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इतिहासना कीमती अंशो चैत्यपरिपाटिओना गर्भमांथो जन्मे छे के जेनी कीमत थाय तेम नथी.
चैत्यपरिवाडीओनो उत्पत्तिकाल. चैत्यपरिवाडीओ क्यारथी रवावा मांडी तेनो निश्चित निर्णय आपी शकाय तेम नथी. चैत्य परिवाडीओ, तीर्थमालाओ अ. थवा एवाज अर्यने जणावनारा रासाओ घणा जुना वखतथी लखाता आव्या छे एमां शक नथी, पण एवा भाषासाहित्यनी उत्पत्तिना प्रारंभकालनो निर्णय हजी अंधारामां छे, कारण के आ विषयमा आज पर्यन्त कोइ पण विद्वाने ऊहापोह तक कों नथी, छतां जैन साहित्य ना अबलोकनयी एटलुं तो निश्चित कही शकाय के जैनोमां चैत्य वा तीर्थयात्राओ करवानो अने तेनां वर्णनो लखवानो रीवाज घगो ज प्राचीन छे. तीर्थयात्राओ करवानो रिवाज विक्रमनी पूर्व चोथी सदीमा प्रचलित हतो एम इतिहास जणावे छे, ज्यारे तेनां वर्णनो लखवानी शरुआत पण विक्रमनी पहेली वा बीजी सदी पछीनी तो न ज होइ शके; ए विषयनो विशेष खुलासो नीचेन। विवेचनथी था शकशे
जैन साहित्यमा सर्वथी प्राचीन सूत्र आचारांगनी नियुक्तिमा तात्कालिक केटलांक जैन तीर्थोनी नोंध अने तेने नमस्कार करवामां आव्यो छे. निशीथ चूर्णिमां धर्मचक्र, १ “ अट्ठावय उज्जिते गयग्गपर य धम्मचके य । . पासरहावतानगं चमरुपायं च वन्दामि ॥"
.-" गजानपदे-दशार्ग कूटवर्तिनि । तथा तक्षशिलायो धर्म चक्रे तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com