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पोते 'चैत्य' अने 'देहरां' कहे छे अने तेनी संख्या १०१ एकसो ने एक जणावे छे, छोटां वा घरमंदिरोने 'देहरासर' नामथी उल्लेखे छे.' अने तेनी संख्या ९९ नवाणुं होवार्नु कहे छे, पहेला दर्जानां चैत्योनी प्रतिमासंख्या ५४९७ पांच हजार चारसो ने सत्तागुंनी जणावे छे, बीजा प्रकारनां जिनमंदिरो-घरमंदिरोनी कुल प्रतिमासंख्या २८६८ बे हजार आठसो ने अडसठ एटली जणावे छे.
एज प्रसंगे प्रतिमाओनी नोंध करतां परिवाडीकार लखे छे के पाटणमा प्रतिमा विद्रुम-प्रधालानी छे, २ सी. पनी अने ३८ अडत्रीश रत्ननी प्रतिमाओ छ, ४ च्यार गौतम स्वामीनां बिंब छे अने ४च्यार चतुर्विशतिपट्टको छे.
आलुं विवेचन कर्या बाद परिवाडीकार बन्ने प्रका. रनां चैत्योनी प्रतिमाओनी कुलसंख्यानो ८३९४ ए आंकडो जणाधे छे,पण पूर्व जणान्या प्रमाणे अत्र पण संख्यानो सरवालो मलतो नथी, बन्ने प्रकारनां चैत्योनी प्रतिमाओनो
१ बीजा चैत्यपरिवाडीकारोए पण म्होटा मंदिर वा जिनप्रासादोने माटे देहरं' अने छोटा घरमंदिरोने माटे ‘देरासर' शब्द वापर्यो छे जुओ-"देहरासर तिहां देहरा सरखं" ( हर्षविजयकृत पाटण त्यपरिवाडी) " जिनजी पंचाणुने माझने श्रीजिनवरप्राप्ताद हो xxx देहरासर श्रवगे सुण्या पंच सया सुखकार हो" ( हर्षवि०पा०चै०परि०) "सूरतमाहे त्रण भूयरां देहरां दश श्रीकार दोय सय पणतीस छे देहरासर मनोहार ॥"(लाधा
शाहकृत मूरतचैत्यपरिवाडी-प्राचीन तीर्थमालासंग्रह भा०१पृ०६७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com