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________________ मेधा पारषि घरि अछइ चंद्रप्रभ जिन देव । पांच ज प्रतिमा प्रणमीअ आव्या घूसीनइ गेह। दोइ जिणेसर बंदीअ कीधा निरमल देह ॥ ३८॥ सहासीराज देहरासरि संभव जिनवर होइ । प्रतिमा बिसई पंचावन भवियणभाव ई जोइ । जडानइ पाटकि सारंग देहरासर तेह । नव प्रतिमा नमी करी त्रंबडावाडउ जेह ॥ ३९ ॥ विश्वसेन-नंदन निरपीआ परपीआ नवाणउं देव । मंडप रचना चउकी हईडं हरिष्यु ए हेव । वडी पोसालनइ पाटकि सेठिं सोमानइ गेह । ऋषभादिक जिन चउत्रीस दीपइ सुंदर देह ॥ ४० ॥ भुजबल सेठि देहरासरि बिंब श्रेयांसस्वामी । पंचइ पडिमा रयणमइ अणि अवर जिन पामी ॥ वाडीअ पुरवरमंडण नयणे निरष्या आज । वीजा जिनवर पंच ए सारइ वंछित काज ॥ ४१ ॥ सहसा पारषि घरि नमउं पास जिणेसर भावि । तेर प्रतिमा अवर अछइ ऋषभनइ देहरइ ए आदि । तेर जिणंद तिहां निरषीआ हपषी मानव मन । भावई पूजा जे रचइ तेहना जनम ए धन ॥ ४२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034999
Book TitlePatan Chaitya Paripati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijayji Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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