SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ ॥ ढाल ॥७॥ अविनाशीनी सेजडीए रंग लाग्यो रे. प देशी ॥ पारिखजगुना पाडामांहि, टांकलो पास विराजे जी। प्रतिमा चोत्रीस चतुर तुम वंदो, दालिद्र दूखने भाजे जी। महिमा जगमांहि गाजे जी ॥१॥ किया वोहराना पाडामां.शीतल प्रतिमा तीमपंचवीस जी। क्षेत्रपालना पाडामांही, शीतलनाथ नमुं निसदीस जी ॥२॥ जिहां जिनवर छे बसे एकाणु, तिहांथी कोके जइए जी। त्रणसे नेउ प्रतिमासु कोको, पारसनाथ आराधुं जी ॥३॥ अभिनंदन देहरे च्यार प्रतिमा,दोय प्रासाद तिहां वांधा जी। ढंढेर सामल कलिकुंड पासजी । नमतां पाप निकंद्या जी॥४॥ एकसो व्यासी प्रतिमा रूडी, ज्यासी जिन वर्धमान जी। महेताने पाडे मुनिसुव्रत, सित्तेर जिन परधान जी ॥५॥ बसे चोराणु बिंब सहित, श्रीशांतिनाथ प्रासाद जी। वखारतणा पाडामां बंदु, मुकी मन विखवाद जी ॥ ६ ॥ दोसत सित्तरि जिनप्रतिमा, वांदी में अभिराम जी॥ गोदडपाडे रिषभने देहरे, छन्नु बिंब इण ठाम जी ॥७॥ ॥ ढाल ॥८॥ हवे शक्र सुघोषा बजावे ॥ ए देशी ॥ सालिवाडे त्रीसेरीयामांही, नेमि मल्लि ऋषभ नमुं त्यांही । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034999
Book TitlePatan Chaitya Paripati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijayji Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy