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________________ अने प्रतिमानी प्रतिष्ठाओ एकदम बंध पडे छे अने ते सं० १३७९ ना वर्षमा पाछी शरु थती देखा दे छे अने ते पछीना वखतमां ते प्रवृत्ति दिवसे दिवसे वधती जती जणाय छे, संवत् १३७१ अने १३८१ नी सालमा खरतरगच्छ संबन्धी शान्तिनाथ विधिचैत्यमां जिनकुशलसूरिना हाथे अनेक जिन बिम्बो अने आचार्यमूर्तिनी प्रतिष्ठाओ थाय छे, आ शांतिनाथ विधिचैत्य आजे पण खराखोटडीना पाडामां सुधरेल दशामा विद्यमान छे. संवत् १४१७, १४२० अने १४२२ ना वर्षमां पण पाटणमा प्रतिष्ठाओ थयाना लेखो त्यांनी मूत्तिओ उपरथी मली आवे छे, तेथी आ वात निश्चित थाय छे के प्राचीन पाटणना भंग पछी संवत् १३७९ ना वर्ष पहेलाना कोइ पण वर्षमा आधुनिक पाटण वसी गयं होवू जोइये. उपर प्रमाणे चौदमी सदीना छेल्ला चरणमा फरिथी वसेल नूतन पाटणे पण दिवसे दिवसे उन्नति करवा मांडी अने वखत जतां ते पोतानी प्राचीन कीर्तिने जालवी राखवाने योग्य थइ गयुं, अल्लाउद्दीनना जुल्मथी त्रास पामेला, मुसलमानोना नामथी पण भडकता हिन्दुओनां हृदयो तुगलक फिरोजशाहनी सरदारीना वखतमां कंडक शांत पडयां, मुसलमानोना भयनी शंकाथी नवीन देहरासरो बनावबामां संकोचाता हिन्दुओ फिरोजशाहना वखतमा निर्भय थया अने फरिथी नवीन चैत्यो बनाववामा प्रवृत्त थया, आपणा आ पाटणमां पण आ बखाथी मांडीनेज नवां देहरा अने नवी प्रतिमाओ विशेष प्रमाणमां बना लागी. जे प्रवृत्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034999
Book TitlePatan Chaitya Paripati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijayji Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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