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________________ १९ लगभग सत्तरमी सदीना छेडा पर्यन्त चालु रही, आ लगभग त्रणसो वर्ष जेटला लांबा गालामा प्रस्तुत नवीन पाणमां सेकडो देहरां अने हजारो प्रतिमाओ बनी चुकी हती, लीलं झाड प्रचण्ड पत्रनना झपाटाथी पडी जतां तेना ज मूलमाथी फूटेला फणगा कालान्तरे मूलवृक्षनुं रूप धारण करे छे, ते ज रीते प्राचीन पाटण अलाउद्दीनना अन्यायनो भोग थर पडतां तेना ज सीमाप्रदेशमां नवं वसेलुं पाटण कालान्तरे एक समृद्ध नगर बनी पोतानी पूर्व रूपातिने ताजी राखत्रा समर्थ थयुं. प्रस्तुत चैत्यपरिवाडी ते आ बीजा पाटणनी समृद्ध दशाना समयमां बनेली तात्कालिक जैन मंदिरोनी नोंध वा 'डीरेक्टरी' समान छे. कर्ता अने समय-निर्देश. आ चैत्यपरिवाडीना कर्ता कोण छे अने तेमणे आ परिवाडी क्यारे बनावी इत्यादि हकीकत तेमणे पोते ज समाप्ति लेखमां जणावो दोधी छे, जेनो सार आ प्रमाणे छे 'घूनमिया गच्छनी चन्द्र (प्रधान) शाखामां भुवनप्रभसूरि थया, तेमनी पाढे कमलप्रभसूरि अने कमलप्रभनी पाटे आचार्य श्री पुण्यप्रभसूरि थया, पुण्यप्रभता पट्टधर विद्याप्रभसूरि थया, विद्याप्रभसूरिना' पट्टधर शिष्य श्रीललितप्रभ सूरि थया, ते लतिप्रभसूरिए विक्रम संवत् १६४८ ना आसोज वदि ४ अने रविवारने दिवसे अगहिल पाटणमां आ पाटणनी चैत्यपरिवाडी बनावी. " १ सं. १६६७ ना कार्तिक सुदि ७ ने शुक्रवारने दिवसे पाटणमां उपाध्याय श्रीधर्मसागरजीने संघवहार करनार जुदा जुदा गच्छोना १२ आचार्योंमां आ विद्याप्रभसूरि पग सामेल हता । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034999
Book TitlePatan Chaitya Paripati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijayji Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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