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आदिनाथ जगनाथनी । मूरति अतिभलीरे । मूतिः ॥ पंचाणु तिहां प्रतिमा । वंदो मनरुलीरे ॥ वंदो० ॥ ४॥ ब्रांगडिया वाडामांही । ऋषभ सोहामणी रे। ऋषभ सोग बिंब चारसे चार के । तिहां जिनवर तणारे । तिहां जिन० ५॥ दोय प्रसाद कंसारवाड़े हवे बंदीए रे । वाडे ह० । शीतल ऋषभ नमी सब। दःख नीकंदीए रे॥के दाखनी०६॥ प्रतिमा तेर अठासी । बेहु देहरा तणीरे ॥ के बेहु०॥ जिन नमतां घरे। लखमी होय अति घणीरे॥के लखमी०७॥ साहना पाडामांही। ऋषभ जुहारीएरै ।। ऋषभ जु० । प्रतिमा दोसत बासी। मन संभारीए रे ॥ के मन० ८॥ वाडीपासतणो । महिमा छे अति घणोरे ॥ के महिमा० । वडी पोसालनापाडा।मांही श्रवणे सुणो रे । मांहि श्र० ९ ॥ एकसो सड़तालीस । जिहां प्रतिमाय छे रे। के जिहां प्रति । चोमुख वंदी जिनराज । ऋषभ नमीए पछेरे।ऋषभ नमी०१०॥ दोसतने पणयालीस। जिन प्रतिमा तिहारे । के जिन प्रति ॥ पंच बंधव, देहरु । लोक कहे तिहारे । के लोक० ११॥
ढाल ॥ २॥ देशी हडीयानी॥ देहरासर तिहां एक, देहरासर मुविशेष ।
शेठ भुजबलतणु ए, के दिसइ सोहामणु ए ॥ १॥ ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com