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________________ ॥ तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥ कर्ता. साधुचंद्र मुनि. प्रणमिय रिसह जिणंद पुंडरिक गणहर सहिय ॥ विरचिसु चैत्र प्रवाडि, संघह सरसी जिम विहिय ॥१॥ भास पहिल विक्कमपुर नयर, जिह तिरि नाभि मल्हार ॥ बीजइ जिणहरि वंदियइ ए, तिलसासुय सुविचार ॥२॥ सिरि ऊएशाह मंडणउ ए, सोमिय वोर जिणंदा ॥ तिमरियपुरवर सुहकरण, पासनाह जगि चंद ॥ ३ ॥ भास जोधनयर सिरि कुंथुनाथ, विहिचेहय मंडण ॥ पास संति बे वंदियह ए, दुह दाह विहंडण ॥ ४ ॥ गूढानयर सिरि कुंथुदेव, भवजलनिहितारण ॥ बीजइ जिणहरि पूजीयइ ए, सीतल सुहकारग ॥५॥ वस्तु पास जिणवर पास जिणवरि, नयरि नालउरि, आदीसर पहु भेटियए, सयल सुख संपत्ति कारण; अचिरानंदण संति जिण, भविय लोह दुहतावचंदण । हरिकुल अंवर सहसकर, साभिय नेमिकुमार, वीर जिणेसर भवणगुरू, तिहुयण तारणहार ॥ ६ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034999
Book TitlePatan Chaitya Paripati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherHansvijayji Jain Free Library
Publication Year1926
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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