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________________ ७० ॥ ढाल सामेरी ॥४॥ आव्या पाटकि त्रांगडीइ रे। ऋषभनइ देहरइ चडीइ । जिहां पाप अढारइ नडीइ रे। पुण्यरयणे तिहां वली जडीइ३१ जिमणइ पद्ममम स्वामी रे। पास पूरइ वंछित कामी। त्रणि सई पंच्योत्तरि प्रतिमा रे । निरुपम जेहनउ महिमा॥३२॥ मणिहट्टीनइ देहरइ रे । वीरजिनमहिमा मेर इ । प्रतिमा पंच ते जाणउं रे। देवदत्त चैत्य वखाणउं ॥३३॥ तेर जिणेसर भावी रे । मांका महितानइ पाटकि आवी । मृगलंछन जिन रंगइ रे । अवर वीस जिन चंगई ॥ ३४ ॥ पाटकि कुंभारीइ पेषी रे । सोनी अमीचंद घरि जिन निरषी। शांतिजिन हईइ धरिउ रे । सतर जिनस्यु परिवरीउ ॥३५॥ वळू जवहिरी घरि दीठा रे । चुवीस जिनवर बइठा । जिनपूजा भावई कीजइ रे । समकित लाहउ लीजइ ॥ ३६ ॥ ॥ढाल जलहीनउ ॥५॥ त्रिणि पल्योम भोगवीए ढाल॥ तंबोलीवाडइ आवीआ भावीआ देव सुपास । प्रतिमा दीपइ बहुत्तरि पूरइ जन-मन आस । बीजइ देहरइजिनवर सात नमउ ते सार । वुहरा रूपा मंदिरि आदि जिणंद उदार ॥ ३७॥ प्रतिमा दश छइ मनोहर सुर नर सारइ सेव । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034999
Book TitlePatan Chaitya Paripati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijayji Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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