४ कुसुंभीआ पाडो___ज्यां कुल ४ देहरा हतां-१ शीतलनाय, २ पार्श्वनाथर्नु, ३ जगपालनु, ४ वाछा दोसीने त्यां मोहनपार्श्वनाथन आ ४ देहराओमां सर्व प्रतिमा १९+१२+२०१७-६८ हती,ते बांदी संघ नाकर मोदीने पाडे गयो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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४५ नाकरमोदीनो पाडो
पाडामां पण ४ देहरा हतां जेनां नाम-१ पार्श्वनाथन २ नानजी पारेखने घरे वासुपूज्यनु ३ घरमसीने घर शांतिनाथन ४ सांडा पारेखनुं श्रीपार्श्वनाथy. आ सर्वमा प्रतिमाओ ११२+१७१३१+३६=१९६ हती. जेमा एक प्रतिमा रत्ननी अने एक सीपनी हती. हवे संघ मालू संघवीने पाडे आयो.
(ढाल १२ मी) ४६ मालू संचवीनो पाडो___ अत्रआवी १ मनमोहन पार्श्वन थ जुहार्या, ए उपरांत २ हेमराजने देहरे सुमतिनाथ अने ३ रामघर संचवीने देहरे विमलनाथने वांद्या. आत्रणे देहगमा प्रतिमा २६+२+५=३३ हती, ते वांदी संघ लटकणने पाडे आव्यो भने त्यांथी भंडारीने पाडे थइ संघ भाभाने पाटे गयो. ४७ लटकणनो पाडो___लटकणने पाडे शांतिनाथ- देहरुं अने १२ प्रतिमाओहती४८ भंडारीनो पाडो
भंडारीना पाडामां पार्श्वनाथनुं देहरुं अने कुल ५ प्रतिमाओ इती.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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४९ भाभानो पाडो
भाषाने पाडे १ श्रीपार्श्वनाथनु, २ तेजपाल शेठनधर्मनाथर्नु, ३ सहसकिरणने घरे सुमतिनाथर्नु, ४ पंचायणने घरे शांतिनाथy, एम कुले ४ देहरां हता.मां प्रतिमा ५१+ १७२५+६४=१५७ हती. हवे संघ लीबडीने पाडे आव्यो. ५० लींबडीनो पाडो--
आ पाडामा ३ त्रण देहरां हतां-१ सारंगदोसीने घरे सातफणा पार्श्वनाथन, २ रायचंद दोसीने घरे शांतिनाथर्नु, अने शांतिनाथनु नवु देहरुं. आ त्रणेमा प्रतिमा १२+१६५ १४४२ हती, तेने वांदी संघ करणासाहने पाडे गयो.
___ (ढाल १३ मी) ५१ करणासाहनो पाडो___ करणासाहनो पाडो जे आजे 'कनासानो पाडो' ए नामथी ओलखाय छे, ते घणो महोटो होइ ९ देहराओथी मुशोभित हतो. देहराओनो अनुक्रम नीचे प्रमाणे हतो१ शीतलनाथy, २ वीरा दोसीनु-श्रेयांसनाथर्नु, ३ वीरपाल दोसीन-ऋषभदेवनु, ४ समरथ महेताने घरे पार्श्वनाथy, ५ हरिचंदने घरे कुंथुनाथ, ६ घरमसीन-चन्द्रप्रभy, ७ अवजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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५३
संघवीनुं - नेमिनाथनुं, ८ सारंगपारेखनुं - शांतिनाथनं ९ कमक शाहने घरे शांतिनाथनं. आ सर्व देहराओमां ६७+१४+१८ +१८+७+४७+१४+४८+४७ =२८० बसो अशी प्रतिमाओ इती. जेमां ८ सननी अने १ रूपानी हनी, ए सिवाय २ बे पट्टक हता.
करणासाहना पाडाथी संधे बांभणवाडा भणी प्रयाण कर्यु. ( ढाल १४ मी )
५२. बांभणवाडी
बांभणवाडा - वा ब्राह्मणवाडामां लगभग ८ जिनमंदिरो नीचे जगावेला हतां - १ वहोरा वीरदासने घरे वामुपूज्यनुं, २ हीरा वीसाने घरै शांतिनाथनुं, ३ सहेसु संघवीने घरे शांतिनाथनुं, ४ महावीरनुं, ५ हीरजीने घरे शांतिनाथनुं, ६ शांविनाथनुं, ७ विमलसी शेठनुं, ८ पुंआ पारेखने घरे ऋषभदेवनुं. आ सर्व मंदिरोमां प्रतिमा २४+११+७+५+१०+७+ ८+१२=८३ हती, जेमां ६ प्रतिमा रत्नमयी हती.
ब्राह्मणवाडानी यात्रा करी संघ खेतलवसही गयो. ५३ खेतलवसही
Her
ज्यां पार्श्वनाथनुं एक देहरूं तु अने तेमां २४७ जिन
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प्रतिमाओ हती, अहीं वंदन करी आपणा यात्रालुओ लट-- कणने पाडे गया.
(ढाल १५ मी) ५४ लटकणनो पाडो___ आ पाडामां१ गपूदोसीने घरे अजितनाथY, २ शा वाहाने घरे चन्द्रप्रभ, ३ लालजीने घरे संभानाथ, ४ शांतिनाथर्नु अने ५ वीरजीने घरै शांतिनाथन एम कुल ५ देहरा हता. जेमा प्रतिमा १२+५१+९३+२२+२२२०० बसो हती, तैमा ६ बिंब रत्नमय हता, अहोंथी संघ कुरा दोसीने पाडे गयो। ५५ कुंपादोसीनो पाता
कुंपादोसीना पाडापा २ देहरां हतां-१ ऋषभदेवन, २ गणीआदोसीने घरे पावनाथन. बन्नेमा प्रतिमा ८+२२= ३० हनी, अहोंथी संघ वीसावाडे गयो.
( ढाल १६ मी) ५६ वीसावाखा
वीसावाडामां १ पुजा शेठने घरे पार्श्वनाथनु, २ अमरदत्त सोनीने घरेधर्मनाथन. ३ वीसाविमून-पार्श्वनाथन, ४ अमरपालनु-अजितनाथ, ५ अने शांतिनाथनु, एम पांच देहरा हतां.
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जेमा प्रतिमा १७+११+१९+४+५०=१०१ हती, तेमां. २ प्रतिमा रत्नमयी हती. ए पछी संघ सरहोआवाडे आव्यो. ५७ सरहीआवाड़ा
ज्यां ऋषभदेव आदि त्रैवीश जिनप्रतिमा वादी संघ न्यांथी दोसीवाडे गयो. ५८ दोसीवाडो--
दोसीवाडे हटूना घर देहरासरमां भगवान् शांतिनायने भेटी संघ शांतिनाथने पाडे गयो. ५९ शांतिनाथनो पाडा-- ___ आ पाडामा १ लक्ष्मीदासना देहरासरमां शांतिनाथ विगेरे अने २ संघराजना देहरामां पार्श्वनाथ प्रमुखने वांदी संघ ३हेमा सरहीआने घरे आव्यो, त्या पार्श्वनाथ अने बीजी तालीश प्रतिमाओवादी ४ शांतिनाथने देहरे गयो, ज्या ४७ प्रतिमाओ बांदी त्याथी५कंबोइया पार्श्वनाथने देहरै जइ पार्श्वनाथ आदि सात जिनपतिमाओनां दर्शन कर्या, आ प्रमाणे शांतिनाथने पाडे ५ देहरे १२+१५+४७+४७+७=१२८ प्रतिमाओ इती. त्यांथी यात्रालुसंघ कटकीआवाडा भणी चाल्यो.
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६० कटकीआवाडा___आ महोल्लामा १ ऋषभदेवर्नु अने २ शेठ विमलदासने घरे अजितनाथर्नु एम बे देहतं हतां, बन्नेमा प्रतिमा ५५+ १४-६९ ओगणसित्तेर हती. ते वांदी संघ आनावाडे गयो. ६१ आनावादो
ज्यां नेमिनाथनुं देहरुं अने ३४ प्रतिमाओ हती ते जुहारी संघ सालवीवाडे गयो.
(हाल १७ मी) ६२ सालवीवाडी___सालबीवाडाना त्रसेरीआमां १ भगवान् नेमिनाथ अनेर मल्लिनाथनां देहराओमा ८७+७५=१६२ जिनवि वांदी संघ कुरसीवाडे शांतिनाथने देहरे आव्यो. ६३ कुरसीवाडा____ ज्यां शांतिनाथ विगेरे ७४ प्रतिमाओ हती तेने वांदीने संघ कइआवाडे आव्यो. ६४ कइआवाडा___ कइवाडामा १ महावीरने देहरे अनेक रायचंद संघवीने
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त्यां वासुपूज्यने देहरे अनुक्रमे ५+१४=१९ जिन वांद्या अने त्यांथी संघ कल्हारवाडे गयो. ६५ कल्हारवाडो
कल्हारवाडामां शांतिनाथ आदि ५५ पंचावन जिनबिंद जुहारीने संघ दणायगवाडे गयो. ६६ दणायगवाहो-- __ दणायगवाडे ऋषभदेव आदि ७० जिनबिंब वांदी संघ घांधुलीपाडे गयो. ६७ धांधुलीपाडा
धांधुलोपाडे सुविधिनाथ आदि ७१ जिन प्रतिमाओने के दन कयु अने त्यांथी उंचे पाडे गयो.. ६८ उंचो पाहा___उंचे पाडे पार्श्वनाथ आदि त्रण प्रतिमा जुहारीने संघ सागवाडा तरफ चाल्यो. ६९ सत्रागवाडो___ सत्रागवाडे पार्श्वनाथ आदि दश जिनबिंबनां दर्शन करी संघे पुनागवाडे प्रयाण कयु.
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७० पुन्नागवाडो___पुन्नागवाडे पार्श्वनाथ आदि १० जिनबिंब वांदी संघ गोल्हवाडे गयो. ७१ गोल्हवाड___ गोल्हवाडमा ३ देहरां हतां-१ पार्श्वनाथनु, २ पानाथर्नु, ३ ठाकर शाहने घरे रनप्रतिमावालुं पार्श्वनाथनु, त्रगेमा प्रतिमा ५+११९+९=१६५ हती ते वांदीने संघ धोलीपरवे गयो.
(ढाल १८ मी) ७२ धोली परव
धोली परवे ४ देहरा हता-१ मुनिसुव्रत , २ दूदा पारेखने घरे शांतिनाथनु, ३ देवदत्त दोसोने घरे चंद्रप्रभस्वामीनु, ४ रामा सेनीने घरे पार्श्वनाथन, एम धोली परवे ४ देहरां अने ५२+५+४७+१८ =१२२ एकसो बावीस प्रतिमाओ हती जेमा एक रनमयी प्रतिमा हती, ते उपरांत बे पट्ट हता. अहींथी संघ गोदडने पाडे गयो. ७३ गोदडनो पाडो____ अहीं ४ देहरां हां-१ ऋषभदेव→, २ वीसा थावरने
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५९
घरे ऋषभदेवनुं, ३ हीरजी दोसीने त्यां पार्श्वनाथनुं अने ४ उदयकरणने घरे ऋषभदेवनुं, एमां अनुक्रमे १७२+१४+१+ +५२=२३९ प्रतिमाओ हती, ते वांदी संघ नाथाशाहने पाडे गयो.
- ( ढाल १९ मी )
७४ नाथाशाहनो पाड़े
ज्यां ६ छ देहरां हवां-१ शांतिनाथनुं, २ वा दोसीने घरे चंद्रप्रभनुं, ३ पचु शेटने घरे चंद्रप्रभनुं, ४ सूग्जो शेठनुं, ५ रामा दोसीनं अने ६ रहीआ दोसीनुं, आ देहराओमां प्रतिमा १९० + ७० +१६+१५+४९+२९=३६९ हती, जेमां एक प्रतिमा सीपनी हवी. ए वांदी संघ महेताने पाडे आव्यो. ७५ महेतानो पाडो
मुनिसुव्रत अने वाछा शाहने घरे पार्श्वनाथनुं एम बे देह हां अने तेमां २० + ३ = २३ प्रतिमाओ हती जे आपणा आ संघे हर्षभर भेटी.
( ढाल २० मी )
आ प्रमाणे पाटणमा १०१ एकसोने एक जिनचैत्य ए
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टले म्होटा जिनप्रासादो हता अने नवाणु देहरासर अर्थात् छोटां जिनमंदिरो हता. ____ उपर जणावेल १०१ महोटां देहरांओमां ५४९७ पांच हजार च्यारसोने सत्ताणुं जिनप्रतिमाओ हती, ज्यारे छोटां ९९ देहरासरोमा २८६८ बे हजार आठसोने अडसठ जिनप्रतिमाओ हतो. ए सर्वमा एक विद्रुम(प्रबालरत्न ) नी, ३ सीपनी अने आडत्रीश रत्ननी हती. ___ उपर जणावेल बने प्रकारनां देहराओनी अने बीजी कुले मळी ८३९४ आठ हजार त्रणसो अने चोराणुं प्रतिमा हती, ते उपरांत ४ च्यार मूर्तिओ गौतमस्वामीनी अने च्यार पट्टको हता.
पाटणना सर्व महोल्लाओनां नाम ग्रहणपूर्वक सर्व देहरां अने बिष संख्या जणावी हवे चैत्यपरिवाडीकार आचार्य ललितप्रभसूरि पाटण शहेरनी पासेना केटलांक गाम नगरना चैत्योनी परिपाटी पण आ परिवाडीना पेटामा ज लखी जणावे छे.
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परिशिष्ट.
( ढाल २१ मी) १ वाडीपुर
के जे पाटणनी नजीकमां एक गाम हतुं ज्यां अमीझरा पार्श्वनाथ- देहरुं हतुं जेमां १ पार्श्वनाथनी अने एक बीजी एम बे प्रतिमाओ हती. २ दोलतपुर–एमां एक जिनप्रतिमा हती. ३ कुमरगिरि
कुमगिरिमा २ जिनमंदिरो शांतिनाथनां हतां-१ खर-. तरगच्छनुं जेना गंभारामां बे प्रतिमाओ हती अने भमतीमां ५० पच्चास जिनबिंब हतां. २ जु चैत्य त्यांनी पोसालमा हतुं जेना गंभारामां शांतेनाथ अने बीजी छत्रीश प्रतिमाओ मळी कुले ३७ प्रतिमाओ हती अने तेज चैत्यमा ४९६ च्यारसो छन्नु पीतलनां जिनविबो हतां. ४ वावडो__एमां शांतिनाथनुं देहरुं अने १८ अढार प्रतिमाओ हती. ५ वडली
अहिं खरतरतुं शांतिनाथनु देहरु अने ४० च्यालीस
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६२
प्रतिमाओ हती, एक मूर्त्ति जिनदत्तमूरिनी पण त्यां हती, त्यांज बीजुं देहरुं महावीरनुं हतुं मां घणीज सुंदर प्रतिमा बिराजमान हती. ३ नगीनो
एमां पार्श्वनाथनुं देहरुं हतुं जेमां ७ सात प्रतिमाओ हती. ७ नवो नगीनो
एमां पण श्री शांतिनाथनुं देहरू अने पिस्तालीश प्रतिमाओ हती, वीजुं बहोत्तेर जिनालय जिनमंदिर नवा नगीनामां हतुं जेमां कुले ७५ पंचोत्तेर प्रतिमाओ हती. ( हाल २२ मी )
८ कतपुरा
कतपुरामांबे मंदिरोहतां - १ शांतिनाथनुं अने २ समवसरणवालुं ऋषभदेवनुं बन्नेमां प्रतिमा १+७ = ८ हती. ९ रूपपुर - आ नगरमा १० दश देहरा हतां - १ पार्श्वनाथनुं, २ ऋषभदेवनुं, ३ डुंगर महेताने त्यां अजितनाथनुं, ४ बोघा शेठने घरे चोवीस तीर्थकरोनुं, ५ गणराज शेठनुं, ६ वस्ता शेडने घरे शांतिनाथनुं, ७ जगु शेठनुं, ८ सांडा वहोरानुं पार्श्वनाथनु, ९ रंगा कोठारीने घरे शांतिनायनुं अने १० कुंअरजी शेठने त्यां शांतिनाथनुं. आ दशे देहरांओमां प्रतिमा
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अनुक्रमे १००+२++६६+२४+६३+१२+३४+३+१४+ १४३६७ त्रणसो सडसठ इती. २० चाणसमा____ आ गाममा श्रीभट्टेवापार्श्वनाथनु मंदिर हतुं अने तेर्मा कुल ३४ चोत्रीश प्रतिमाओ हती. ११ कंबोई__ अत्रे पार्श्वनाथन देहरुं हतुं ज्यां गंभारामां ५ अने भमनीमां १६, सर्व मली २१ प्रतिमाओ हती. १२ मुंजपुर
अहिं एक देहरु अने त्रण प्रतिमाओ हती.
आ प्रमाणे परिवाडीकार पाटण अने तेनी नजीकना गामोनां देहराओनी हकीकत लखी छेवटे शंखेश्वर पार्श्वनाथना गुण वर्णवे छे.
(ढाल २३ मी.) शंखेश्वर तीर्थमा केटली प्रतिमाओ छे. अने तेनी ऐतितिहासिक स्थिति केवी छे ते बाबतमा परिवाडीकार कंइ पण जणावता नथी. ___ शखेश्वरचं वर्णन करी छेवटे ग्रंथकार नीचे प्रमाणे पोतानी गुरुपरंपरानो उल्लेख करवापूर्वक पोतानी ओलखाण आपी प्रस्तुत चैत्यपरिवाडीनी समाप्ति करे छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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प्रशस्ति अने उपसंहार. पूनमिया गच्छनी चंद्रशाखामां श्री भुवनप्रभसूरि नामे गुणी आचार्य थया.
भुवनप्रममूरिनी पाटे कमलप्रभसूरि अने तेमनी पाटे पुण्यमभसूरि नामे आचार्य थया.
पुण्यप्रभसूरिनी पाटे श्रीविद्यामसूरि थया जे पोताना समयमां एक गुणी पुरुष तरीके प्रसिद्ध हता.
ते विद्याप्रममूरिना शिष्य ललितपमसूरि थया के जेमणे विक्रम संवत् १६४८ ना आसोज वदि ४ चोथ अने रविवारने दिवसे आ 'पाटण-चैत्य-परिवाडी' बनावी छे.
आ परिवाडोमां पाटण अने आसपासना गामडाओनां सर्व मलीने ९५९८ नव हजार पांच सो ने अठाणु जिनबिंबोने परिवाडीकारे नमस्कार कयों छे. ___ अंतमा फरिने ग्रन्थकारे पोताना इष्टदेव शंखेश्वर पार्थनाय अने पोताना गुरने याद करीने पाटण-चैत्यपरिपाटीने पूर्ण करी छे.
मुनि कल्याण विजय.
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श्रीललितप्रभसूरि--विराचता
पाटण चैत्य-परिपाटी.'
॥ चउपई॥ सयल जिणेसर मणमी पाय । सरमति सहगुरु हईडइ ध्याइ । पाटण-चैत्यपरिवाडी कहुं । जिनबिंब नमतां पुण्य ज लहुं ॥१॥ पहिलं ढंढेरवाडइ नामि । सामला पास करुं प्रणाम । जिमणइ पासइकलिकुंड पास । मनवंछित सवि पूरइ आस॥२॥ इकत्रीस प्रतिमा बीजी होइ। बीजइ देहरइ वीरजिन जोइ । त्रिसला नंदन भेट्या सही । संघ सहू आव्या गहगही ॥३॥ डावइ पासइ चंद्रप्रभ स्वामि । जिमणइ पासइ लघु वीर ठाम । बिसई सात्रीस करूं जुहार । गौतम बिंब एक छइ सार ॥४॥ गोवाल जवाहिरी देहरासरि। सात प्रतिमानई ऊलट भरि। वंदी प्रतिमा रत्नमइ एक। दोसी पन्ना घरि सुविवेकः ॥५॥
१ आ 'परिपाटी' नी प्राचीन प्रति ललितप्रभसूरिना कोइ शिष्य नी लखेली जणाय छे, तेनी आदिमां 'ॐ नमः सिद्धं । पूज्य श्री गच्छाधिराज भट्टारक श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री ललितप्रभसूरि सदगुरुभ्यो नमः जिनाय ।' आवो उल्लेख कर्यो छे.
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चौद प्रतिमा तिहां वंदी करी । रायमल देहरासर हईइ धरी। ऋषभादिक जिन छत्रीस तिहां । एक रत्नमय वली छइ जिहाद त्रीजइ देहरइ आव्या जाम । पास जिणेसर भेट्या ताम। अंजनगिरि कइ मेरु सुधीर । जाणे उन्नत जलधर खीर॥७॥ सतर भेद पूजा सुविशाल । कीजइ भावई रंग रशाल । ऋषभादिक जिन इतालीस । भगतई भावई नामुंशीस॥८॥ सहा धनजी देहरासर दीठ । नयणे अमीय रसायण पईट । ऋषभादिक प्रतिमा इग्यार । चुवीसवटु छइ एक उदारा॥९॥ मेलाविसा देहरासरि आवि । ऋषभादिक वासठि नमुंभावित विसा भीमा देहरासर सार । ऋषभादिकजिन त्रीस विचारि
दोसी राजू देहरासर देषि । अठावीस जिनवर हरपई पेषि । रतन संघवी देहरासरि जिणंद । पंचवीस जिन दीठइ आ
गंद ॥ ११ ॥ ॥वस्तु छंद ॥ सकल जिनवर २ पाय पणमेवि। सरसति सामिणि मनि धरी । सुगुरुपाय पणमेवि भत्तिइं। चैत्यपरिवाडी पत्तनह करुं कवित नवनवी जुत्तिई। ढंढरवाडइ जुहारीमा सकल जिणेसर देव । पंच सया छपनया तिहुश्रण सारह सेव २ ॥१२॥
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॥ वीर - जिणेसर चरज० ए ढाल ॥ १ ॥ कीका पारषि देहरासरि ए । आव्या मनरंगिइं । चंदी प्रतिमा पंच तिहां ऋषभादिक चंगर, देहरs कोका पासनाह । भेट्या जिन होड़ | शत ऊपरि सात्रीस तिहाँ । काउसगी दोइ ॥ १३ ॥ दोसी श्रीवंत घरि अछइ ए । वासुपूज्य जिर्णद । इकसठ जिन बीजा अछइ ए । दीपइ दिणंद | पाटक खेत्रपालनइ ए । जिन शीतलनाथ | सतसठि शत ऊपर वली ए । भेटई सनाथ ॥ १४ ॥ पारिषि जगू पाडलइ ए । नेमिप्रतिमा जाणउ । बिंब अवर अछइ ए । भवीआं मनि आणउ । जयवंत सेठि - देहरासरि ए । शांति पडिमा जोई । प्रणमंतां ते हृदयहेजि । सबहाँ सुख होई ॥ १५ ॥ एकादश छइ अवर बिंब । रयणमय इक सार । पारी वावई ऋषभजी ए । जिन पडिमा च्यारि । गौतम गणहर दोइ त्रि । बीजी पारीवावि । सिद्धत्थनंदन भेटीआ ए । तेर प्रतिमा भावि ॥ १६ ॥ ॥ तउ चडीउ घणमाण० ए ढाल ॥ २ ॥ नागमढईं हविं आवीआ ए । दीठा नेमि जिणंद तु । प्रतिमा नव तिह्नां दीपती ए । अभिनव जाणि दिणंद तु ॥ १७॥
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पंचासरह पाटकि अछइ ए । धुरि वीर जिनवर सारतु । नव प्रतिमा वंदी करी ए । वासुपूज्य जुहारि तु ॥ १८ ॥ सतावीस बिंव तिहां नमी ए । पंचासरु प्रभु पास तु । अवर सात जिनवर नमुंए । वंछित पूरइ आस तु ॥१९॥ ऋषभ देहरइ हिवई जिन नमुंए । दश वलि भमती होइ तु । नवइ घरै छइ पास जिन । त्रिहतालीस बिंब जोइ तु ॥२०॥ ऊंची सेरी शांति जिन । भणसालीनई नामि तु । अरिहंत त्रेवीस हं नर्मु ए । उसवालानह ठामि तु ॥२१॥ सोलम जिन छ बिंबस्यु ए । नमतां हुइ प्रेमि तु । चंद्रप्रभ भीलडीतणा ए । इक नमतां हुइ पेम तु ॥ २२ ॥ सावकु पासजिन पूजतां ए। हईडइ हरिष अपार तु । अवर बावीसइ जिन नमुंए। पामउ सुख अपार तु ॥२३॥
॥ ढाल गउडीनउ ॥३॥ पाटक पीपला नामि । शांति जिणेसर च्यारि प्रतिमा अवर
नमुंए। अजितादिक जिन सात । चिंतामणि ए साह व देहरासर
नमुं ए ॥ २४ ॥ विश्वसेन कुलमांहिं चंद। नंद अनोपम अचिरा राणी तेह तणुए। अवर वीस जिण पूजी। आव्या बीजइ ए पास चिंतामणि
ए भणु ए ॥२५॥
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६९
सतसठि जिनवर होई । प्रणमी आवीइ पराकोटडी जिहां
अछइ ए । आसधीर ठाकर देहरइ | चंद्रप्रभ जिनवर बि प्रतिमा पूजी अछइ ए ।। २६ । सदयवछ ढाकर देहरइ | पास जिणेसर बि प्रतिमास्युं पर
वऱ्या ए । अष्टापद - अवतार ।
२७ ॥ रयणमय इक भं ए ।
चरतरनउं वली चैत्य | सोलम जिनवर बावनजिणालुं तेह तं ए ॥ २८ ॥
जुहारी आव्या बीजउ । प्रथम जिणेसर (अ) दभुत मूरति पेखिलाए। चैत्य बिंना मेली । बिसइ बिहुत्तरि मातपिता जिन निरषीला ए ॥ २९ ॥ सोनी तेजपाल घरि । पास जिणेसर उगणत्रीस प्रतिमा जुहारी ए । टोकर सोनीगेहि सुमति जिणंदजी प्रतिमा च्यारि उद्धाराइ ए ॥ ३० ॥
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देषी हरण्या ए चंद्रप्रभजिन गुणि भर्चा ए ॥ ओगणसठि जिनबिंब | थंभ अनोपम बिंब
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७०
॥ ढाल सामेरी ॥४॥ आव्या पाटकि त्रांगडीइ रे। ऋषभनइ देहरइ चडीइ । जिहां पाप अढारइ नडीइ रे। पुण्यरयणे तिहां वली जडीइ३१ जिमणइ पद्ममम स्वामी रे। पास पूरइ वंछित कामी। त्रणि सई पंच्योत्तरि प्रतिमा रे । निरुपम जेहनउ महिमा॥३२॥ मणिहट्टीनइ देहरइ रे । वीरजिनमहिमा मेर इ । प्रतिमा पंच ते जाणउं रे। देवदत्त चैत्य वखाणउं ॥३३॥ तेर जिणेसर भावी रे । मांका महितानइ पाटकि आवी । मृगलंछन जिन रंगइ रे । अवर वीस जिन चंगई ॥ ३४ ॥ पाटकि कुंभारीइ पेषी रे । सोनी अमीचंद घरि जिन निरषी। शांतिजिन हईइ धरिउ रे । सतर जिनस्यु परिवरीउ ॥३५॥ वळू जवहिरी घरि दीठा रे । चुवीस जिनवर बइठा । जिनपूजा भावई कीजइ रे । समकित लाहउ लीजइ ॥ ३६ ॥ ॥ढाल जलहीनउ ॥५॥ त्रिणि पल्योम भोगवीए ढाल॥ तंबोलीवाडइ आवीआ भावीआ देव सुपास । प्रतिमा दीपइ बहुत्तरि पूरइ जन-मन आस । बीजइ देहरइजिनवर सात नमउ ते सार । वुहरा रूपा मंदिरि आदि जिणंद उदार ॥ ३७॥ प्रतिमा दश छइ मनोहर सुर नर सारइ सेव ।
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मेधा पारषि घरि अछइ चंद्रप्रभ जिन देव । पांच ज प्रतिमा प्रणमीअ आव्या घूसीनइ गेह। दोइ जिणेसर बंदीअ कीधा निरमल देह ॥ ३८॥ सहासीराज देहरासरि संभव जिनवर होइ । प्रतिमा बिसई पंचावन भवियणभाव ई जोइ ।
जडानइ पाटकि सारंग देहरासर तेह । नव प्रतिमा नमी करी त्रंबडावाडउ जेह ॥ ३९ ॥ विश्वसेन-नंदन निरपीआ परपीआ नवाणउं देव । मंडप रचना चउकी हईडं हरिष्यु ए हेव । वडी पोसालनइ पाटकि सेठिं सोमानइ गेह । ऋषभादिक जिन चउत्रीस दीपइ सुंदर देह ॥ ४० ॥ भुजबल सेठि देहरासरि बिंब श्रेयांसस्वामी । पंचइ पडिमा रयणमइ अणि अवर जिन पामी ॥ वाडीअ पुरवरमंडण नयणे निरष्या आज । वीजा जिनवर पंच ए सारइ वंछित काज ॥ ४१ ॥ सहसा पारषि घरि नमउं पास जिणेसर भावि । तेर प्रतिमा अवर अछइ ऋषभनइ देहरइ ए आदि । तेर जिणंद तिहां निरषीआ हपषी मानव मन । भावई पूजा जे रचइ तेहना जनम ए धन ॥ ४२ ॥
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ઉર
॥ ढाल ऊलालानउ ।। ६॥ पाटकि सहानइ ए आवी । आदि जिणंद तिहां भावी सत्यासी पडिमा ए देषी। रायसिंघ घरि शांति निरषी ॥ ४३ ॥ सत्तरि कंदी बिंब तिहां वंदी। पाप अढारइ निकंदी। कंसार वाडइ ए दीग । शीतल जिनवर बइठा ॥४४॥ द्वादश बिंब ए नमीआ । आठ महाभय ए शमीआ। बीजइ शांतिजिन पूज्या । बावीस पडिमाए बूझ्या ॥४५॥ सहा चांपानइ घरि । बिंब सोल देहरासरि। रयणमइविव बइ ठवीआं । चउथा सहा परि नमी॥४६॥ बंद्या पास जिणंद । चउवीस दीपइ दिणंद । भला वैद्यनइ पाटकि । चंद्रप्रभ दीपइ हाक ॥४७॥ प्रतिमा बइ नमी भावि । भइंसातवाडइ ए आदि । शांति जिनादिक छत्रीस । गोयमस्वामि मुणी श॥४८॥
॥ ढाल फागनउ ॥७॥ सहावाडइ हिवइं आवीइ भावीइ देव सुपास । पंच्यासी पडिमा नमी आवीइ देहरइ पास । सप्तफणामणिशोभित ओपित देह उदार । छसइ बारोत्तर भेटीइ मेटीइ पाप अढार ॥४१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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७३
सगरकू हवई जुहारी सारी पूजा पास । पडिमा वीस वंदी करो सेठि पुंजानइ वासि । ऋषभादिक जिन त्रीसह ए दीसइ महिमानिधान । जयचंदसेठिनई मंदिर सुंदर शांति प्रधान ॥ ५० ॥ तेत्रीस जिनवर निरषीआ हरषीआ भविअण सार । हिदपुर हवई जाई गाईइशत उदार । ऊपर पंच साह वली मेलो सयल जिणेश । पाटक मोढ २नइ ए सोहइ च्यारि दिनेश || ५१ ॥ ॥ कनक कमल पगलां ए ढाल ॥ ८ ॥ पाटक नारंगइ आवीआ ए । भावीआ पास जिणंद | नारिंग प्रभु भेटीइ ए । भेटई मंगल होइ । नारिंग प्रभु भेटी० ॥ चंद्रवदन तुह्मदेषत ए । हूउ हृदय उल्हास । नारिंग० ॥५३॥ सूरज कोडि थकी घणउं ए। दीपइ तेज प्रकाश नारिंग०५४ ॥ जई पदमा पामीर ए । नामहं आठ सिद्धि । नारिंग० ॥ ५५ ॥ बयालीस पडिमा परगडी ए । आव्या शोभी गेहि । नारिंग० ॥ ५६ ॥
त्रीस ऊपरि बइ सइवली ए । जुहारी मननइ भावि । नारिंग० ॥ ५७ ॥
सोनारवाड शांति नमुं ए । पडिमा चऊद उदार । नारिंग० ॥ ५८ ॥
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Ge
बीजs देहरइ वीरजिनू ए । पोढी पडिमा एक । नारिंग० ॥५९ ॥ फोफलिआवाडइ पढम जिन अट्ठोत्तर जिनबिंब | ना० ॥ ६० ॥ वीजं देहरुं शांतिनुं ए । पडिमा पंचवीस होइ । ना० ॥ ६१ ॥ देहरs राजा सेठिनइ ए । वंदउ संभव देव । ना० ॥ ६२ ॥ पडिमा वीस तिहां दीपती ए । काछेलानइ चैत्य | ना० ॥६३॥ मुनिसुव्रत जिन पूजी ए । पडिमा बार विचारि । ना० ॥ ६४ ॥ सेठ वीरजी देहरासरि ए । पूजउ पास जिणंद । ना० ॥ ६५ ॥ पडिमा च्यारि ज सोहती ए । थावर पारषि गेह | ना० || ६६ || छयालीस पडिमा दीपती ए । सेठि महुला घरि आवि ।
ना० ॥ ६७ ॥ मुनिसुव्रत जिन वंदीआ ए । प्रतिमा पन्नर सार । ना० ॥६८॥ सेठि कक्कू देहरासरू ए | चउत्रीस पडिमा पास । ना० ॥ ६९ ॥ सेठि राजा देहरासरू ए । छत्रीस बिंबज नेमि | ना०||७० || दोसी वछा घरि आवीआ ए । पूजीआ पास जिणंद । ना० ॥ ७१ ॥ पनर पडिमा वंदीइ ए । पंचमइ देहरइ पास । ना० ॥ ७२ ॥ प्रतिमा दस तिहां दीपतीए । वंदी आणी भाव | ना० ॥७३॥
|| ढाल || वइरसेनराई व्रत लीडं ए० ॥ ९ ॥ जोगीवाड आवीआ ए । प्रभु पास जिणेसर भावीआ ए । पडिमा वीस तिहां बंदीइ ए । सयल पाप निकंदीइ ए ॥ ७४ ॥
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७५
सेठि विद्याधर घरि भणी ए। चउत्रीसइ पडिमा जिनतणीए। दोसी भोजा घरि भणउंए।श्रीपास जिणेसर हुथुणउंए।।७५॥ दस पडिमा तिहां सोहती ए । रयणमइ एक न मोहती ए। मफलीपुरि वामातनू ए । बारइ प्रतिमा धन धनू ए॥७६॥ मालीवाडइ दीठडा ए। पास जीराउल बइठडा ए। बिंब चउवीसइ जिनतणां ए। पूरइ वंछित कामणा ए॥७७॥ पाटक मांडण महितला ए। संभव जिनवर दीठला ए। नव पडिमा तिहां गुणि भरी एसयल लोकनइ जयकरी ए७८ धनराज देहरासर लही ए। पासप्रतिमा वली तिहां कही ए। चिउंआलीस पडिमा मिली ए । रयणमइ एक ज विहां वली
ए ॥७९॥ सेठि कमलसी देहरासरू ए । शांति जिनेसर मनहरू ए । छत्रीस पडिमा सुंदरू ए भिविअण जननइ सुखकरू ए ॥८॥
॥ इंद्राणी जिन पुंषीआ ए ढाल ॥१०॥ गदावदा पाटकि आवीआ ए। भेटीआ शांति जिणंद तु। धनधन जिनवरू ए । पेषतइ परमानंद तु । भविअण जयकरू
ए॥८१॥ अठावन जिनवर बंदी ए। गला जिणदत गेइि तु ।
धन २॥जि०॥ ८२॥
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अचिरानंदन निरपीआ ए। पडिमा पंचवीस जोइ तु ।
धन २॥ जि०॥८३ ॥ धुपा धला घरि हवई आवीइ ए । परपीआ सात जिणंद तु ।
धन २ ॥ जि० ॥८४॥ पाटकि मल्लिनाथ वंदीआ ए । एक सउ छिउत्तरि देव तु ।
___ . धन २॥ जि०॥८५॥ पाटक भाणानइ आवीआ ए । सेवीआ पास जिन स्वामि तु ।
धन २॥ जि० ॥८६॥ अठाणुं जिनवर सुंदरू ए । समुद्र फडीआनइ गमि तु ।
धन०२॥ ८७॥ विश्वसेननंदन वंदीआ ए। पडिमा अवर अढार तु ।
धन० २॥ ८८॥ पाटक चोषावटी आवीआ ए । शांति ज जिनवर भावि तु ।
धन २॥ जि० ।। ८९॥ दसजिनवर पूजीआ ए । साणेसर वंदिवा आवि तु ।
धन २॥ जि० ॥९० ॥ ऋषभादिक आठ जिन पेषीआ ए। पाटकि बलिआनइ
भावितु । धन २ जि० ॥९॥ रिसह जिनवर पूजीआए । इग्यारनइ प्रमाणि तु।
धन २॥ जि० ॥ ९२ ॥
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७७
महिता अबजी पाटकि जाणीइ ए । शीतल जिनवर देव तु ।
धन २॥ जि०॥ ९३ ।। जिनवर सात तिहां अरचीआ ए। लहु देहरइ जिन शांति तु।
धन २॥ जि०॥९४॥ ॥ ढाल || बाहुबलि राणानी० ॥११॥ कुसुंभीआ पाटकि हिवई । दीठला शीतल देव रे । उगणीस पडिमा तिहां जुहारीइ । वारीइ दुरगति देव रे॥१५॥ पेषउ २ श्रीजिनचंद्रमा । पामउ २ सुक्ख उदार रे । भविअचकोर जिणइ दीठडइ । उल्हसइ हईइ अपार रे। पेषु २
श्रीजिन० आंचली ॥ वीजइ देहरइ हिवई वंदीइ । पासजिनप्रतिमा बार रे। जगपाल देहरासरि नमी । पडिमा वीस ज सार रे॥पेषु०९६॥ वाछा दोसी घरि हिवइ पूजीइ । मोहनपास जिनदेव रे । सोल ज बिंब अवर नमुं । कीजइ २ भगतई सेव रे।पेषु०॥९॥ नाकरमोदीनइ पाटकई । पूजउ २ पास जिन स्वामि रे । प्रतिमा अत वली बार भणुं । पहुचइ २ बंछित काम रे।पेषु०९८ नानजी पारषि घरि वली। पूजु २ वासुपूज्य जिनदेव रे । प्रतिम सोल अवर अ छइ ।धर्मसी घरि शांति देव रे॥पेषु०९९ एकत्रीस जिनबिंब भाव सोउं । वंदीइ हरषि उल्हासि रे । सांडा पारषि देहरासरई । वंदउर श्रीजिन पास रे॥पेषु०१००
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तेत्रीस प्रतिमा अवर भणी । रत्नमय छइ वली एक रे । सोपनुं बिंबवलीजुहारीइ । अरचीइ पुष्फि विवेक रे ॥ पेषु० ॥ १ ॥ १२ ॥
॥ तरुतलि नरपति छाहडी ए ढाल ॥ मोहन पास जुहारी जी । गालू संघवी ठामि । छवीस पडिमा वंदी करी जी । कीजइ जनम सुकाम ॥ २ ॥ सुगुणनर भेटउ श्री जिनराय । ढईडलइ भाव घरी घणउ जी । आंचली ॥ [ पूजउ त्रिभुवनराय ॥
हेमराज देहरासरि भणुं जी । सुमति जिणेसर देव । इक पडिमा वली तिहां अछइ जी । त्रिभुवन सारइ सेव ॥ ३॥ मु० राजधर संघवी घरि धुनुं जी । विमल जिणेसरस्वामि । च्यारि प्रतिमास्युं सोहती जी । जईइ लटकण ठामि ||४||सु० शांति जिणंद विहां पेषीआ जी । बार प्रतिमा वली होइ । भंडारी पाटकि हुं नमुंजी | पास पडिमा तिहां जोइ ||५|| सु० 'च्यारि प्रतिमा वली तिहां कही जी । पाटक भाभानि पास। इकावन पडिमा पूजीइ जी । पूरइ वंछित आस ॥ ६ ॥ सु० । तेजपाल सेठ देहरासरि जी । धर्म जिणेसर स्वामि । सतर पडिमा पूजतां जी । सीझइ वंछित काम ॥ ७ ॥ सु० सहसकिरण घरि निरषीआ जी । सुमति श्रीजिनराय । पंचवीस पडिमा अरचीइ जी । पंचायण घरि आइ ॥ ८ ॥ सु०
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शांतिमूरति निरषी करी जी । जिनवर इसठि जेह | लींबडी पाटकि आवीइ जी । सारंगदोसी गेह ॥९ ॥ सु० सप्तफणामणि पासजो रे । बार जिणेसर देषि । रायचंद दोसी घरि वली जी । शांति जिणेसर पेषि ॥ १० ॥ सु० सोल प्रतिमा अवर अछइ जी । रयणमयी पडिमा दोइ । शांति देers fear आवीइ जी । सोलम जिणेसरजोइ ॥ ११ ॥ सु० चौद प्रतिमा तिहां वंदीइ जी । लीजइ पूजी लाह । नव प्रासाद सोहामण जी । दीठउ मननइ उछाह ||१२|| सु० ॥ वीर जिणेसर दीए देसना ढाल ॥ १३ ॥ करणा साहा पाटकि अछइ ए । शीतल जिनवर देव तु । पेषिला ऊलट अति घणइ ए । सतसठि जिनवर सेव तु ॥ १३॥ - पूजीजइ शीतल सुंदरू ए| सुंदरमुख जीसिउ चंद तु । ते जिं दीपड़ दिनकरू ए || आंकणी ॥ दोसी व देहरासरू ए| श्रेयांस जिनवर सार तु तेर प्रतिमा अवर नमुं ए-भेदूं शेत्रुंज- अवतार तु ॥ १४ ॥ ५० ॥ दोसी वीरपाल घरि भणउं ए । ऋषभदयाल जिनदेव तु । बिंब अढार अरचीइ ए । महिता समरथ घरि हेव तु ॥ १५ ॥ पू० तिहां नमुं वामानंदनू ए । सतर बिब वली जुहारि तु । हरिचंद घरि कुंथु जिणेसरू ए । सात पडिमा मनोहारि तु ॥ ॥ १६ ॥ पू० ॥
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सहा धर्मसी देहरासरि धुणुं ए। चंद्रप्रभा जिनवर स्वामि तु । सतालीस पडिमा बंदीइ ए । शवजी संघवी ठामि तु ॥ १७॥ पू० शिवादेवी नंदन चरचीइ ए । पडिमा चोंद उदार तु । रयणमय पडिमा च्यारिभणीइ ए। तेजतणउ नही पार तुा १८५० पारषि सारंग शांतिजिन् ए । अठतालीस बिंब न होइ तु । सहा कमा घरि आवीर ए । शांति जिणेसर जोइ तु ॥ १९ ॥ पू सतालीस पडिमा जुहारीइ ए । पट बि तिहां विचारि तु । रयणमय पडिमा च्यारि कही ए । रूप्पमय एक ज सार तु||२०पू०
॥ नाचइ इंद्र आणंदस्युं ढाल ॥ १४ ॥ बंभणवाss आवs | वुहरा वीरदासनइ गेह रे । वासुपूज्य जिन पूजीइ । जिन चडवीस सुदेहरे ॥२१॥ गाव २ जिनवर गुणि भरया । पामउ २ सुक्ख विशाल रे । मनमोहन जिन दीठडइ । हईडइ हरिष रशाल रे ॥ आंकणी ॥ रयणमय पडिमा इक नमी । हीरा विसा घरि जेह रे । शांतिजिणेसर दस वली । दीठइ निरमल देह रे ||२२|| गावु०॥ सहिस् संघवी घरि भणउं । मृगलंछन जिनराय रे । छ जिनवर अवर नम्या । हस्ती चित्र सुठाय रे ||२३|| गा० ॥ वीर जिणेसर देहरइ । पूज्या त्रिसला पूत्र रे ।
च्यारि पडिमा अवर नमी । हीरजी घरि पहूत रे ॥ २४गाबु० ॥
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अचिरानंदन जिहां अछइ । दस जिणंद उदार रे । शांति देहरइ ते जुहारीइ । सात बिंब छइ सार रे ॥ २५ गावु० ॥ विमलसी सेठिनई घरि वली । आठ बिंब मन मोहइ रे । रयणमय जिनवर बिंब तिहां । तेजई अतिघणुं सोहइ रे || २६गा० पारषि पुंआ घरि भणउं । ऋषभजिनंद दयाल रे | रजतमय बिंब ज च्यारि अछइ । इग्यार जिन मयाल रे॥ २७गा० तलवस ही पास जिनू । दीपइ पूनिमचंद रे ।
बिसय सताली सबिंब नसु | पे खिला परमानंद रे || २८ ॥ गाबु० || पूजा कीजइ भावसिउं । जिनवर अंगि सुचंग रे । सूरी आभइ जिम पूजीआ | सोहमइ मनरंगि रे ॥
२९ ॥ गाबु० ॥
१५ ॥
॥ धन२ साधु जे बनि रहइ ए ढाल ॥ पाटक लटकण आवीआ । दोसी गपू घरि । अजित इग्यार पडिमा वली । अरचु पूजु सुपरि ॥ ३० ॥ सुणि २ भवियण प्राणीआ । लाघउ जिनधर्म ।
पूजा भावना भावीइ । ए कहीउ मर्म | आंकणी ॥
सहा वाछा घरि हुं भणुं । चंद्रप्रभ स्वामी । एकावन जिनवर निरषीआ । छ रयणमय पामी ॥ ३१ सु०॥ लालजी घरि सुंदरू | संभवजिन देव | त्राणउं विंव तिहां दीठलां । कीजइ जिनसेव ॥ ३२ सु० ॥
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देहरइ शांति जिन निरषीआ। बावीसइ पंती। वीरजी घरि सोलम जिन् । बाबोसइ पंती ॥३३ मु०॥ कुंपा दोसी पाटकि आवीआ। रिसह जिन भावउ । आठ प्रतिमा तिहां वंदीइ । भावना भावउ ।। ३४॥सु०॥ दोसी गणीआ घरि हवइ । पास पडिमा होइ । बा वीस जिनवर परपी। पंडित जन जोइ ॥ ३५ मु०॥ सतर भेद जिन पूजीइ । ज्ञातासूत्रइ भाषी। जिनवचन हईडइ धरी । द्रुपदी साषी ॥ ३६ मु०॥
॥राग मेवाड़ ए ढाल ॥ १६ ॥ विसावाड पुंजा सेठि घरई। पासजिन निरष्यारे आज। साल प्रतिमा रयणमय इक वली। दीठइ सरी रे काना३७ मूरति निरषु रै जिननी भावसिउं। ते नर नारी धन्न । जे निजभावई पूजा आचरइ । ते नर लहइ बहुपुन्य ॥
आंचली।सेनी अमर दत घरि धर्मजिन । पडिमा इग्यार जेहा विसा विमूनइ देहरासरि । जिन त्रेवीसमु वली तेह॥३८॥ अवर अढारइ जिन तिहां वंदीइ । रत्नमय एक ज सार। अमरपाल देहरासर भणउं । अजितह रयण उदार ॥३९॥मू० प्रतिमा त्रणि वली जिहां अछइ । देहरइ पुहुता रे जाम । सोलम जिनवर निरष्या भावसिंगपंचास पडिमा रे ठाम४०म०
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सरहीआ वाडइ ऋषभजिणेसरू । वीस जिनवर जुहार । दोसी वाडइं हटूनइ घरि । शांतिजिन दीठ रे सारा॥४१मू०॥ शांतिनाथनइ पाटकि। लिषमीदास देहरासरि जिनशांति। प्रतिमा बारइ पूजइ भावस्यु । टालइ भवनी भ्रांति ॥ ४२ मू० ॥ संघराजनइ घरि वामानंदन । पनर पडिमा रे तांहि । हेमा सरहीआघरि हिवइ आवीयात्रेवीसमउ जिन ध्याइ४३मू० छयालीसपडिमा अवर जुहारी । लीजइ भवनु रे लाह। शांतिमूरनि सयालीस वली अछइ । टालइ भवनु रे दाहा॥४४० पास कंबोईउ ते वलि जुहारीइ । सात ज पडिमा रे सार । कटकीआवाडइ रिसह ज पूजीड़। पंचावन जिन उदार॥४५मू० सेठि विमलदास घरि अजितजिणेसरू । चौदह जिन धन धना निरषु जिनजी हुईइ हरिषस्युं । तसु वली वाघ इ वन ॥४६ मू०
आनावाडइ रंगई आवीइ । दीउला श्रीजिन नेमि । प्रतिमा चुत्रीस भावई पूजीइ । जिम पामउ सविषेम ॥४७मू०॥
॥ऋषभ घरि आवइ छइ ए ढाल ॥१७॥ आए सालवीवाडइ आवीइ । त्रसेरीआ वली मांहि । नेमि जिन जुहारउनी । राणीरायमइ बल्लहु ।
जीवदया प्रतिपाल | नेमि० ४८ आंचली।सत्यासी जिन पूजीइ । देहरइ श्रीजिनमल्लिानेमि ०४९
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पंच्योत्तरि बिंब निषो । कूरसीवाडइ आविरानेमि०५०॥ शांतिजिन तिहां परपीआ।अवर बिंब तिहां तेर ॥ नेमि०५१॥ कईआवाडइ वीरजी । प्रतिमा पंच उदार ॥नेमि० ॥५२॥ रायचंद संघवी वासुपूज्य । बिब चौद विचारि॥नेमि०॥५३॥ कल्हारवाडइ शांतिजी । बिंब पंचावन होइ ।नेमि०॥५४॥ दणायगवाडइ पढम जिण। सत्तरि जिनवर जोइ॥ नेमि०५५ धांधुलि पाटकि सुविधि जिन । एकोत्तरि जिनसागाने मि५६ ऊंचइ पाटकि पासजी। जिन नमुंत्रणइ ताहि॥ नेमि०५७ ।। सत्रागवाडइ जुहारीइ । बिंब नव तिहां पास॥ नेमि०॥५८॥ पुंनागवाडइ आवीइ । दस बिंब पासस्युं होइ । नेमि०६०॥ गोल्हवाडइ श्री पासजी। पडिमा पंच तिहां दीठ ॥नेमि०६१ बीजइ देहरइ त्रेवीसमु । पडिमा शत उगणीस ॥नेमि०॥२॥ रयणमय पडिमा एक वली । ठाकरसाहनइ गेहि ॥नेमि०६३ पास जिणंद तिहां दीठडा। पूगी मननी आस । नेमि० ॥६॥
॥ ढाल माई धन्न सुपन्न ॥ १८ ॥ पेषउ धउली परवई । मुनिसुव्रत जिन देव । बावन जिनपडिमा । सुर नर सारइ सेव । दूदा पारषि परि छइ। शांति जिणेसर राय ।
पंचइ जिन नमतां । मुख संपद सवि थाइ ॥६५॥ ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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दोसी देवदत्त घरि छइ । चंद्रप्रभ जिन स्वामि । सततालीस जिनवर | पूजतां शिव ठाम ।
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सोनी रामा घरि छइ । पास जिणंद जुहारउ । अढाइ जिनवर पूजी । भवभय वारउ ॥ ६६ ॥ बिंब रयणमड़ बंदु | तिहां छइ एक ज सार | चड पट्ट अनोपम । दीठइ सवि सुखकार । गोदडनड़ पाटकि । पूजउ ऋषभ दयाल | जिन सरिषा वरण | पेषउ रंग रशाल ॥ ६७ ॥ एकसउ चिउंऊत्तरि । प्रणमंता हुई प्रेम । । विसा थावर घरि छइ । रिषभ करइ ते पेम | चौदह जिण पूज्या | तिहां निज उत्तम भावि । दोसी हीरजी देहरासरि | हईडइ हरषई आवि ॥ ६८॥ पासह जिण निरष्या । तिहां वली ऊलट आणि । उदयकरणनइ घरि । ऋषभ जिन अमृत वाणि । बावन छइ जिनवर | पूजउ हरषि अपार । जिनवर गुण गातां । सुख पामउ बहुवार ।। ६९॥ ॥ कुंकुम तिलक ए ढाल ॥ १९ ॥
पाटकि नाथा सहानई आवउ । शांति जिणेसर भावउ । एकसउ नवागउं देव । हरषि हइड देव ॥ ७० ॥
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दोसी वछानइ घरि । चंद्रप्रभ देहरासरि । सत्तरि जिनबिंब नमीइ । संसारमाहइं न भमोइ ॥ ७१ ॥ सेठि पचू देहरासरि । चंद्रप्रभ जिन सुखकर । सोल बिंब तिहां साहइ । सीपमइ इक मन मोहइ ॥ ७२ ॥ सूरजी सेठि घरि आव्या। पन्नर जिनबिंब भाव्या । दोसी रामानइ घरि । ओगणपंचास जिनवर ॥ ७३ ॥ दोसी रहीआघरि देव । ओगणत्रीस कीजइ सेव । महितापाटकि निरषउ ।मनिमत्रत जिन परषउ ॥७॥ वीस जिगंद तिहां जुहारउ । पूजी समकित धारउ | सहा वछा परि पास । त्रणि जिन पूरइ ए आस ॥७॥ जिन सरिषां बिंब जाणउ । पेषी भाव मनि आणउ । नियम व्रत सुध ए पालउ । समकित रयण अजूआलउ॥७६॥
॥ ढाल भमारुली ॥ २० ॥ जिन चैत्य इम जुहारीइ तु रिभमारूली। एक सउ एक वषाणि तु। अणहल्ल पाटणि एतला तु रि भमारूली । देहरासर वली
जाणि तु ॥ ७७॥ नवाणुं ते रूअडातु रि भमारूली। प्रणमउ भगतई सोइ तु । पाप अढारइ छूटीइ तु रि भमारूली ।सुख संपद सवि होइ तु॥७८ विद्रुममय बिंब एक भणउं तु रि भमारूली । सीपमय बिंब
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रयणमय जिन पडिमा थुणुं तु रि भमारूली । अडत्रीस ते वली जोड़ तु ॥ ७९ ॥ देहरा बिंब जुहारीइतु रि भमारूली । सहस पंच विचारितु । शत च्यारि ऊपरि वली तु रि भमारूली । सत्ताणउं वली सार तु ॥ ८० ॥ देहरासर जिन पूजीइ तुरि भमारूली सहस विजिनस्वामि तु । शत आठ अधिक भण्या तु रि भमारूली । अठसटि पूरइ काम तु ।। ८१ ॥ आठ सहस त्रणि शत वली तु रि भमारूली ॥ चउराणुं जिन जेइ तु । गौतम बिंब च्यारि नमुं तु रि भ०च्यारि जपट्टज होइ तु ८२ ॥ ढाल विर जिणेसर वंदीए ॥ २१ ॥ वाडीपुरवर - मंडणउ ए । प्रणमीय २ अमीझरउ पास तु । आस पूरइ सयलतणी ए । पूजीइ २ आणी भाव तु ॥ ॥ वाडीपुरवर - मंडणउ ए | टक । वाडी - मंडण वामानंदन । सयलभुवनइ दीप ए । नमइ अमर नरिंद आवी । सयल दुरजन जीपए । अवर बिंबह एक नमतां । भगतशंकट चूरए । दुलतपुर जिन एक नमतां । सयल बंछित पूरए ॥ ८३ ॥
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कुमरगिरि जिन शांति नमुंए । महिमा ए२ जिनतणउहोइ तु । वाणीइ अमृतसम भणी ए परतर २ चैत्य विशाल तु ।
॥ कुमरगिरि जिन शांति नमुंए । त्रूटक । नमुं शांति नवइ जिनवर । भमतीइं पंचास थुणउं । पोसालमांहि चैत्य निरूपम । शांतिजिणवर तिहां भणउं । छत्रीस बिंब अवर नमीइ । गभारइ ते मुख करू । पीतल-पडिमा च्यारि सई वली। छ, उपरि मनहरू ॥८४॥ सोलम जिनवर वंदीइ ए । वावडी २ जिनवर सार तु । अढारइ पडिमा सुंदरू ए । वडलीय २षरतरचैत्य तु ।
॥सोलम जिनवर वंदीए ए॥टक ॥ वंदीइ ते सोलम जनवर । च्यालीस पडिमा जागी । श्री जिनदत्तमरी महिमा पूरइ । जगत्रमांहि वषाणीइ । श्री वीरचैत्य वंदउ नित्यइं । मूरति अतिसोहामणी। नगीनानइ चैत्य आवी । पार्थजिन सात ज भणी ॥ ८५ ॥ नवइ नगीनइ आवीइ ए । पेषोइ २ श्री जिनशांति तु । पंचतालीस मूरति पूजीइ ए। पूजतां २ आणंद होइ तु ॥
नवइ नगीनइ आवीइ ए ॥ त्रूटक ॥ नगीनइ ते नवइ आवी । बहुत्तरि जिणालं निरषोइ । त्रण मूरति अवर पेखी । सूधउ समकित परषीइ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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अवर ठामे जेह देहरा । देहरासर पार ज नही । भगतिभावई ऊलट आणी । आदर करि वंदउ सही॥८६॥
॥ गुरुजी रे वडामणटुं ए ढाल ॥ २२ ॥ कतपुरि देहरइ दीठडा तु । शांतिजिणेसर भावइ रे । एक जिनवर तिहां वंदीआ तु । समोसरण हिवइ आवि रे।८७ जिननी रे तुम्ह गुण घणा तु । गातां नावइ पार रे । चंद्र किरण जिम निरमला तु । मुगताफल जिम सार रे। ॥आंचली॥ पढम जिणेसर पूजीइ तु । सात जिणेसर चंगइ रे। रूपपुरि रंगई आवी तु । पास भेटया मनरंगई रे ॥८८जिन छिउत्तरि जिणंद पूजीआ तु । भमतीई जिन चउवीस रे। बीजइ देहरइ ऋषभजिन तु। बइ पडिमा नामउं शीस रे।८९जिनक महिता डुंगरि घरि भणुं तु । अजितजिणेसर देव रे । छासठि जिणंद अरचीइ तु । सेठि बोघा घरि हेव ।९०मिन चुवीस जिणंद निरपीआ तु । सेठि गणराज घरि आवउ रे । इसठि जिनवर तिहां अछइ । सेठि वस्ता घरि भावउ रे ॥९१ शांति जिणेसर पूजीइ तु । इग्यार जिनवर सार रे । सेठि जगू देहरासरई तु । चुत्रीस जिन उदार रे॥१२॥जिन चुहा सांडा देहरासरि तु । पास जिणेसर देव रे । उगणच्याली सइ जिनवरा तु । गौतम की नइ सेव रे ॥९३-१
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रंगा कोठारी घरि भणउं तु । सोलम जिणेसर स्वामी रे। चौद जिनवर तिहां भावीआ तु । सेठि कुंअरजी घरि
पामी रे ॥९३ जिन ॥२॥ विश्वसेन कुल माहइं दिनकरू तु । चौद पडिमा तिहां भावी रे। अनंत गुण छइ जिनजीना तु । वयणे अमृत श्रावी ।९४जिन चाणसमइ ते पूजइ तु । भट्टेवु श्री पास रे। चउत्रीस प्रतिमा निरषतां तु । पूगी मननी आस रे।९५जिन कंबोईइ सिरिपासजी तु । पडिमा पंच विचार रे । भमनीइ सोल बिंब अछइ तु । मुंजपुरि त्रणिजिन सार रे ॥
॥९६॥ जिन० ॥ ॥ एहवउ रूअडु रे नारिंगपुर ॥ए ढाल ॥ २३ ॥ मई भेटिउ रे संखेसर श्रीपासजी रे । ध्यायउ हईडा मांहि । गुणसागर रे २ भविअण जननई सुखकरु रे । जस नामई रे नवनिधि घरि सवि संपजइ रे । आवइ वरण अढार वंदइ रे २ भावई घराणद पुरंदरूरे॥९७॥ इम स्वामी रे सविजननइ छइ हितकरु रे । जोतां आनंद होइ । मुख साहइ रे २ निरुपम पूनिम चंद नि
॥आंचली ॥ सउरे ॥ इम जस महिमा रै त्रिभुवनमांहई व्यापीउ रे। नमइ अमरनरिंद । पूजइ रे २ व्यंतर ज्योतिष दिवाकरू रे।
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जिन ध्यातां रे मारगि शंकट सवि टलइ रे । दुखडां नासइ दूरि । पामइ रे २ मुखिपद सवि सुहाकरू रे ॥
॥ ९८ ॥ इम० ॥ गछि पूनिम रे शाखा चंद्र वषाणीइ रे। श्री भुवन प्रभ मूराि गुण रयणे रे २ जलनिधि जिम हुइ गाजतु रे । तिम सोहइ रे कमल प्रभसूरी सरू रे। तमु पाटि पुण्यप्रभ मूरि । दीपइ रे २ तेजई दिनकरराजतु रे
॥ ९९ ॥ इम०॥ तमु पाटई रे श्री विद्याप्रभसूरी सरूरे । जेहवउ पूनिम चंद । नंदन रे २ गुरी माता तेह तणउ रे । जिम गगनई रे तारागणछेह नही रे । गंगा विलू न पार । गुण पूरई रे २ देहभरिओ श्रीगुरुतणउ रे ॥ २०० इम० ॥ ज्ञानइं रै भरीउ जिम हुइ जलनिधी रे। षम दम मद्दवसार । कीरति रे २ भूमंडलमांहि विरतरी रे। तमु शीस ज रे ललित प्रभसूरि इम भणइ रे धन धन चैत्य
प्रवाडि। पाटणि रे २ मनोहर चैत्य ज चिति धरी रे ॥१॥ इम०॥ संवत रे सोल वली अठतालडइ रे । आसो मासि विचारी | बहुल पखि रे २ चउथि तिथि
वली जाणीइ रे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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आदित रे वार अनोपम ते कहिउ रे। तिणि दिन आदर आणि । भावई रे २ जिनना गुण वषा
णीइ रे ॥ इम स्वामी० ॥ जिन विंच ज रे जुहार- नव सहस सुंदरू रे । शत पांचई विचारि अठाणउ रे २ ऊपरि ते वली हं भ
णउं रे । ए सर्व जरै। ग्राम नगर पुर जे कह्या रे धरीआ संख्या मानि । अरचूं रे २ आणंद आणी मनि घणउ रे ॥ २०३ ॥
॥कलश ॥ इम चैत्य-प्रवाडी मनि रूहाडी रची अति साहामणी । श्रीपास पसाई चित्ति ध्याई अणहल्ल पाटण तेहतणी । श्री सद्गुरु पामी धरउ धामी स्तवन रूपि सुहाकरो । संखेसरु श्रीपास स्वामी सयल भुवनइ जय करो ॥ २०४ ॥
इति श्री भट्टारक श्री श्री ४ श्री ललित प्रभमूरि कृता समस्त चैत्य प्रपाटिका संपूर्णा ॥
१ संकुडिअजन्हुकुप्पर-गीवकरचरण बंधणावय वउ ।
अणुहबउ तुम्ह वयरी । जं लेहउ पावए मुक्खं ॥
संवत् १६४८ वर्षे पोष मासे वहुलपक्षे १ सोमे मु. गुणजो लिखितं. ॥ (चैत्य परिवाडीनी प्राचीन प्रतिनो
अन्त्य लेख.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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परिशिष्ट पंडित हर्षविजय कृता.
पाटणचैत्य-परिपाटी.
समरीय सरसती सांमनोए, प्रणमी गुरुपाय । पाटणचैत्य प्रवाडी, स्तवन करतां सुख थाय ॥१॥ पाटण पुण्य प्रसिद्ध क्षेत्र, पुण्य- अहीठांण । जिन प्रासाद जिहां घणा ए, मोटई मंडाण ॥२॥ मुझ मन अतिउमाहलो ए, जिनवंदन केरो। पाटण चैत्य प्रवाडी, करतां हरख्यो मन मेरो ॥ ३ ॥ प्रथम पंचासरे जाइइं ए, तिहां प्रासाद च्यार । पंचासर जिनवर तणो ए, देखो दीदार ॥४॥ चोपन बिंब विहां अतिभला ए, वली हीरविहार। प्रतिमा त्रिण सहगुरु तणीए, मूरति मनोहार ॥५॥ तिहांयी ऋषमजिणंद नमुं ए। बिंब पन्नर गंभारइ । एकसो बिंब अतिभलाए, भमतीए जुहारइ ॥ ६॥ वासुपूज्यने देहरे ए, बिब त्रण वखाणुं। महावीर पासे वली ए, विंब चारज जाणुं ॥ ७॥
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उंची सेरी शान्तिनाथ, प्रतिमा पंचास ।
एक उपर नमतां थकां पोहचे मन आस ॥ ८ ॥ पीपले सात्रको पार्श्वनाथ, सडसठ प्रतिमा सोहे | सडतालीस बिंब शान्तिनाथ, भवियण मन मोहे ॥ ९ ॥ चिंतामणि पाडा मांदी, शान्तिनाथ विराजे । पचवीस प्रातमा तिहां भलीए, देखी दुःख प्रभाजइ ॥ १० ॥ बीजे देहरे चन्द्रप्रभ, तिहां प्रतिमा बंदु | दोसत सडसठ उपरे, प्रणमी पाप निकंदु ॥ ११ ॥ सुगाल कोटडी प्रासाद एक, थंभणो पार्श्वनाथ ॥ धर्मनाथ नइ शान्तिनाथ, शिवपुरीनो साथ ॥ १२ ॥
ढाल || १ || देशी वाहाणनी । राग मल्हार ॥ खराकोटडीमांहि प्रसाद मनोहरुरे । के प्रासाद मनो० । पंचमेरु सम पंच के, भवियण भयहरुरे । के भवि० ॥ १ ॥ अष्टापद प्रासादके- चंद्र प्रभ लहीरे के चंद्र० । नवसत उपर सात कि, प्रतिमा तिहां कही रे । के प्रति० ॥ 1 चंद्रप्रभ प्रसादके, तेर जिणेसरुरे । के तेर० ।
पास नगीनो षट जिन । साथै दिनेसरुरे ॥ सा० ॥ २ ॥ शान्तिजिणंद प्रसाद | देखी मनहरखीएरे | देखी मन० ॥ चोरासि जिन प्रतिमा। तिहां कणे निरखीए रे । तीहां कणे० ३ ॥
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आदिनाथ जगनाथनी । मूरति अतिभलीरे । मूतिः ॥ पंचाणु तिहां प्रतिमा । वंदो मनरुलीरे ॥ वंदो० ॥ ४॥ ब्रांगडिया वाडामांही । ऋषभ सोहामणी रे। ऋषभ सोग बिंब चारसे चार के । तिहां जिनवर तणारे । तिहां जिन० ५॥ दोय प्रसाद कंसारवाड़े हवे बंदीए रे । वाडे ह० । शीतल ऋषभ नमी सब। दःख नीकंदीए रे॥के दाखनी०६॥ प्रतिमा तेर अठासी । बेहु देहरा तणीरे ॥ के बेहु०॥ जिन नमतां घरे। लखमी होय अति घणीरे॥के लखमी०७॥ साहना पाडामांही। ऋषभ जुहारीएरै ।। ऋषभ जु० । प्रतिमा दोसत बासी। मन संभारीए रे ॥ के मन० ८॥ वाडीपासतणो । महिमा छे अति घणोरे ॥ के महिमा० । वडी पोसालनापाडा।मांही श्रवणे सुणो रे । मांहि श्र० ९ ॥ एकसो सड़तालीस । जिहां प्रतिमाय छे रे। के जिहां प्रति । चोमुख वंदी जिनराज । ऋषभ नमीए पछेरे।ऋषभ नमी०१०॥ दोसतने पणयालीस। जिन प्रतिमा तिहारे । के जिन प्रति ॥ पंच बंधव, देहरु । लोक कहे तिहारे । के लोक० ११॥
ढाल ॥ २॥ देशी हडीयानी॥ देहरासर तिहां एक, देहरासर मुविशेष ।
शेठ भुजबलतणु ए, के दिसइ सोहामणु ए ॥ १॥ ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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नारिंगपुर वर पास, जागतो महिमा जास । दोसत बिंब भलाए, पणयालीस गुण निलाए ॥ २ ॥ भेडा वाडामांही, शान्ति नमुं उछांही । पंचसत जीनवरुए, एकोत्ररे उपरे ए ॥ ३ ॥ तंबोली वाडा मझार, सुपास नमुं सुखकार ! एकसो त्रीस सदाए, प्रणमुं जिन मुदाए ॥ ४॥ कुंभारीए आदिनाथ, प्रतिमा एकाशी साथ । देहरे कोरणीए, तिहां प्रतिमा घणी ए ॥ ५ ॥ सोल प्रतिमा सुखकंद, शान्तिनाथ निणंद | मांका महिता तणे ए, पाडे सोहामणे ए ॥ ६ ॥ मणीयादी महावीर, मेरुतणी परे धीर ।
चालीस बिंबसुं ए, प्रणमुं भावसुं ए ॥ ७ ॥ तीर्थ अनोपम एह, मुज मन अधिक सनेह | दीठे उपजेए, संपदा संपजे ए ॥ ८ ॥
ढाल ॥ ३ ॥
पखालीए रे सेवो श्री शान्तिनाथरे ।
हुं वंदु रे प्रतिमा तेत्रीश' साथ रे ।
१ ' तेवीस ' एवो पण पाठान्तरं छे.
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सावाडे रे सांमल पास सोहामणा विव पांचसे रे पासे श्राजिनवर तणा ॥१॥ जिनवर तणा ते बिंब जाणुं । उपर सत्तावन ए। त्रेवीसमो जिनराज वंदं । मोहिओ मुज मन्न रे। सातमो जिन प्रासाद बीजे । वंदीए ऊलट धरी । चालीस उपरे सात अधिकी सोहे तिहां प्रतिमा भली ॥२॥ सोलसमो रे शांतिजिनेसर जगजयो, भसातवाडे देखी मुझ मन सुख थयो। पांसठ जिन रे तिम वली कलिकुंड पासजी, जीराउल रे पूरे वंडित आसजी। आस पुरे गौतम स्वामी, लब्धिनो भंडार ए सगरकुइ पांत्रीस जिनवर, पार्श्वनाथ जुहारए । हबदपुरमां थूभ वर्दू जास महिमा अतिघणो, एकमना जे सेव सारे पूरे मनोरथ तेह तणो ॥३॥ वलियारवाडे रे, प्रतिमा सोहे सात रे । मूलनायक रे, शांतिजिणंद विख्यात रे। जोगीवाडे रे, जागतो जिन वेवीसमो। अठावन रे, प्रतिमासु भविअण नमो ॥४॥ नमो ऋषभ जिणंद बिजे, देहरे अति सुंदरु ।
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छत्रीस प्रतिमा तिहां वंदो, नमे जास पुरंदरु । बसे छासठ १ मल्लिजिनवर, मल्लिनाथपाडे मुदा । बावन जिन ने बावन प्रतिमा, वंदीए ते सर्वदा ॥ ५ ॥ लखीयारवाडे रे मोहनपास महिमा घणो बिंब त्रणसे रे एकोत्तर तिहां कण गणो । सीमंधर रे स्वामी प्रासाद बासठ जिना । बिंब तेरसुं रे, संभव सेवो एकमना ॥ ६॥ एकमना सेवो सुमति जिनवर, साठ प्रतिमा सोहती। आठ उपरे न्यायसेठने पाडे, जनमन मोहती ॥७॥ चोखावटीए शांतिजिनवर, छेतालीस बिंब अलंकर्या । दोढसो जिन सुबलीए पाडे, रिषभजिन जग जय वर्या ॥८॥
॥ ढाल ॥४॥ अबजीमहेताने पाडे शीतलनाथ, प्रतिमा सडतालीस । प्रतिमा दोए शान्तिनाथ । कोसंबीयापाडे शीतलबिंब अढार, श्रीपासजिणेसर बीजे देहरे जुहार ॥
१ बासठ ' एवो पण पाठ छे.
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जुहारीए जिनवरनी प्रतिमा छासठ' मनने रंगे । सो प्रतिमा वायुदेवना'पाडामां, धर्मजिणेसर संगे। चाचरीयामां पासजिणेसर, त्रणसे नव तिहां प्रतिमा । पारेख पदमा पोले बत्रीस जिन, फोफलीया नो महीमा॥१॥ सोनारवाडे सुखदायक श्रीमहावीर, छेतालीस प्रतिमा
पासे गुणगंभीर । खेजडाने पाडे शांतिजिनेसर पासे । एकसोने अडत्रीस प्रतिमा वहुँ उल्लासे ॥२॥ उल्लासे वली फोफलीयामां, पास जिगेसर देखें । एकवीस प्रतिमा पासे पेखी, पातिक सयल उवेखं ॥३॥ संभवनाथने देहरे, दोयसत त्राणु प्रतिमा सोहे । शांति जिणेसर देहरे, एकसो त्रेपन जिन मन मोहे ॥ ४॥
॥ढाल ॥५॥ खजुरी मनमोहनपास, एकसो सतावन श्रीजिनपास । चांदु मन उलास तो ॥जयो० जयो०१॥ भाभो भाभामांहि बिराजे, चारसे एक प्रतिमा तिहां छाजे
१ 'बासठ' एवो पण पाठ छे. २. 'वासुदेवना' पाठांतर ) ३. पोषदशमीनो महिमा।' ( पाठांतर ). ४. 'फरी" एषो पण पाठ छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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महिमा जगमें गाजतो ॥ जयो० जयो० २ ॥ लींबडीई श्रीशांति जिणंद, त्रणसे सात तिहां श्रीजिनचंद । दिठइ अति आणंद तो ॥ जयो० जयो० ३॥ करणे शीतलजिन जयकारी, प्रतिमा सत नवसो तिहां सारी। जनमन मोहनगारी तो ॥ जयो० जयो० ४ ॥ बिंब सतरम् शांति सोहावे, बीजे देहरे मुज मन भावे । दरिसणथी दुख जाय तो ॥ जयो जयो०५॥ देहरासर तिहां देहरा सरखं, पांत्रीस प्रतिमा तिहां कण निरखं । देखी मुझ मन हरख्युं तो ॥ जयो० जयो० ६॥ संघवीपोले पास जगदिस, प्रतिमा एकसो ओगणत्रीस'। पूरइ मनह जगीस तो ॥ जयो० जयो० ॥७॥ पीतलमे दोय बिंब विसाल, प्रतिमा तेहनी अतिसुकमाल । दीसे झाकझमाल तो ॥ जयो० जयो० ८॥
॥ढाल ॥६॥ भवि तुमे वंदो रे शंखेश्वर जिनराया ॥ ए देशी ॥ खेतलवसही दोय प्रासादे, पास जिणेसर भेट्या । सामला पासनी सुंदर मूरति, देखत सब दुःख मेटया रे॥१॥
भवियां भावे जिनवर वंदो । १. एकत्रीस' एवो पण पाठ छे.
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श्रीजिनवरने वंदन करतां, होवे अति आणंदो रे ।। भ०२॥ त्रणसे अठोत्तर जिनप्रतिमा, सामलपासनी पासे । श्रीमहावीर पासे ब्यासी जिनवरसुं,वंदो मन उल्लासे रे॥भ०३।। देहरासर तिहां दोय अनोपम, रूप सोवनमय काम । सोवन रूप रयणमे प्रतिमा, दीसे अति अभिराम भ०४॥ अजुवसा पाडामां प्रतिमा, सत्तोतर सुखदाइ । पीतलमे श्रीविमलजिणेसर, वंदो मन लय लाइ रे ॥भ०५॥ दोसीकुंपाना पाडामांही, ऋषभ जिणेसर सोहे । सुखदायक जिन सोल हे सुगुणनर, देखी जन माहे भ०६॥ वसोवाडे दोय शत अठावीस, शांविजिणेसर सामी । ओगणीस जिनमुं' दोसीवाडे,ऋषभ नमुं सिर नामी रे॥७॥ आंबादोसीना पाडामांही, मुनिसुव्रत जिन सोल । पंचहटीए एकसोने वीस,ऋषभजिणंद रंगरोल रे।भ०४ घीयोपाडामां दोय देहरा, शांतिनाथ पार्श्वनाथ । एकसो त्रेवीस तेर प्रतिमा, मुगतिपुरीनो साथ ॥ भ० ९॥ एकसो छन्नु रिषभजिणंदमुं, प्रतिमा कटकीये वंदी। धोलीपरवमां ऋषभ मुनिसुव्रत छेतालीस चिर नंदी रेरोभ०१०
१'नेउ जिन सु' ए पण पाठ छे. २. 'वीस' एवो 'पण पाठ छे.
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॥ ढाल ॥७॥ अविनाशीनी सेजडीए रंग लाग्यो रे. प देशी ॥ पारिखजगुना पाडामांहि, टांकलो पास विराजे जी। प्रतिमा चोत्रीस चतुर तुम वंदो, दालिद्र दूखने भाजे जी। महिमा जगमांहि गाजे जी ॥१॥ किया वोहराना पाडामां.शीतल प्रतिमा तीमपंचवीस जी। क्षेत्रपालना पाडामांही, शीतलनाथ नमुं निसदीस जी ॥२॥ जिहां जिनवर छे बसे एकाणु, तिहांथी कोके जइए जी। त्रणसे नेउ प्रतिमासु कोको, पारसनाथ आराधुं जी ॥३॥ अभिनंदन देहरे च्यार प्रतिमा,दोय प्रासाद तिहां वांधा जी। ढंढेर सामल कलिकुंड पासजी । नमतां पाप निकंद्या जी॥४॥ एकसो व्यासी प्रतिमा रूडी, ज्यासी जिन वर्धमान जी। महेताने पाडे मुनिसुव्रत, सित्तेर जिन परधान जी ॥५॥ बसे चोराणु बिंब सहित, श्रीशांतिनाथ प्रासाद जी। वखारतणा पाडामां बंदु, मुकी मन विखवाद जी ॥ ६ ॥ दोसत सित्तरि जिनप्रतिमा, वांदी में अभिराम जी॥ गोदडपाडे रिषभने देहरे, छन्नु बिंब इण ठाम जी ॥७॥
॥ ढाल ॥८॥ हवे शक्र सुघोषा बजावे ॥ ए देशी ॥ सालिवाडे त्रीसेरीयामांही, नेमि मल्लि ऋषभ नमुं त्यांही । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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नवपल्लव नमुं उछांही, जिणेसर ताहरा गुण गाउं ॥
जिम मनवंछित सुख पाउं । जि० १॥ साठ उपर सत तिम चार । बीजे देहरे श्रीशांति जुहार । विष ओगणसाठ उदार ॥ जि० २॥ कलारवाडे देहरां दोय, शांति बिंब एकावन होय । बावन जिनालय जोय ॥ जि० ३॥ पीतलमय बिंब सोहावे, विमलनाथ भविक मन भावे । चउ उत्तर चतुरा जिनगुण गावे ॥ जि० ४॥ तिण एकसो चोपन जिनराया, ऋषभदेवना प्रणमुं पाया। दणायवाडे शिवसुखदाया | जि० ॥५॥ धंधोलीए संभव जिन साचो, वंदि त्रेपन जिन मनमांहि माचो। तूंही जिन जगमांहि साचो ॥६॥ गोलवाडे श्रीमहावीर, सोवन वान जास शरीर । सात प्रतिमा गुण गंभीर ॥ ७॥ जि० ॥ दोय शत दस प्रतिमा पास, श्रीशतफणो जिनपास । पूरे मन केरी आश ॥ जि० ८॥ खारीवावे श्रीजिनवर्धमान, तेर प्रतिमा गुणह निधान । जिननामे कोड कल्याण ॥ जि० ॥९॥ तिहांथी श्रीपंचासरो पास, वंद्या मन धरी अधिक उल्लास ।
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पोहती मन केरी आस ॥ जि० ॥ १० ॥
कीधी चैत्यप्रवाडी में सार, मनमांहि घरी हर्ष अपार । जिन नमतां जयजयकार, जि० ॥ ११ ॥
॥ ढाल ॥ ९ ॥
जिनजी धन धन दिन मुज आजनो ॥
वांद्या श्रीजिनराज हो जिनजी,
काज संया सवि माहरां, पाम्युं अविचल राज हो । जि०१ ॥ जिनजी पंचाणुन माजने, श्रीजिनवर प्रासाद हो । जिनजी भाव घरी भवि वंदीए, मुकी मन विखवाद हो । जि०२ ॥ जिनजी वितणी संख्या सुणो, माजने तेर हजार हो । जिनजी पांचसे होतर बंदीए, सुखसंपत्ति दातार हो ॥ जि०३॥ देहरासर श्रवणे सुण्यां, पंचसयां सुखकार हो ।
निजी तिहां प्रतिमा रलीयामणी, माजने तेर हजार हो । जि०४ ॥ संवत सतर ओगणत्रीसे, पाटण कीध चोमास हो । जिनजी वाचक सौभाग्य विजयगुरु, 'संघनी पोहती आस हो । जि० ५ ॥
जिनजी साहव सुआ-सुत सुंदरु । सा रामजी सुविचार हो । जिनजी सुधो समकित जेहनो । विनयवंत दातार हो | जि० ॥ ६ ॥
१'वरु' इति पाठान्तर. २ ' साहाज्ये पाठान्तर
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जिनजी धरमधुरंधर व्रतधारी, परगटमल पारवाड हो । जिनजी तेह तणे उद्यमे करी,
कीधी में चत्यमवाड हो । जि० ॥ ७ ॥
जिनजी तव तीरथमाल घणी, कीधी में अति चंग हो । जिनजी साह रामजीना आग्रहे,
मन धरि अति उछरंग हो । जि० ॥ ८ ॥ जिनजी तवन तीरथमालातणुं, भणे सुणे वली जेह हो । जिनजी यात्रातणुं फल ते लहे, वाधे घरमसनेह हो ॥ जि०॥९॥ जिनजी श्रीविजयदेवसूरीसना, पाट प्रभाकर सुर हो । जिनजो श्री विजयप्रभसूरि जग जयो । दिन दिन चढते नूर हो ॥ जिनजी धन० ॥ १० ॥ जिनजी श्रीविजयदेवसूरींदना, साधुविजय बुध सीस हो जिनजी सेवक हरषविजयतणी, पूरो मनह जगोस हो ॥ ११ ॥ ॥ कलश ॥
इम तीरथमाला गुणविसाला, प्रवर पाटण पुर तणी । में भगति आणी लाभ जाणी, थुणी यात्राफल तणी ॥ तपगच्छनायक सौख्यदायक, विजयदेवसूरीसरो । साधुविजय पंडित चरणसेवक, हर्ष विजय मंगल करो ॥ १ ॥
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इति पाटण चैत्यप्रवाडी संपूर्ण.
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(२)
पं. होरालालनिर्मिता श्रीपत्तनजिनालयस्तुतिः।
रचना विक्रमसंवत् १९५९ नत्वाऽऽदिदेवं वृषभध्वजं च, कल्याणवल्लीप्रवरांबुवाहम् । दुर्वे स्तुति सर्व जिनालयानां,मुक्तिपदां पट्टनपू:स्थितानाम्॥१॥ पाडे मार्फतियाहे मुनिसुव्रतविभुं भूमिनाथैः सुसेव्यं, वंदे वृंदारकेंद्रैः स्तुतमवनितले मोक्षदानकदक्षम् । वामेयं पार्थनार्थ शटकमठगजागर्वभेदैकसिंह, नाना श्रीभीडभंज मुनिगणमहितं तीर्थनाथं नमामि ॥२॥ वंदे ढंढेरवाडे जगति जनगणे श्रेयसामर्पणोत्कं, पाच श्रीकंकणाई प्रकटमहमथ श्रेयसे ज्ञातपुत्रम् । एवं पार्थ च नौमि त्रिदशपतिगणैः सेवितं शामलाई, बिंबं यस्यास्ति तुंग भविकजनगुणाल्हाददं भावभक्त्या ॥२॥ वयं नमामो पडिगुंदीपाडे, श्रीशीतलं तीर्थकरं सुभक्त्या । सुरासुरेंद्रैः परिसेव्यमानं, मोक्षश्रियः केलिविलासगेहम् ॥४॥ संसाराग्निप्रतापप्रमथनसबलं शीतलं शीतलाख्यं, मोक्षार्थ मोक्षमार्गमदमहमधुना तीर्थनाथं नमामि । भक्त्या प्रासादसंस्थं सुरवरमहितं क्षेत्रपालाख्यपोले, भव्यानंदमदानप्रवणमथ सदा सर्वलोकैकबंधुम् ॥ ५ ॥ कोकापाडे नमामि श्रुतबलकलितैर्भव्यलोकः सुसेव्यं, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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कोकापार्श्वाभिधानं सकलसुरगणैः सेव्यमानक्रमाब्जम् । प्रौढं तोर्थाधिराजं भवजलतरणे यानपात्रं गुणाढ्यं, भक्त्या वंदेऽभिनंद जिनपतिमखिलप्राणिसोख्यैकलक्षम् ||६|| नमामि कोटापुरवासिधर्मशालास्थितं रथंभनपार्श्वनाथम् । श्यामच्छविं मेघमिवात्र भव्य कलापिनां मानसमोददं च ॥७॥ वंदे पंचासरं वै सुमतिजिनपतिं ज्ञातपुत्रं च गोडीपार्श्व चिंतामणि चाजितजिनपतिमत्राहमौचित्ययुक्तः । नौमि श्रीधर्मनाथं वरतरनवलक्षाभिधानं च पार्श्व, चातुर्मुख्या स्थितं चामरनर निकरैः सेव्यमानं जिनेंद्रम् ||८|| श्रीहीर रेजयदेवसूरे, श्रीसेनसुरे: शीलगुणसूरेः । नमामि बिंबानि गतानि तत्र, ससारवारांनि धनौनिभानि ॥९॥ अष्टापदाख्येऽथ जिनालयेऽहं, सुपार्श्वनाथं प्रणमामि भक्त्या । चंद्रप्रभं चंद्रनिभं जनानां मनोगतानंदसुवार्धिवृद्धौ ॥ १० ॥ खडाकोटपाडे विमलमतितोऽहं जिनपति, स्तुवे शांति शांतिप्रद मवनिगानां तनुभृताम् । तथैवं वंदेऽहं प्रथमजिननाथं तमभितो, द्विपंचाशज्जैनाळयकलितजैनायतनगम् ॥ ११॥ नारंगाभिधपार्श्वनाथमव नौ नौमि प्रमोदप्रदं, झव्हेरीत्यभिधानवाडगमहं श्रीवासुपूज्यं तथा । नाभेयं च नमामि सर्वजनतासंसारतापापहं, शांति शांतिकरं तथैव जिनपं, श्रीवाडिपार्श्वाभिधम् ॥ १२॥
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शावाडे प्रणमामि भक्तिभरतो रक्तं च मुक्तिस्त्रियां, श्रीनाभेयममेयकीतिकलितं संसारसंतारकम् । मारी येन निवारिता जिनपतिं तं नौमि मुक्त्याः पति, श्रीशांति जगतां जनोपकरणप्रावीण्यबद्धस्पृहम् ॥ १३ ॥ भक्त्यान्वितासु जनतासु नतासु तासु, कारुण्यभावकलितं कलितं मुबोधैः । शावाडगं जिनपति प्रणमामि भक्त्या, बोधैकदानविबुध विबुधोपसेव्यम् ॥ १४॥ जिनं सुपार्श्वनाथं च, पार्श्व तु शामलायम् । भव्याब्जप्रकरे लोके, बांधवं लोकबांधवम् ।। १५ ॥ वंदे शांति जिनपतिमथो शस्तभंसातवाडे, भक्त्या युक्तः कविशिशुरहं शांतिनाथं सनाथम् । नाथेन श्रीवरगणभृतां चात्र चंद्रप्रभेण, प्रासादे वै सुरनरगणैः सेवितं गौतमीये ॥ १६ ॥ श्रीशांतिनाथं नरनाथसेव्य, सनाथतां प्राणिगणे भजंतम् । स्थितं च वंदे तरभेडवाडे, संसाररोगव्यथनैकवैद्यम् ॥१७॥ वंदे जिनं श्रीपतिमादिदेवं, भक्त्या युतः खेजडपाडसंस्थम् । यस्योपरिप्राज्यतरातपत्रं,रौप्यं च मुक्त्यस्तकटाक्षतुल्यम् ॥१८॥ कर्पूरमेताभिधशस्यपाडे, स्तुवे जिनेशं वृषभध्वजं च । कर्माग्निदाहैकजलाभिषेकं, कषायक्षेषु दवाग्मितुल्यम् ॥१९॥ तंबोलिचाडे प्रभुमानमामि, श्रीवर्द्धमानं च सुपार्धनाथम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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कुंभारपाडे प्रभुमादिदेवं, पार्थ भटेवाभिधमाप्तमुख्यम् ॥२०॥ शांति नौमोह भक्त्या जिनपतिममलं डंकमेताहपाडे, कर्मारिध्वंसवीरं सकलजनहितं टांकलापार्श्वनाथम् । श्रीवीरं वै जिनेशं प्रथमजिनपति चात्र मण्यातिपाडे, कूटं नाम्ना सहस्रं वरतरनगरश्रेष्ठिमंनिर्मितं च ॥ २१ ॥ कर्मारामप्रहारप्रवरगजपति मोक्षरामाभिलाषं, संसारापारवारांनिधिगलनविधौ कुंभजातं जिनेशम् । उच्चैः पोले नमामि त्रिदशगणनतं स्वर्णकारस्य पाडे, श्रीवीरं शांतिनाथं स्तुतमवनितले नाकिनाथैश्च वन्द्यम् ॥२२॥ शांतीशं चाद्यतीथ्यां जनगणभृतफोफलियावे हि वाडे, वीथ्यां वै चोधरीणां यदुकुलतिलक नेमिनाथ नमामि । पार्थ मनमोहनाख्यं तदभिधवरवीथ्यां गतं शंखपाश्व, वीथीगं संभवं वखतजित इतः सुव्रतस्वामिनं च ॥ २३ ॥ श्रोयोगीवाडेऽद्भुतकांतिमूर्ति,नमामि वै श्यामलपार्श्वनाथम् । श्रीमल्लीपाडे किल मल्लिनाथं कषायमल्लं प्रतिमल्लनाथम् ॥२४॥ नमामि भक्त्या लखीआरवाडे, पाय जिनेंद्र मनमोहनाख्यम् । जिनाधिराज मुनिसुव्रतं च, सीमंधरस्वामिन मातमुख्यम्॥२६॥ तमजितमभिवंदे केसुनामेभ्यपाडे,मयमजिनपति वै चोखवट्टीयपाडे मुरगणनतपादं शांतिनाथ जिनेंद्र,जिनमतकजसूर्य धर्मनाथं च नौमि सुमतिजिनपमीडे पाठशालाख्यपाडे,
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वृषभविभुमपीह स्वर्णवर्णान्यदेहम् । स्थितमभिनतलोकं पाटके बल्लियाले, भविककालबोधे लोकबंधुं जिनेशम् ॥ २७ ॥ सद्भक्त्या प्रणमामि शीतलमहं पाडेऽब्जिमेताभिधे, तोर्थेशं च कसुंबियागमभितो वंदे सदा शीतलम् । गोडीपार्श्वमथो नमामि किल संशाख्यशाडे स्थितौ, मन्मोहाभिधपार्थनाथ-विमलो नैर्मल्यदानक्षमौ ॥ २४॥ भक्त्याहं वासुपूज्यं जितमदनमथो वासुपूज्याख्यवीथ्यां, खजूरीपाटके चामरगणमहितं मोहनं पाचनाथम् । भाभापाडे नमामि त्रिजगदधिपति पूज्यभामाख्यपार्थ, शांतं श्रीशांतिनाथं शमसुखसहित लोंबडीपाटके च ॥२९॥ प्रासादे निजरेशालयनिभकलकांतौ कनाशाहाडे, नानाचित्रैर्विचित्रहनजनहृदये कल्पसौंदर्यकल्पे । तीर्थेशं शांतिनाथं स्फटिकमणिमयं दिव्यकांत्या सनाथं, वंदे श्रीशीतलाख्यं वहमहमिकयाहं जिनं देवसेव्यम् ॥३०॥ तत्रैवाहमय प्रणौमि जिन श्रीशांतिनाथामिधं, प्रौढे जैननिकेतने स्थितमरं देवेशसंपूजितम् । पार्च तस्य नमामि नाभितनयं संसारसंतारकं, श्रीवीरं च नमामि भक्तिभरतः कर्मानिधाराधरम् ॥ ३१॥ नाना श्रीशांतिनाथं समुदमहमयो बामणाल्ये हि वाडे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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तीर्थेशं प्रौढभक्त्या सकलमुरनराधीशसेव्य जिनेन्द्रम् । कर्मारामाग्मितुल्यं जितमदनमरं सर्वलोकैकबंधु, संसारापारवारांनिधिगतजनतानारणे यानपात्रम् ॥ ३२ ॥ भक्त्या क्षेत्रवस्यां जिनपतिमभितः श्रीमहादेवपाच, शांति संघेशचैत्यं प्रथमजिनवरं शामलाख्यं च पार्श्वम् । संसारांभोधियानं त्वजितजिनपति नौमि योगींद्रनाथं, क्रोधादिप्रौढवैरिप्रकरविदलने शुरवीरावतंसम ॥३३॥ नौमीह शांति त्वदुवस्सिपाडे, नाभेय-शांती च वसायवाडे । पंचोटीपाडे जिनमादिदेव, वागोलपाडे वृषभं जिनं च ॥३४॥ कंबोइपाच किल घीयपाडे, शांति च तत्रैव जिनं नमामि । आदीश्वरं वै कटकीयपाडे, मोक्षपदं मोक्षगतं जिनेशम् ॥३५॥ महालक्ष्मीपाडे मुनिसुव्रततीर्थेशमधुना, तथा कोटावासिप्रवरधनिकागारमिलितम् । 'जिनं शांति वंदे सकलसुरसंघातमहितं, तथैवं वामेयं शठकमठसंतापहरणम् ॥ ३६॥ आदीश्वरं गोदडपाटकेऽहं, गणाधिनाथं किल पुंडरीकम् । भक्त्या नमामीह च नेमिनाथं, चतुर्मुखं तीर्थकरेंद्रबिंवम् ॥३७॥ वक्षारपाडे प्रभुशांतिनाथ, चंद्रप्रभ तीर्थकरं नमामि । दृष्ट्वा प्रभां तजिनमंदिरस्य,चित्रं जनौयोऽनिमिषत्वमाप॥३८॥ वंदे श्रीनेमिनाथं यदुकुलतिलकं शंति-धौं च मल्लिं,
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वाडेऽहं शालवीनां जिनपतिवरशांतिं च कल्लारवाडे । वाडे नारायणे वै प्रथमजिनपतिं धांधले संभवं च, गोलावाडे च पार्श्व सुरनरमहितं चंपकाख्यं च पार्थम् ॥३९॥ आदीश्वरं च किल टांगडियाख्यवाडे, शांतिं नमामि विदिताखिल लोकबोधम् । वंदे सहस्रफणिमंडितपार्श्वनाथ,संसारतापपरिखेदसुवारिवाहम् ४०
शांतिं च चारुगिरिनारपटं नमामि, शत्रुजयस्य पटमत्र सहस्रकूटं। विम्बंचतुर्मुखजिनस्य गिरिं च मेरु,रत्नेषु धर्ममितपादगणं गणिनाम् एवं नमंति जगतीह च ये मनुष्या,जैनालयांश्च वरपट्टनस्थितांश्च नानागृहस्थटहगांश्च तथा ह्यनेकान् जैनालयानिह हि ते किल मुक्तिभाजः ॥ ४२ ॥ प्रौढं प्रवर्तकपदं परितो गतानां, प्राप्याशु कांतिविजयाख्यंमहामुनीनाम् । आनंदमूरिपरिवारकजार्कभानामादेशमत्र किल हंससुतेन भव्यम्। जिनेशानामेवं स्तुतिरिह मया पट्टनपुरे, गतानां चैत्येषु स्वहितकृतये संविरचिता। । हिरालालारान ग्रह-विशिख-निध्यब्जमिलिते, शुभे वर्षे शस्ये सपदि वसता जामनगरै ॥४४॥
[इति श्रीपत्तनजिनालय-स्तुति: ]
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॥ तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥
कर्ता. साधुचंद्र मुनि.
प्रणमिय रिसह जिणंद पुंडरिक गणहर सहिय ॥ विरचिसु चैत्र प्रवाडि, संघह सरसी जिम विहिय ॥१॥
भास पहिल विक्कमपुर नयर, जिह तिरि नाभि मल्हार ॥ बीजइ जिणहरि वंदियइ ए, तिलसासुय सुविचार ॥२॥ सिरि ऊएशाह मंडणउ ए, सोमिय वोर जिणंदा ॥ तिमरियपुरवर सुहकरण, पासनाह जगि चंद ॥ ३ ॥
भास जोधनयर सिरि कुंथुनाथ, विहिचेहय मंडण ॥ पास संति बे वंदियह ए, दुह दाह विहंडण ॥ ४ ॥ गूढानयर सिरि कुंथुदेव, भवजलनिहितारण ॥ बीजइ जिणहरि पूजीयइ ए, सीतल सुहकारग ॥५॥
वस्तु पास जिणवर पास जिणवरि, नयरि नालउरि, आदीसर पहु भेटियए, सयल सुख संपत्ति कारण; अचिरानंदण संति जिण, भविय लोह दुहतावचंदण । हरिकुल अंवर सहसकर, साभिय नेमिकुमार, वीर जिणेसर भवणगुरू, तिहुयण तारणहार ॥ ६ ॥
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भास
शाणापुर सिरि वद्धमाण, निभह भयवारण । मुणिसुव्वय पहु पूजीयइ ए, गइनिज्जियवारण ॥ ७ ॥ नाराद्रइ सिरि वीरनाह, भवतिमिर दिणेसर । ओडापुर मुखभंडणउए, सिरि वीर जिणेसर ॥ ८ ॥
सीरोही सुरपुर अवतार, गढमढ मंदिर पोलि पगार । कणयकलस धजदंड विसाल, दीसह देउल नयण रसाल ॥९॥ खरतर वसहिं संतिजिणंद, भविय-कमल पडिबोहदिणंद । बिहु चेइ सिरि आदिजिणंद,अजियनाह किरि पूनिमचंद॥१०॥
भास
नाभिराय-घरि सोहल उ ए, सामिय रिसह जिणंद । मंकोडइ थिरथी रह्यउ ए, तिहुयण नयणाणंद ॥ ११ ॥ मंडवाडि पहु पासजिण, कज्जल कोमल काय । नीतोडइ सिरिआदिपहो, सुरनर वंदिय पाय ॥ १२ ॥ पोसोनई तिरि पढमजिण, बिहुँ चेइ सिरि संति । पास वीर रंगि पूजीयइ ए, टालइ निज मनि भ्रंति ॥१३॥ मटोडइ महिमानिलउ ए, सोहग सुंदर पास । महावीरपहु आगियह ए, तोडह भवदुह पास ॥ १४ ॥ नयर वडाली संतिजिण, तिहुयण पणमिय सामि । इडर नयरह दुन्नि जिण, रिसह पास सिवगामि ॥ १५ ॥ चंदप्पहपहु भेटियइ ए, ओडा नयर मझारे । अ कम्म अरि निजणीय, जो पहु गउ भवपारे ॥१६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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वस्तु वडहनरइ वडहनरइ आदि पहु वीर, जीवतसामिय लेपमए, कणयवन्न पादुका रयण, वालउ वेउल मालतिय, पमुह फुलतोडर रएवि। कुंकुम चंदन मद नविय, पूज रचावउ भंगि। भावन भावउ विवहपरि, जगगुरु आगलि रंगि ॥ १७ ॥ वीसलनयरई आदि वीर, मणबंछिय सुरवर। महिसाणे पहु पास संति, सिरि आदि सुमतिवर ॥१८॥ जोटाणइ पहु पासनाह, सिरि सुमति जिणेसर । सुंआलइ सिरि नेमिदेव, भवभय वणकुंजर ॥ १९ ॥ वीरमगामइ सुमति संति, जांबू मुनिसुव्रत । टोटरगामइ पासनाह, बहु लोयां सम्मत ।। २० ॥ मोइका सिरिआदिनाह, रंगपुरिं पहु पासो । धंधुकइ सिरिपंच संति, वंदउ वलि पासो ॥ २१ ॥
वलहनयरि वलहनयरि संति जिणराउ, चम्मारिपुरि संतिजिण, भवियलोभ लोयण निसायर, पालिअताणइ पासपहो, विहिय सेव सुर असुर किन्नर ॥ ललियसरोवर हरखभरि, सामिय वीर नमेश । अंग पखालिं विमल लि, पावपंक टालेसी॥ १२ ॥ गहगहंत दिव गिरि चडिय, पाजइ परमाणंद।। दह दिसि पसरिय विवह परे, सिंदवार मचकुंद ॥२३॥ कोइल करइ टहूकडा ए, विहसिय सुह वणराय । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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परवा परबइ लइसियए, सीतल वायइ वाय ॥ २४ ॥ मरुदेवा गइवर चडिय, अचिरानंदण संति । छीपकवसहिय वंदियइ ए, अदबुद सोवन कति ॥ २५॥ अनुपम सरवर पेखियइ ए, सरगारोहिणि चंग। वाधिणि निरखी बारणइ ए, रोमंचिय मह अंगि ॥ २६॥
वस्तु आदि जिणवर आदि जिणवर नमिय बहु भत्ति, देवासुर संथुणिय कुमयमोहमहिमा विहंडण; खरतरवसहिय पढजिण, नेमिनाह गिरनार मंडण । रायणतलि हिव पूजियइ, सामिआदिल-पाइ, नाग मोर बे ध्याइयइ, जे हुआ सुरकाइ ॥ २७ ॥ इणिपरि यात्रा विमलगिरे, कोधी मन उल्हासि । कवडजक्ष-सुपसाउलइ ए, टला विधन दुह गसि ॥ ८॥ पाटण पहया वरनयर, जिह विससेण मल्हार । अवर बिंब बहु वंदियइ ए, तिहां न लाभइ पार ॥२१॥ सिरि संभवपहु वाविपुरे, लोद्राडइ सिरिसंति; फीदोवनयर सिरिवीरजिण, जसु पसाइ सुह संति ॥३०॥ तेवीस वच्छर विगयमच्छर ठामि ठामि जिणेसरा। निय भाव सत्तिहि विविह भत्तिइ भविय कमल दिणेसरा । बहु संघ साथइ देवराजइ वच्छराजि नमंसिया। ते देव सुहभर जावडू थिर श्रीसाधुचंद्रि प्रसंसिया ॥३॥
॥ इति तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥
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॥ नवकार वाली पद ॥
राग भीम पलास. भला करे फीर मुर्शदमौला, अल्ला पंढरपुरवाला-ए चाल. भला होयगा भजले माला, टल्ला भवखानेवाला-ए आंकणी नही लगती कुछ दमडी कवडी, रटनेमें प्रभु गुण ठाला, माला बनाले गुणको गाले, छोड कर दुनिया चाला
॥ भला० ॥१॥ सूत प्रमुखकी गुंथ के माला, आँकार जप ले लाला; आँकारमें पंच परमेष्टी, हे माला गुणने वाला ॥ भला ॥२॥ अष्टोत्तर शत हे गुण इनके, उतने मणके कर व्हाला, हंस कहत है सुण वे प्यारा, घटमें धर ले गुणमालाभला०३॥ ॥ कार्तिक पुनम महिमा गर्भित श्री सिद्धाचल
स्तवन ॥ अबमोहे डांगरियां हे जिनंदजी,
ए देशी. सिद्ध गिरि शणगार, सुगुणनर सिद्धगिरि शणगार; दशकोटो अणगार,
सु०॥ ए आंकणी ।। ऋषभदेवना पुत्र पनोता, द्रविड नाम भुपाल. मु० जेना नामथी द्रविड देश छे,हालमां करलो ख्याल. सु०सि०॥१॥ मुख्य राजधानी के तेहनी, मिथिला अति मनोहार. सु०
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तेहना राजा प्रपुत्र प्रभुना,द्राविडजी सुखकार. सु०॥सि०॥२॥ वारीखील्य लघु बांधव तेहना, लाख गाम सिरदार. सु० राज्य ऋद्वि छोडी बन्ने भाइ, उतरवा भवपार. सुनासि०॥३॥ चारण मुनिवरनी शिक्षाथी, लेइ दीक्षा तत्काळ. सु० अणसण कर्यु एक मासन सुंदर, छोडी सकल जंजाल. मु०सि०४ शरदपुनमथी कार्तक सुदनी, पूनम सुधीनुं सार सु० आत्मध्यान धरी मोक्ष सधाया,दश कोटी मुनिलार. मु०सि०५॥ ते कारण कार्तक पुनमनो, महिमा अपरंपार. मु० महितलमां विस्तरीयो छे बहु,मेलो भरे नरनार. सु०सि०॥६॥ वली कार्तकी अहाइ परवरुप, देरी उपर जुवो धार. सु० पूनमनो दिन कलश स्वरुपे, सोभे मंगलकार. मु०॥सि०॥७॥ ते दिन दादा वृषभ देवनी, यात्रा करीने उदार. सु० द्राविडने वारिखील्य मुनिनी, प्रतिमा पूजो श्रीकार.सु०सि०॥८॥ अजय महातममां सुंदर, ए वृतांत रसाल, सु० सूरिधनेश्वरनु फरमाव्यु, वांचो थइ उजमाल. सु०॥सि०॥९॥ तेह धनेश्वर सूरीश्वरनी, मूर्ति स्थापन कार. सु० हंस कहे ते मूर्ति पूजो, सिद्धगिरि पर सार. सु०सि०॥१०॥ आदि जिन मंडल पूर्णा तिथिए, पूर्ण करवा संसार. मु० प्रति. पूनम दिन पूजा भणावे,जिनभुवने जयकार. सु०सि०११॥
GonorShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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पाटणमा वर्तमान जिनमन्दिरो. देरासर पोळ
मूलनायकजी १ अष्टापदजीनी धर्मशाळा चंद्रप्रभु, अशापदजी, सुपार्श्वनाथ
आदीश्वर, पांच मेरु २ खडा खोटडी
ऋषभदेव, शांतिनाथ २ टांगडीआवाडो
आदीश्वर, पद्मप्रभु, गणधरपगलां, सिद्धाचलजी, सहस्र. कूट,चोमुखजी शांतिनाथ, मेरु,
शिखरजी २ झवेरीवाडो
नारंगापार्श्वनाथ, आदीश्वर, पाश्वनाथ, वासुपूज्यजी, वाडीपा
श्वनाथ २ शाहपाडो
आदीश्वर, शांतिनाथ २ शाहवाडो
सुपार्श्वनाथ, शामळा पार्श्वनाथ १ भंसातपाडो
शांतिनाथ, चंद्रप्रभु, गौतमस्वामी १ तरभेडावाडो
शांतिनाथ १ खीजडानो पाडो आदीश्वर १ कपूरमहेतानो पाडो आदीश्वर २ तंबोळीवाडो
महावीरस्वामी, सुपार्श्वनाथ २ कुंभारीआपाडो ऋषभदेव, भटेवा पार्श्वनाथ २ डंकमहेतानो पाडो कलापार्श्वनाथ, शांतिनाथ ३ मणीआती पाडो महावीरस्वामी,आदीश्वर,सहस्रकट २ सोनीवाडो
महावीरस्वामी, शांतिनाथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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१२०
६ फोफळीआवाडो
१ जोगीवाडो १ मलातनो पाडो २ लखीआरवाडी
१ निशाळ पाडी है केसुशेठनोपाडो ३ चोखावटीआनो पाडो १ बळीआ पाडो १ अबजीमेतानो पाडो २ कसुंबीआवाडो २ संघवीनो पाडो १ वासुपूज्यजीनी खडकी १ खजुरीपाडो १ भाभानो पाडो १ लींबडीपाडो १ कणःसानो पाडो १ बामणवाडो ५ खेतरवसी
कातिनाथ, संखेश्वरजी, मनमोहनजीपार्श्वनाथ,संभवनाथ, मुनिसुव्रतस्वामी, नेमीनाथ शामला पार्श्वनाथ मल्लीनाथ सीमंधरस्वामी, मुनिसुव्रतस्वामी
मनमोहन पार्श्वनाथ सुमतिनाथ अजितनाथ आदीश्वर, धर्मनाथ, शांतिनाथ आदीश्वर शीतलनाथ शीतलनाथ, गोडीपार्श्वनाथ विमलनाथ, मनमोहनपाश्वनाथ वासुपूज्यस्वामी मनमोहनपार्श्वनाथ भाभापाश्वनाथ शांतिनाथ शीतलनाथ, शांतिनाथ शांतिनाथ शांतिनाथ, विमलनाथ, आदीश्वर, अजितनाग, शामला पाश्वनाथ
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१ अदुवसानो पाडो २ वसावाडो
१ पंचोटीपाडो
१ वागोळवाडो
२ घीआ पाडो
१ कटकी आवाडो
४ तरशेरीओ
१ कलारवाडी १ धांधल
१ नारणजीनो पाडो
२ शालीवाडो गोलवाड
२ महालक्ष्मीनो पाडो ४ गोदडनो पाडो
રી
शांतिनाथ शांतिनाथ, आदिनाथ ऋषभदेव
ऋषभदेव शांतिनाथ, कंबोइ पार्श्वनाथ
आदिनाथ
शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ,
महावीरस्वामी,
शांतिनाथ
संभवनाथ
ऋषभदेव
गोडी पार्श्वनाथ, बाडी पार्श्वनाथ मुनिसुव्रतस्वामी, सुमतिनाथ आदीश्वर, चंद्रप्रभु, नेमिनाथ
चोमुखजी, चंद्रप्रभु, शांतिनाथ
२ वखारनो पाडो
२ मारफतीआ मेतानो पाडो मुनिसुव्रतस्वामी, भीडभंजन
पाश्र्वनाथ
३ ढंढेरवाडो
कलिकुंड पार्श्वनाथ, शामळा,
पार्श्वनाथ, महावीरस्वामी
१ पडीगुदी
शीतलनाथ
१ खेतरपाळनो पाडा
शीतलनाथ
२ कोकानो पाडो
कोकापार्श्वनाथ, अभिनंदन
स्वामी,
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१ कोटावाळानी धर्मशाळा १ पंचासरो
१०० मोटां देरासर घर देरासर जुदां.
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स्तंभन पार्श्वनाथ पंचासरा पार्श्वनाथ, नवखंडापार्श्वनाथ, धर्मनाथ, महावीर - स्वामी, बे सुपार्श्वनाथ, चिंतामणिजी, अजितनाथ, शांतिनाथ, चोमुखजी, गोडीपार्श्वनाथ, सुमतिनाथ, श्री हे. मचंद्राचार्यजी, विजयदानसूरीजी, विजयही रसूरीजी, विजयसेनसूरीजी विगेरे पूर्वाचार्यानी मूत्तिओ.
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पैकोना
तो
जैन
१२३
शुद्धिपत्रक. पंक्ति अशुद्ध शुद्ध
पैकीनो आछो
ओछो ता वैत्र
चैत्र७ सात ८ आठ मलाधरी
मलधारी घखतथी वखतथी जन चैत्योनी चैत्योनां ९+९८ ९५९८ पाडे पाडे
-३५२ ६ ठा ६ ठी मालाबाडे मालीवाडे गालहवाडमां गोल्हवाडमां शखेश्वरनुं शंखेश्वरनुं भुवनप्रम- भुवनप्रभश्रीविद्याप्रम- श्रीविद्यापम
ललितप्रम- ललितप्रभShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
2902 & gะ ๕๕๖ * * *
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७९
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59
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९७
९७
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९८
१०१
51
१०४
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१०७
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१८
१
३
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ሪ
૨
१३
१५
१७
३
१३
११
15
१२
१९४
बिब
चद्रप्रभा
चोंद
विर
जीनवरुए
भसात
विव
-
वदं
शीतल बिंब
पीतलमे
माहे
साहब सुआ
चत्य
-णनगुणा
ससार
-निधि
- पाश्च
जिनपति
बिंब
चंद्रप्रभ
चौद
वीर जिनवरु ए
भेसात
वि
बंदू शीतळ बिंब
पीतलमय
मोहे
साह वसुआचैत्य
-
- जनगणा
संसार-निधि
- पार्श्व
- जिनपति
६
आ सिवाय मात्रा रेफ विगेरे खण्डित थवा संबंधी या ash जवा संबंधी अने केटलीक पदच्छेद संबंधी रही गयेली स्खलनाओ सुज्ञ पाठकोए सुधारी वांचं.
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