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श्रीललितप्रभसूरि--विराचता
पाटण चैत्य-परिपाटी.'
॥ चउपई॥ सयल जिणेसर मणमी पाय । सरमति सहगुरु हईडइ ध्याइ । पाटण-चैत्यपरिवाडी कहुं । जिनबिंब नमतां पुण्य ज लहुं ॥१॥ पहिलं ढंढेरवाडइ नामि । सामला पास करुं प्रणाम । जिमणइ पासइकलिकुंड पास । मनवंछित सवि पूरइ आस॥२॥ इकत्रीस प्रतिमा बीजी होइ। बीजइ देहरइ वीरजिन जोइ । त्रिसला नंदन भेट्या सही । संघ सहू आव्या गहगही ॥३॥ डावइ पासइ चंद्रप्रभ स्वामि । जिमणइ पासइ लघु वीर ठाम । बिसई सात्रीस करूं जुहार । गौतम बिंब एक छइ सार ॥४॥ गोवाल जवाहिरी देहरासरि। सात प्रतिमानई ऊलट भरि। वंदी प्रतिमा रत्नमइ एक। दोसी पन्ना घरि सुविवेकः ॥५॥
१ आ 'परिपाटी' नी प्राचीन प्रति ललितप्रभसूरिना कोइ शिष्य नी लखेली जणाय छे, तेनी आदिमां 'ॐ नमः सिद्धं । पूज्य श्री गच्छाधिराज भट्टारक श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री ललितप्रभसूरि सदगुरुभ्यो नमः जिनाय ।' आवो उल्लेख कर्यो छे.
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