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________________ ૭૮ तेत्रीस प्रतिमा अवर भणी । रत्नमय छइ वली एक रे । सोपनुं बिंबवलीजुहारीइ । अरचीइ पुष्फि विवेक रे ॥ पेषु० ॥ १ ॥ १२ ॥ ॥ तरुतलि नरपति छाहडी ए ढाल ॥ मोहन पास जुहारी जी । गालू संघवी ठामि । छवीस पडिमा वंदी करी जी । कीजइ जनम सुकाम ॥ २ ॥ सुगुणनर भेटउ श्री जिनराय । ढईडलइ भाव घरी घणउ जी । आंचली ॥ [ पूजउ त्रिभुवनराय ॥ हेमराज देहरासरि भणुं जी । सुमति जिणेसर देव । इक पडिमा वली तिहां अछइ जी । त्रिभुवन सारइ सेव ॥ ३॥ मु० राजधर संघवी घरि धुनुं जी । विमल जिणेसरस्वामि । च्यारि प्रतिमास्युं सोहती जी । जईइ लटकण ठामि ||४||सु० शांति जिणंद विहां पेषीआ जी । बार प्रतिमा वली होइ । भंडारी पाटकि हुं नमुंजी | पास पडिमा तिहां जोइ ||५|| सु० 'च्यारि प्रतिमा वली तिहां कही जी । पाटक भाभानि पास। इकावन पडिमा पूजीइ जी । पूरइ वंछित आस ॥ ६ ॥ सु० । तेजपाल सेठ देहरासरि जी । धर्म जिणेसर स्वामि । सतर पडिमा पूजतां जी । सीझइ वंछित काम ॥ ७ ॥ सु० सहसकिरण घरि निरषीआ जी । सुमति श्रीजिनराय । पंचवीस पडिमा अरचीइ जी । पंचायण घरि आइ ॥ ८ ॥ सु० 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034999
Book TitlePatan Chaitya Paripati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijayji Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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