Book Title: Ek Bhagyavan Vyapari arthat Hargovinddas Ramji Shah
Author(s): Shankarrav Karandikar
Publisher: Bharatiya Vidyabhavan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गवान व्यापारी शाह हरगोविन्ददास रामजी 300४८४ eechese-2020 P elepbld topies313 M ૨. જૈન ગ્રંથમાળા, Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (सामुद्रिक चरित्र माला) -प्रथम पुष्प: एक भाग्यवान् व्यापारी अर्थात् शाह हरगोविंददास रामजी Chena (जीवन-चरित्र) RAथे. 101K न.22-3 -लिखक:सामुद्रिकभूषण' श्री. शकरराव् करंदीकर "हिन्दी-भाग्यरेषा"-ग्रंथकता) प्रथम संस्करण। ] मूल्य ८ आणे । [दीपावलि।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना। श्रीयुत पं. शंकर दिनकर करंदीकर बंबई के एक प्रसिद्ध हस्तरेखाविज्ञान-विद् है । इन्होंने अपने ज्ञान के विषय के कई अच्छे अच्छे ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं जो जनसमाज को उपादेय मालूम दिये हैं । ___ करंदीकरजी अच्छे विद्वान् तो हैं ही साथ में ये अच्छे सहृदय सजन भी हैं आर ऐसे सहृदयी सज्जनों का समागम और सत्कार करने में ये सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण, प्रस्तुत पुस्तिका है जिसमें इन्होंने हमारे परम स्नेहास्पद एवं अनन्य बन्धुसदृश सेठ हरगोविन्द दास रामजी के सद्गणी जीवन का कुछ शब्दचित्र अंकित किया है। सेठ हरगोविन्द दास रामजी बंबई के सुप्रसिद्ध व्यापारी वर्ग की उन अत्यल्प पक्तियों में से एक हैं जिनने अपने जीवन और व्यवहार को सदैव सत्य, सादगी और साधुता को लक्ष्य में रख कर चलाने का प्रयत्न किया है और करते रहते हैं। सेठ हरगोविन्द दास के सद्गुणी जीवन का मुझे कोई ३२-,३३ वर्ष से बहुत ही घनिष्ठ परिचय है। भाई श्री हरगोविन्द दास एक आदर्शवादी और अतिकुशल व्यापारी हैं और साथ में बडे निष्काम दानी और संयमशील ज्ञानी है। पं. श्री करन्दीकरजी ने जो इनके ऐसे आदर्शभूत गृहस्थ जीवन के विषय में इस छोटी मी पस्तिका में जो कुछ लिखा है वह सर्वथा समुचित और समादरणीय है एवं अन्यान्य धनिक और व्यापारिक वर्ग के गृहस्थों के लिये परम अनुकरणीय है। जयपुर मुनि जिनविजय __ ऑनरेरि डायरेक्टर-भारतीय विद्याभवन, बंबई; दि. २ अक्टूबर, ५० तथागान्धी जयन्ती समान्य संचालक-राजस्थान पुरातत्वमंदिर, जयपूर (राजस्थान) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक भाग्यवान् व्यापारी। शाह हरगोविन्ददास रामजी मुलुंड www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (शाह हरगोविंद दासजी का बायाँ हात ।) ( ૨૦૧૩ % ૬ દાસ રામ 3०- ११. [ भाग्यवान, नशिबवान, यशस्वी व्यापारी को, भाग्यरेषा, रविरेषा, बुधरेषा आदि अवश्य होना चाहिये ] Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक भाग्यवान् व्यापारी अर्थात् शाह हरगोविंददास रामजी महान व्यक्तियों के चरित्र संसारमें सभी जगह लिखे जाते हैं, चरित्र यह महान लोगों का रास्ता माना जाता है, उसी के द्वारा हमें जिन-जिन रास्तों से वे चले गये, उनकी जानकारी मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति की जिन्दगी एक बहुत बड़े जीने के समान है। बड़े लोगों ने उस जीने की एक-एक सीढ़ी धीरेधीरे कैसे पार की यही हमें उस जीवनी में देखने और अनुभव करने को मिलता है। यदि यह प्रश्न हो कि जीवनी और जिन्दगीका मतलब क्या होता है ? तो आदमी हर दिन जो विचार और बर्ताव करता है, उस क्रिया को हम जीवनी नाम दे सकते हैं। हर आदमी अपनी जिन्दगी बिताता है, इसका अर्थ यह कि वह हर दिन एक तरह का प्रयोग करता है। एक जुलाहा जिस प्रकार धागे को करघे पर डालकर बुनने बैठता है, वही " उद्योगिनः करालम्बं करोति कमलालया (लक्ष्मीः)। अनुद्योगिकरालम्बं करोति कमलाप्रजा (अलक्ष्मी)॥" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ......... एक भाग्यवान् व्यापारी wwwxn दशा प्रत्येक आदमी की होती है। जिन्दगी याने एक प्रकार का 'आल्बम' है अथवा हम उसको 'डायरी' की उपमा भी दे सकते हैं। जिन्दगी कैसी होती है ? एकाध भयंकर आश्चर्यकारक किले की तरह या सुरंग की तरह ! आदमी उस किले पर कब्जा लेने के लिये उस किले की छोटी मोटी जानकारी लेता रहता है। किले के गुप्त भाग, गुप्त रास्ते, वह हर रोज ढूँढ़ता रहता है। जन्म लेने के बाद प्रत्येक व्यक्ति इस आयु के बड़े भारी सुरंग में प्रवेश करता है और हर आदमी-(इससे पहले) अन्दर गया हुआ आदमी कहाँ गया है, इसकी खोज करता है। उसको उसके प्रश्न का जवाब देनेवाला कोई नहीं मिलता। अंत में वह स्वयं ही उस जिन्दगी की भयंकर सुरंग में प्रवेश करता है। जिन्दगी कैसी होती है ! वह एक छोटी-बड़ी वस्तुओं की गठरी जैसी! जैसे मृत्यु एक बार ही होती है, वैसे ही स्वर्ग प्राप्ति भी एक बार और जन्म भी एक बार ही होता है ! इसलिये जन्म का महत्व भी बड़ा भारी है। और वह महत्व मालूम होनेपर उस व्यक्तिका चरित्र या चारित्र्य देखना बहुत ज़रूरी होता है। लम्बी उम्र तक जीने की इच्छा हरेक को रहती है, लेकिन वह जिन्दगी बहुत अच्छी तरह से बिताने की महत्वाकांक्षा बहुत कम लोगों में पाई जाती है। हमारे चरित्र नायक की इच्छा दूसरे प्रकार की थी। सूरज के उदय होते ही उस की आकाक्षाएँ बढ़ती रहती और अभी भी बढ़ती रहेगी। एक की जिन्दगी यानी दूसरे का दर्पण होता है । दूसरे व्यक्ति उस पहले दर्पण में अपनी छाया देखते रहते हैं। "सत्ययुग में 'बलि' श्रेष्ठ ! त्रेतायुग में भार्गव' श्रेष्ठ ! द्वापार में 'धर्मराज' श्रेष्ठ ! कलियुग में कौन श्रेष्ठ १-प्यापारी!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.. एक भाग्यवान् व्यापारी .....३). हरगोविन्द दासजी को बचपन में कोई भी गुरु नहीं मिले। इन्हों ने सोच विचार कर एक तत्व को गुरु बनाया वह तत्व था 'ज्ञान' ! 'ज्ञान' यही हरगोविन्द दास का सच्चा गुरु था। इस लिये इन्हों ने अपनी जिन्दगी में ज्ञानदान को बहुत महत्व दिया। ज्ञानप्राप्ति और ज्ञानदान इस की हरगोविन्द दास को सच्ची लगन थी। ___ श्री हरगोविन्द दास प्रख्यात नेता, प्रख्यात पंडित, प्रख्यात पूँजीपति और प्रख्यात सेनानायक नहीं होंगे, लेकिन ये जीवन के संग्राम में सफलता पूर्वक यश पाने वाले एक महान योद्धा अवश्य है। इस में जरा भी संदेह नहीं। दीघायु होना और अच्छी तरह से जीना यही इनका बचपन से ध्येय था। लोकमत से रहने की अपेक्षा निसर्ग मत से रहो, यही इनका संदेश है । आयु एक सपना, छाया और पानीपर का बुदबुदा या एक तरह का बड़ा भारी खेल भी हुआ, तो भी वह खेल हर व्यक्ति को यशस्वी बनना चाहिये। उत्तीर्ण होने के लिये अंक अवश्य पाने चाहिये, ऐसा इनका कहना है । उदगम स्थलसे नदी बिलकल छोटे रूप में निकलती है और आगे जाकर वह महा नदी बनती है, ऐसा नियम आजतक दिखाई देता है। सामान्य नियम हरगोविन्द दासजी की जिन्दगीको लागू नहीं होता और न तो उतनी उपमा या तुलनासे लेखक का समाधान, होता है। श्रीहरगोविन्दजी के पूर्वायुको नदीकी उपमा दी जाय और इन को जिन्दगी की कल्पना की जाय तो लेखक ऐसा प्रकटरूप में कह सकता है " जो पहले से ही सजग रहता है वह सदा लाम में रहता है।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...... एक भाग्यवान व्यापारी woman कि नदीने अपना विशाल रूप कर लिया है, जिससे नदी समुद्र के समान विशाल हो गई है और उसको समुद्र का रूप प्राप्त हो गया है। कर्कतत्व यह समुद्र-तत्व है। श्रीहरगोविन्द दासजी का रवि, कर्क का ही है और शनि कर्क का। अर्थात् इनकी पैदाइश यद्यपि ९-७-१८८८ को हुई फिर भी आज उम्रके ६३ वें सालपर इनका पूर्वायु समुद्र जैसा विशाल हुआ है। इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है। इनका जन्म भावनगर के पास एक लाख रुपये की आमदनी के रियासती गावमें यानी "चोगठ" गांवमें हुआ था। उम्रके सातवें साल पर ही इन के पिता स्वर्ग सिधार चुके थे और इसके बाद थोड़ी-सी स्कूल की पढ़ाई होते तक इन्हें अपनी उम्रके तेरहवें वर्ष में बम्बई में नौकरी करने के लिए अपनी मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। व्यापार, व्यवहार, दुकानदारी इत्यादि की अपेक्षा इनको ऊँचे दर्जे का ज्ञान संपादन का बड़ा शौक था, इन को अपनी महत्वाकांक्षा जिस प्रकार से सिद्ध हो, उसी प्रकार के जीवनपथ को अपनाने की बड़ी उमेद थी। ज्ञान संपादन करने के लिये मुझे कोई भी सुयोग्य गुरु मिल जाय, इस प्रकार की इच्छा इन को अपनी उम्र के १५ वें १६ वें वर्ष में पैदा हुई और इस इच्छा के मुताबिक इन्होने बम्बई में माधवबाग के पास लालबाग में साधु लोगों के आश्रय में प्रवेश कर के साधु समागम प्राप्त किया। उस गुरु के उपदेश का श्री हरगोविन्द दासजी पर इतना बड़ा प्रभाव पड़ा कि वे नौकरी छोड़कर धर्म-साधना के लिये बनारस जाने के निश्चय से "सुमति भूमि थल हृदय अगाधू ।" "अच्छी बुद्धि पृथ्वी है, हृदय गहरा स्थल है।"-श्री तुलसीदासजी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ roomn एक भाग्यवान् व्यापारी ....५). कलकत्ता भाग गये। उस समय इन के साधु होने की आकांक्षा की वजह से इनके बड़े भाई को और माँ को काफी दुख हुआ। सभी जगह टेलीग्रामदे कर और मंदिर खोजकर इनको ढूँढ़नेकी बहुत कोशिश की, फिर भी हरगोविन्द दास अपने ज्ञानपान की लालसा से तनिक भी पीछे नहीं हटे । जैनों का प्रख्यात तीर्थसमेत शिखर पहाड़के जैनमंदिर का दर्शन लेकर हरगोविन्द दास काशी को गये। वहां एक जैन पाठशाला का बोर्ड देखकर उसमें इन्होंने प्रवेश किया। उस पाठशाला में पहुँचते ही वहाँ के प्रमुख महंतने बिलकुल ठीक कहा-"पधारिये! हरगोविन्द दास रामजी!" काशी में तीन साल रहकर संस्कृत व्याकरण, साहित्य चन्द्रिका छः हजार श्लोकोंका जैन व्याकरण इत्यादिका अभ्यास श्री हरगोविन्द दासजी ने उस पाठशाला में किया। इतनी पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीहरगोविन्द दासजी फिर बम्बई में आये और बड़े भाई के आग्रह की वजह से इन्होंने फिर से १५ रुपयों पर मूलजी जेठा मार्केट में अपने पहले सेठजी के पास कपड़ों की दुकान में नौकरी करनी शुरू की। परन्तु वह इनकी सेवावृत्ति एक महीने से अधिक न टिक सकी। एक बार ऐसा लगा कि हम भी बड़ा भारी व्यापार करें और हज़ारों लाखों रुपये कमायें और केवल उनके ब्याजसेही ग्रन्थ खरीद कर के ज्ञान इकठ्ठा करें। इसलिये इस कल्पना से पच्चीस हजार पाने के लिये इन्होंने उमराला गांव में गुड-घी की बनिये की दुकान खोली । सुगंधी सामान भी उस दुकान में बैचा जाता था। लगभग वह दुकान आपने दो साल चलाई । परन्तु उसमें फायदा होनेकी अपेक्षा " तप अधार सब सृष्टि भवानी।"-श्री तुलसीदासजी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ....... एक भाग्यवान् व्यापारी ... नुकसान ही अधिक हुआ; क्यों कि दुकान से जो रकम हाथ आती थी वह सबकी सब ग्रन्थों की वी. पी. याँ छुड़ाने में खर्च होती थी। दुकान बन्द पड़ गई। दुकान चलाने में इनका ध्यान ही नहीं लगता था। व्यापार और व्यवहार की अपेक्षा पढ़ने में ही इनकी अधिक दिलचस्पी थी। बम्बई जैसे बड़े नगर में जाने से ही अपनी पढ़ाई की इच्छा पूरी होगी, ऐसी इनकी पूर्णतया धारणा बन गई और फिर बम्बई आकर बड़गादी में एक दुकान में एक साल तक नौकरी की। ज्ञानलालसा पूरी होने के लिये ग्रन्थ चाहिये और ग्रन्थ खरीदने के लिये काफी द्रव्य चाहिये, इस प्रश्न ने इन्हें बड़े पशो पेश में डाल दिया और आखिरमें अधिक धन पाने के लिये उम्र की २५ वीं सालमें यानी सन १९१३ में इन्हों ने अपने भाई के साथ भागीदारी में एक दुकान शुरू की। उस समय झवेर भाई नरोत्तमदास एन्ड कंपनी के नाम से वह दुकान चल रही थी। वह भागीदारी पाँच साल यानी सन् १९९८ तक टिकी रही। तकदीर ने चोगठ और उमराला इन गांवों का त्याग करना सिखा कर वह श्री हरगोविन्दजी को बम्बई ले आई थी। इस जगह इनकी तकदीर भी तरक्की करने लगी। उस समय बम्बई के पास मुलुंड में लाखों वार जमीन खाली पड़ी थी। केवल जंगल ही जंगल उस जगह था। आजकल के मुलुंड और उस समय क उजाड़ मुलुड में ज़मीन-आसमानका अंतर है। “Steel is Prince or Pauper" -Andren Carnejis. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mom. एक भाग्यवान् व्यापारी ..... मुलुण्ड में जमीन का दर्शन होते ही " झवेर भाई नरोत्तम दास एण्ड कंपनी" के नाम से मुलुंड की सैकड़ों एकड़ जमीन खरीदी गई। जमीन खरीदते ही सन् १९२० म श्रीहरगोविन्द दासजी ने कंपनी से अपना हिस्सा निकाल लिया। उस समय हरेक को लाख-लाख रुपये मिले और उसी पूँजी पर श्रीहरगोविन्दजी न "हरगोविन्ददास रामजी" इस नाम की नई करियाना की दुकान खोल दी। तब से आज ३० साल हो गये तक उसी नाम से वह दुकान बराबर चल रही है। व्यापार इनका मुख्य उद्देश्य था, तो भी ज्ञान पाने का और ग्रन्थ पढ़ने का इतना इनको शौक था कि रेलगाड़ी में यदि कोई पढ़ते हुये दिखाई दे तो उसके मित्र उस आदमी का 'हरगोविन्द दास रामजी' के नाम से मजाक करते थे। दो घंटे भी रेल की सफर में क्यों न लगे, तो भी इनकी पढ़ाई नहीं रुकती थी। जो समय इनको घरपर मिलता है उस समय में ये अपनी पढ़ाई का काम करते हैं। निरयन सायन ज्योतिष, हस्तरेखा सामुद्रिक, जैनधर्म का अभ्यास, भगवद्गीता, उपनिषद, योगशास्त्र, सर्वोदय, वैद्यक आदि के साथ अंग्रेजी, बंगला, हिन्दी. मराठी इन भाषाओं का अभ्यास भी इन्हों ने बहुत अच्छी तरह से किया। सभी प्रकार के धर्म-ग्रन्थों का गंभीर अध्ययन करने का आपको बड़ा शौक है। नानक, रामदास, बायबल, कुरान, कबीर, तुकाराम आदिके तथा कई दोहे अभंग आदिके ग्रन्थों का “Keep thy shop, and thy shop will keep thee." -Jeorga Chapman. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ............ एक भाग्यवान व्यापारी www.ar इन्होंने सूक्ष्म अध्ययन किया है । स्वजाति के धर्म मंदिरों में ही जाना चाहिये, ऐसे इनके विचार नहीं हैं, बल्कि दूसरों के धर्म मंदिरों में जाने को भी ये उत्सुक रहते हैं। आज भी आसक्ति निरपेक्ष काम करते रहना यह इनका बड़ा भारी कार्यक्रम है। आलस्य-दोपहर को सोना-आदि ये बातें इन्होंने कभी जानी ही नहीं। दान-धर्म करना लेकिन अनाज के रूप में, कपड़ों के रूप में करना यही इनका सिद्धांत है। ज्ञानदान यह प्रमुख बात, इसके बाद अन्नदान और वस्त्रदान । वस्त्रदान की परिपाटी इनकी सोचने लायक है। महात्मा गांधीजी के पास भी ये बहुत बैठे, लेकिन उनके मतों से ये पूरी तौर से सहमत नहीं हुये। कलकत्ता, अहमदाबाद, बम्बई, कोकोनाड़ा, गया, लाहौर, अमृतसर इन अनेक जगहों पर कांग्रेस अधिवेशनों में ये बड़े उत्साह से उपस्थित भी रहे। परन्तु देशसेवा की अपेक्षा देशभाव के बारे में इनके मत बिलकुल ही अलग थे। इनका कहना है कि जेलों में जाकर देश सेवाकी पूर्ति करने की अपेक्षा देशभक्ति के लिये जो आदमी जेलों में गये है, उनके परिवार को अनाज, वस्त्र और आर्थिक मदत करना अधिक महत्व का काम है। यही इनका निश्चित मत रहा। इसी तरह से ये गांधीजी के पहले से ही देशी कपडा पहनते आये हैं। वस्त्र दान करने की इन्होंने " Drive thy business or it will drive." -Benjamin Franklin. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.mm. एक भाग्यवान व्यापारी .......... एक ऐसी पद्धति निकली कि यदि इन्हें ३० रुपये का एक कोट बनवाना होता तो गरीबों के ढंग के ये ३० रु. में तीन कोट बनवाते और उसमें से दो कोट दूसरों को देकर, एक स्वयं काम में लाते। गृहस्थाश्रम आदर्श रूप में बिताना यही इनकी महत्वाकांक्षा बनी हुई है । स्वतः आदर्श बने बिना अपना परिवार आदर्श नहीं हो सकता, इस नियम के अनुसार आपने अपने घर की सारी व्यवस्था की है। मंदिरों. मसजिदों और चर्च में जाकर पापों से बचने के लिये तथा जो भूलें या जो पाप हो चुके उनके लिये परमेश्वरसे क्षमा याचना करना इस बातपर आप विश्वास नहीं करते । इसलिये मंदिरों में जो व्यवहार, जो आचार तथा परमेश्वर एवं देवता के पास जो कुछ कहना होता, वही मंदिर छोड़ने के बाद दुकान और संसार के सारे व्यवहारों में आप अपना आदर्श रखते रहे। दुकान में सत्यका ही आचरण करना; झूठे ढोंग करना नहीं चाहिये यह भी हरगोविन्द दासजी का मत है। इसके खिलाफ आपका बहुत कटाक्ष है। सांसारिक जीवन में तपश्चर्या करके घरमें रहना, इन्होंने समाज को अपने कर्मों द्वारा दिखा दिया है । परिवार के छोटेछोटे बच्चे तक ऊंचे-ऊंचे तेल काम में लाते हैं, फिर भी श्रीहरगोविन्द दासजी ने अपने सर पर ऐसे तेलों का आजतक स्पर्श नही होने दिया। पूरे बारह वर्ष तक जूते का त्याग करके आपने दिखा दिया। बीस वर्ष की आयु तक हररोज नियमित व्यायाम, कसरत, दंड-बैठक के बिना इन्हों ने एक भी दिन जाने न दिया। "They throw cats and doges together and call them elephants." -Andrer Carnegie. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ........ एक भाग्यवान व्यापारी बनारस में तीन वर्षतक जो इन्होंने अभ्यास किया, उस समय इनके साथ एक साधु भी अभ्यास कर रहा था। उसका प्रभाव भी हरगोविन्दजी पर पड़ा था। बचपन से उम्रके सोलह सालतक तपस्या का पाठ इन्होंने अपनी जिन्दगी में स्वीकार किया । गरम पानी पीना चाहिये तो यह क्रम ३-३ वर्ष तक चला कर दिखा दिया । उपवास करना, देवपूजा करना, मंदिर जाना और फिर सरासर झूठ बोल कर दूसरों को फसाना यह आपको बिलकुल पसंद नहीं। ___ जीवित व्यक्तियों के चरित्र पढ़ने का आपको बड़ा शौक है। मृत व्यक्तियों के लिखे गये चरित्र आप कभी पढ़ने को तैयार नहीं होते। आपका कहना है कि जीवित मनुष्यों के चरित्र पढ़कर हम स्वयं जीवित बनें। मरे हुये व्यक्ति के लिखे गये चरित्र काल्पनिक और बनावटी होते हैं, इसलिये बनावटी चरित्रों, उपन्यासों तथा रहस्यकथाओं से श्रीहरगोविन्दजी को नफरत है। Self Helf, मगठी सुख और शांति, अद्वैताश्रमकी भगवद्गीता, टैगोर चरित्र, सर राधाकृष्णन का चरित्र, महात्मा गांधीके ग्रन्थ, ब्रह्मचर्य सम्बधी पुस्तकों के अध्ययन में आपका बहुत अभ्यास है। माँके ऊपर आपका अत्यंत प्रेम था। माँकी आज्ञा के कारण आपने अपनी शादी जल्दी की। माँको परिश्रम न पडे, उसे विश्रांति चाहिये और माँको मुझे सुख देना चाहिये, इसप्रकार के आपके उच्च विचार थे और इसलिये प्रत्येक रातको थोड़े समय तक माँके पैर बिना दवाये श्रीहरगोविन्दजी “The way to stop financial joy-riding is to arrest the chauffear, not the automobile.” Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.mmm. एक भाग्यवान् व्यापारी .......... ने कोई रात बिताई नहीं । लगातार ५ वर्ष तक माँकी और स इन्होंने अपाहिज, गरीब, साधु, सजन लोगों के लिए चावल, गेहूं आदि के दानधर्म का काम किया। लगातार चलते, बोलते, व्यवहार करते, जहाँ भी थोडासा समय मिला, उस समय में कसरत और जप करने का नियम आप बराबर चालू रखते हैं। मुलुण्डमें सन् १९२० से सन १९३० के आखिर तक लगातार अनेक विद्वानों, महात्माओं, साधु-सजनों की बैठक हर रविवार को होती रहती थी। ज्योतिष शास्त्र. वैद्यकशास्त्र आदिका आपने अच्छा अध्ययन इस उद्देश्य से किया कि अपाहिज गरीबों को उनके समय असमय पर लाभ पहुंचाया जाय। बहुत ही परिश्रम करके मुफ्त कुंडलिया तैयार कर देना शुभकार्यो के मुहूर्त बता देनाये काम बिना एक पाई लिये ही केवल कतव्य समझकर करते रहे। अनेक बड़े बड़े पंडितों और साधुओं का इनपर बहुत अधिक प्रेम है। समाज में पर्दा प्रथा अथवा मुहूँ के ऊपर यूंघट या बुर्का डालना यह रूढि तोड़ दी जाय, इसके लिये अपने काफी प्रयत्न किया, परन्तु रूढ़ियों की शक्ति के सामने इनका कुछ न चल सका। "रूढ़ियों की विजय हुई और अपनी पूरी तौर से पराजय हुई" ऐसा आप स्पष्टतया स्वीकार करते है। श्री हरगोविन्द दासजी कहते-“भगवान् महावीर श्रीकृष्ण ऐस-ऐसे लोगों की ओरसे जहाँ सुधार नहीं हो सका, रूढियों का विनाश नहीं हो सका, वहाँ मेरे जैसे साधारण मनुष्य की ओर से _ "व्यापाऱ्याने चांचेगिरीपासून फार सावध व दूर राहिले पाहिजे." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .......... एक भाग्यवान् व्यापारी wwwmom सुधार होना अत्यंत अशक्य है, इस लिये सुधार के विचार को इन्होने छोड़ दिया। जैन धर्मकी आज्ञानुसार आपने गिरनार, आबु, शत्रुजय, तारंगा, समेतशिखर, राणकपूर, परावापुरीतीर्थ, राजगृही केसरीया, जगडीय्या इत्यादि पवित्र स्थानों की यात्रा करके अपने मन में काफी समाधान प्राप्त किया। जंगल-पहाडों पर जैसे हम एक निश्चय करके एकांत सुख और ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से जाते है, वैसे ही (यात्रा में) विचारों के लिये योग्य दिशा मिलती है, ऐसा इन्हें लगा। __ सांसारिक कार्यों से निवृत्ति मिलने के लिए आपने अपनी सारी जायदाद का तीन लड़कों और एक लडकी के नाम बराबर हिस्से का वसीयत नामा लिखकर बँटवारा कर दिया है। समभाव, त्याग, सांसारिक भावों से अलग रहने, काम, क्रोध, लोभ, मोह का दाव न चलने देने की सामर्थ्य यही मेरी सम्पत्ति है; यह मैं तुम्हें देना चाहता हूं, इस प्रकार ये अपने बच्चों को उपदेश करते हैं और उसके अनुकूल आचरण उनमें पैदा करते है। ___ इन के एक शत्रु ने एक बार इनपर मुकदमा किया था, दोनों अदालतमें गये। अदालतमें पहुंचने पर इनका विपक्षी एक बेंचपर बैठे-बैठे नींद लेने लगा। परिस्थिति इस प्रकारकी थी कि नींद में यदि वह विपक्षी जरा भी इधर से उधर होता तो पक्की फर्शपर गिरकर उसका सिर फूट जाता, परन्तु उसके गिरतेगिरते इन्होंने उसे पकड़कर और सँभाल " लढाई सुरू झाली की, व्यापा-यांचे नशिब उघडते; नव्हे त्यांचे उखळ पांढरे होण्याची तेवढीच संधि असते!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.mm. एक भाग्यवान् व्यापारी ....... कर उठाया। उस समय वे बोले-"तुझे मेरे प्रति द्वेष है और तूं अदालत में आया है, फिर भी तेरे प्रति मेरे मन में जरा भी द्वेष नहीं है। मैं तेरा अधःपात होने नहीं दूंगा। परमेश्वर ! मेरा कोई भी शत्रु हो, मेरे उस शत्रुके अंतःकरण में तू सुबुद्धि दे!" इस प्रकार ये प्रतिदिन प्रार्थना करके सोते है। अच्छी तरह मुझे नींद आनी चाहिये, और सोते समय संसार में किसीको शत्रु मानकर एवं रखकर सोया नहीं जा सकता, ऐसा इनका एक नियम है। इनकी इस सद्वृत्ति ने अनेक हितशत्रुओंको माँफी मागने पर बाध्य किया। इन्द्रियों पर, मनपर शासन कैसे रखा जा सकता है, उनसे अपने सेवकों के समान कैसे काम लिया जा सकता है, इसका अपनेको दिन रात विचार करते रहना चाहिये, ऐसा इनका कहना है। इन्द्रियां और मन ये अपने नौकर नहीं बल्कि मालिक बन बैठे है और हम सब उनके आधीन है, यह बुरी बात है, ऐसा इन्हें महसूस हुआ है। __ श्री हरगोविन्द दासजी का यह चरित्र यद्यपि छोटा है, फिर भी स्फूर्तिदायक है। जो कुटुम्ब का संरक्षण करते और कुटुम्बके अपराजित नेता होते है, वे देश के भी नेता हो सकते है। यह साक्रटिस का कथन अमूल्य मालूम होता है ! श्रीहरगोविन्द दासजी का चरित्र सरल, प्रेमी, भविष्य के मार्ग का दर्शक और शिक्षाप्रद है। हम इनकी जिन्दगी का आदर्श अपने सामने रखें और इन के आदर्शों को अनुसरे। " न्यापाऱ्याची मध्यस्थी म्हणजे एकाला लुटायचे माणि दुसऱ्याच्या तोंडाला पाने पुसायची!!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ........ एक भाग्यवान् व्यापारी www.r -:मुद्रालेख:"बच्चों के लिये पैसा इकट्ठा करना या जायदाद बना कर रखना मुझे पसंद नहीं। इनको ज्ञान देना, शिक्षा रूपी संपत्ति देना, स्वयं कमाकर खा सकें इस योग्य इन्हें बनाना; यही माँ-बाप का पहला कर्तव्य है। बच्चों के स्वावलंबी होने के लिए उन्हें सुसंस्कृत करना चाहिये और इसी सबसे पहले उन्हें शिक्षित बनाना चाहिये।" t ___ "कपड़ा और अनाज दान करना मुझे पसंद है। मगर उससे भी अधिक विद्या-दान करना मुझे और अच्छा लगता है।" ____ "खुद का लड़का और दुकान का नौकर इन दोनो का दर्जा मैं समान समझता हूँ। लडके ने दीवाली मनाई तो नौकर को दिवाली क्यों न मनाने दी जाय?" "उपन्यासका मुझे शौक नहीं।" "लोग मंदिर मसजिद और चर्च में जाते हैं और बाहर के संसार में तथा व्यवहार में झूठ बोलते है। यह बात मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। ऐसा विरुद्ध आचरण करना यानी मेरी राय में एक 'धार्मिक झूठ' या धार्मिक असत्याचार है। इस से मैं सहमत नहीं।" " व्यापाऱ्याचे मुख्य कौशल्य हे की, जेथे जी वस्तु विपुल मसेल, तेथून ती माणून, दुर्मिळ अशा ठिकाणी, ती विकावयाची." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुलुंड येथील श्री वासुपूज्य भगवान जैन-मंदिर [ १९५३ ] प्रयोजक शाह हरगोविन्ददास रामजी (मंदिराचा दर्शनी भाग.) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाह हरगोविंददास रामजी (मुलुंड) यांचा उजवा हात. ६२६२५. 2019 मुं बुधपर्वत व चंद्रपर्वत यांच्याकडे जाणारी किंवा त्यांना Shre जोडणारी अंतान रेखा ( The Line of Intuition ). Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक भाग्यवान् व्यापारी अर्थात् शाह हरगोविंददास रामजी थोरा-मोठ्यांची चरित्रे, सर्वत्रच लिहिली जातात; चरित्रे म्हणजे थोरामोठ्यांच्या वाटा ते ज्या ज्या रस्त्यांनी चालून गेले त्या त्या वाटांची-रस्त्यांची ती माहिती. प्रत्येकाचें आयुष्य म्हणजे एक मोठी शिडी आहे. थोर लोक त्या शिडीची प्रत्येक पायरी चढून वर कसे गेले, हे त्या त्या चरित्रांतून पहावयाचे असतें;-अनुभवावयाचे असते. चरित्र म्हणजे काय ! आणि आयुष्य म्हणजे तरी काय? तर, मनुष्य सर्व दिवसरात्र जो विचार करतो आणि वागतो, ते त्याचे विचार करणे आणि वागणे, त्या क्रियेला 'चरित्र' म्हणून नांव देता येईल. प्रत्येक मनुष्य, आपले आयुष्य घालवतो, म्हणजे एक प्रकारचा ती व्यक्ति प्रयोगच करीत असते. एकादा विणकर ज्याप्रमाणे सुताचा ताणा मागावर लावून विणावयास बसतो, तीच स्थिति प्रत्येकाची आहे. आयुष्य म्हणजे एक 'आल्बम'च म्हटले तरी चालेल. आयुष्याला 'डायरीचीहि' उपमा देतां येईल! आयुष्य हे कसे आहे ? तर एकाद्या भयंकर अद्भुत किल्ल्यासारखें अगर भुयारासारखे आहे. मनुष्य त्या किल्ल्याचा " लढाईच्या वेळीच व्यापारीबांधव हे __ स्वदेशाचे शत्रु ठरतात!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ....... एक भाग्यवान् व्यापारी .xn.mmune कवजा घेण्याकरतां, त्या किल्ल्याची बारीक सारीक माहिती घेत असतो. किल्ल्याचे गुप्त भाग, गुप्त वाटा, तो रोज शोधत असतो. जन्म घेऊन प्रत्येक व्यक्ति या आयुष्याच्या भयंकर भुयारांत शिरत असते आणि बाहेरील प्रत्येक व्यक्ति, 'आंत गेलेला' मनुष्य कोठे गेला, याचा शोध करीत असते; तिला तिच्या प्रश्नाचे उत्तर देणारे कोणी भेटत नाही, मग ती स्वतांच, त्या आयुष्याच्या भयंकर भुयारांत प्रवेश करते ! आयुष्य कसे आहे ? तर तें एक लहान-मोठ्या अनेक वस्तूंचें गांठोडे आहे. मृत्यु हा एकदांच, स्वर्गप्राप्ति एकदांच, त्याचप्रमाणे जन्महि पण एकदांच! अर्थात् जन्माचे महत्त्व अतोनात आहे आणि तें माहात्म्य समजल्यावर त्या व्यक्तीचे चारित्र्य अगर चरित्र पाहणे, फार अगत्याचे आहे. दीर्घायुषी व्हावे अशी इच्छा प्रत्येकाची असते, पण आयुष्यभर फार चांगल्या त-हेनें जगावे, अशी महत्वाकांक्षा, फारच थोड्यांमध्ये आढळते! आमच्या चरित्रनायकाची इच्छा, ही दुसन्या प्रकारची होती. सूर्य उगवला की, प्रत्येक दिवशी ही त्याची इच्छा वाढत असे आणि अजूनहि वाढतच आहे. 'एकाचे आयुष्य म्हणजे दुसऱ्याचा आरसा आहे ! दुसरा मनुष्य त्या पहिल्याच्या आरशांत आपले प्रतिबिंब पहात असतो.' __ श्रीहरगोविंद दासनां लहानपणी कोणीहि खरे गुरु भेटले नाहीत; त्यांनी पुष्कळ पुष्कळ विचार करून एका 'तत्वाला' गुरु केले! आणि तें तत्व म्हणजे 'ज्ञान.' 'ज्ञान' हेच श्री हरगोविंद दासजींचें खरें गुरु ! म्हणूनच त्यांनी आपल्या सर्व आयुष्यभर "जें राज्य व्यापारी आहे, किंवा व्यापारी बनेल, वें राष्ट्र कधीहि नाश पावणार नाही." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.unn. एक भाग्यवान् व्यापारी ......... 'ज्ञानदानाला' फार महत्व दिले आहे. ज्ञानप्राप्ति व ज्ञानदान यांची हरगोविंद दासनां एकसारखी तळमळ दिसून येते. ___ श्रीहरगोविंद दास प्रख्यात देशभक्त, प्रख्यात पुढारी, प्रख्यात पंडित प्रख्यात धनाढ्य, प्रख्यात सेनापती नसतील; पण श्रीहरगोविंद दास, आयुष्याची भूमिवर चाललेली लढाई यशस्वी रीतीने जिंकून दाखविणारे एक महान योध्दे आहेत, यांत थोडीहि शंका नाही. 'दीर्घायुष्य मिळवणे आणि चांगले जगणे' हे त्यांचे लहानपणापासूनचे ध्येय. "लोकमताने राहण्यापेक्षां निसर्गमतानें रहा;" हा त्यांचा संदेश. आयुष्य एक स्वप्न, छाया, पाण्यावरील एक बुडबुडा. किंवा एक प्रकारचा मोठा खेळ, असे जरी असले, तरी तो खेळ प्रत्येक व्यक्तिने यशस्वी केला पाहिजे,-पासापुरते तरी मार्क त्यांत मिळविले पाहिजेत, असा त्यांचा आग्रह. उगमस्थानी नदी अगदी लहान स्वरूपांत असते; व पुढे ती महा नदी होते, असा नियम दिसून येतो. तोच नियम श्रीहरगोविंद दासजींच्या आयुष्याला लागू आहे; परंतु तेवढ्या उपमेनें अगर तुलनेनें लेखकाचे समाधान होत नाही! श्रीहरगोविंद दासजींच्या पूर्वायुष्याला नदीची उपमा दिली आणि त्यांच्या आयुष्याची कल्पना केली, तर लेखकाला असें स्पष्टपणे म्हणता येईल, की, नदीने आपले लहान रूप टाकून देऊन, आपला विकास करून घेऊन, तीच नदी पुढे समुद्रासारखी विशाल झाली आहे!-तिला समुद्राचे स्वरूप आले आहे. कर्क-तत्व हे समुद्र-तत्व आहे. श्री हरगोविंद दासजींचा " खऱ्या राज्यकत्यांनी व्यापारी'च झाले पाहिजे. व्यापार माणि न्यापारी यांचे संरक्षण-नियंत्रण म्हणजेच राज्य-संरक्षण." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .......... एक भाग्यवान व्यापारी www रवि कर्केचाच आहे;-शनिहि कर्केचा! म्हणजे त्यांचा जन्म जरी ९-७-१८८८ साली झालेला असला, तरी, आज वयाच्या ६३ व्या वर्षी त्यांचे पूर्वायुष्य समुद्रासारखें विशालत्व पावलेले आहे, ही गोष्ट आतां निःसंशयित आहे. त्यांचा जन्म भावनगरजवळ, एक लाख रुपये उत्पन्न असलेल्या रियासतीगांवीं म्हणजे 'चोगठ' या लहानशा गांवीं झाला. वयाच्या ७ व्या वर्षीच त्यांचे वडील निवर्तले. थोडेसें शाळेचे शिक्षण होते न होते तोच, त्यांना वयाच्या तेराव्या वर्षी, मुंबईस नोकरीच्या शोधार्थ, जन्मस्थळाचा त्याग करावा लागला! व्यापारव्यवहार, दुकानदारी, यांच्यापेक्षा त्यांना 'उच्च ज्ञान' संपादण्याची भयंकर होस. ती आपली महत्त्वाकांक्षा जणेकरून सिद्धीला जाईल, असाच आयुष्याचा मार्ग काढावयाचा ही त्यांची जोरदार इच्छा होती. __ ज्ञान संपादन करण्यासाठी, आपणाला कोणी तरी गुरु मिळावा, अशी त्यांना वयाच्या १५-१६ मध्ये उत्कट इच्छा झाली. आणि त्या इच्छेनुसार त्यांनी मुंबईस माधवबागेजवळ, लालबागेजवळ, साधुलोकांच्या उपाश्रयांत प्रवेश मिळवून साधुसमागम संपादन केला. त्या गुरुच्या उपदेशाचा श्रीहरगोविंद दासजींवर इतका मोठा परिणाम झाला, की, ते नौकरी सोडून धर्म-साधनेकरितां, बनारसला जाण्याच्या हेतूनें, कलकत्त्याला पळून गेले! त्यावेळी श्रीहरगोविंद दासजींच्या साधुप्रवृत्तिमुळे, त्यांच्या वडील भावाला व त्यांच्या आईला, अत्यंत दुःख झाले. सर्वत्र तारा करून, मंदिरें "जो व्यापारी राष्ट्राला भाकरी अथवा मात,-अन्न देऊन जगवतो, तोच त्या राष्ट्रातील पहिला सभ्य मनुष्य." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwm. एक भाग्यवान् व्यापारी .......१९). शोधून, त्यांचा शोध लावण्याचा प्रयत्न झाला; पण श्रीहरगोविंद दास आपल्या ज्ञानार्जनाच्या तळमळीपासून थोडेहि परावृत्त झाले नाहीत. जैनांचे प्रख्यात तीर्थ समेतशिखर, त्या पहाडावर जैन मंदिरांचे दर्शन घेऊन, श्रीहरगोविंददास काशीला गेले. त्या ठिकाणी एका जैन पाठशाळेचा बोर्ड पाहून तेथे त्यांनी प्रवेश मिळविला! त्या पाठशाळेंत श्रीहरगोविंददासनी प्रवेश करतांच, पाठशाळेच्या महंतानी, अचूकपणे, श्रीहरगोविंददासनां म्हटले, “या तुम्ही ?– हरगोविंद दास रामजी !!" __ काशीस ३ वर्षे राहून संस्कृत-व्याकरण, साहित्य-चंद्रिका, सहा हजार श्लोकांचे जैन व्याकरण, यांचा अभ्यास श्रीहरगोविंद दासनी त्या पाठशाळेत केला! त्या अध्ययनानंतर श्रीहरगोविंद दास पुनः मुंबईस आले, आणि आई व वडील भावाच्या आग्रहाकरतां त्यांनी पुनः १५ रुपयांवर, मूळजी जेठा मार्केटांत, पूर्वीच्याच शेठकडे, कापड-दुकानी, नौकरी धरली! परंतु, ती त्यांची सेवावृत्ति १ महिन्यापेक्षा अधिक काळ टिकली नाही. एकदा त्यांना असे वाटले की, आपण जोरदार व्यापार करून नशिब काढून लाखो रुपये मिळवावेत; आणि केवळ त्यांच्या व्याजांत ग्रंथ मिळवून ज्ञानार्जन करावें. त्यासाठी आणि त्या कल्पनेने त्यांनी २५ हजार रुपये मिळवण्याकरतां उमराला गांवीं गूळ-तूप किराणा मालाचे दुकान टाकले. सुगंधी सामानहि त्या दुकानांत विकले जात असे. ते दुकान त्यांनी २ वर्षे चालविले; पण त्यांत फायदा होण्याऐवजी "व्यापाऱ्याला ठराविक देश अगर ठिकाण, असे कधीच काही नसते!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com - - --- Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..... एक भाग्यवान् व्यापारी www.m. तोटाच अधिक घडून आला! कारण, जी रक्कम विक्रीची उभी राहील,-जमा होईल, ती सर्व रकम मोठमोठ्या ग्रंथांच्या व्ही० प्या० मागवून, त्या सोडवत बसण्यांतच, खर्च होऊं लागून, दुकान चालेनासे झालें ! दुकानांत त्यांचे चित्तच नव्हते. व्यापार व्यवहार करण्यापेक्षां, “वाचन ? वाचन ! वाचन !" हाच त्यांना विलक्षण नाद होता! मुंबईसारख्या मोठ्या ठिकाणी गेलों असतां आपला वाचनाचा छंद-शौक-पूर्ण होईल, असे त्यांच्या मनाने अखेरीस ठाम घेतले आणि पुनः मुंबईस येऊन वडगादी-भागांत एका दुकानांत एक वर्ष त्यांनी नौकरी केली. ___ज्ञानपिपासा पूर्ण होण्यास ग्रंथ पाहिजेत, आणि ग्रंथ पाहिजे असल्यास ते विकत घेण्यास भरपूर द्रव्य पाहिजे, या प्रश्नांनी त्यांना विचलित करून टाकलें; आणि सरतेशेवटी अधिक द्रव्य मिळवण्याकरता वयाच्या २५ व्या वर्षी म्हणजे सन १९१३ साली त्यांनी आपल्या भावाबरोबर भागीदारी केली. त्यावेळी जव्हेरभाई नरोत्तमदास कंपनी अशा नांवाने दुकान चालले होते. ती भागीदारी ५ वर्षे म्हणजे १९१८ पर्यंत टिकून राहिली. नशिबाने, चोगठ आणि उमराला या गांवांचा त्याग करावयास लावून, श्री हरगोविंद दासजींना मुंबईला आणलेलें होते! त्या ठिकाणी त्यांचे नशिब विकास पावू लागले. तेव्हां, मुंबईजवळ मुलुंडला, लाखोवार जमीन पडीक म्हणून होती. "व्यापा-याने काळा बाजार करून कधींहि देशाचे शत्रु बनूं नये; -तो सजन न्यापारी गणला जाणार नाही." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwww. एक भाग्यवान् व्यापारी ...... निव्वळ माळ-जंगल असें तें ठिकाण होते. आजचे मुलुंड आणि त्या वेळचें ओस मुलुंड, यांत जमीन-अस्मानाचे अंतर आह. __ मुलुंडला जमिनीचे दर्शन होतांच, 'जव्हेरभाई कं०' म्हणून जें दुकान होते, त्याच कंपनीच्या दुकानाच्या नांवावर मुलुंडची शेकडों एकर जमीन खरेदी झाली. __ जमीन खरेदी झाल्यानंतर १९२० साली श्री हरगोविंद दासजींनी कंपनीतून आपला भाग काढून घेतला; त्या वेळी प्रत्येकास लाख लाख रुपये मिळाले व त्याच भांडवलाच्या जोरावर श्री हरगोविंद दास यांनी " हरगोविंद दास रामजी" या नांवाचे नवें किराणा दुकान तेव्हांपासून सुरू केले. आज ३० वर्षे तें दुकान त्याच नांवाने चालत आहे. __ व्यापार हा जरी मुख्य हेतू तेव्हां होता, तरी ज्ञानार्जनाचा व ग्रंथ-वाचनाचा इतका विलक्षण नाद त्यांना आहे, की, आगगाडीत पहिल्या वर्गात कोणी वाचत बसलेले दिसलें, की, ते 'हरगोविंद दास रामजी!' असें थट्टेने मित्रमंडळींकडून म्हटले जात असते! दोन तास आगगाडीच्या प्रवासास लागले, तरी वाचन कधीच बंद नसावयाचे. दोन तास घरों मिळत, तेवढ्यांतही तो वाचनाचा योग, साधला जात असे. निरयन सायन ज्योतिष, हस्तरेषासामुद्रिक, जैनधर्मीय अभ्यास, भगवद्गीता-उपनिषदें, योगशास्त्र, सर्वोदय, रमलशास्त्र, वैद्यक, त्याचप्रमाणे इंग्रजी-बंगाली-हिंदी-मराठी या भाषांचाही त्यांनी उत्तम अभ्यास केला. सर्व धर्मग्रंथ मनःपूर्वक " उदारपणाचा व्यापार माणि उदार व्यापारी यांच्यामुळेच कोणताहि देश सुवर्णाचा होत असतो." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com - -- -- Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .२२...... एक भाग्यवान् व्यापारी wwwww वाचण्याची त्यांना अतिशय आवड आहे. नानक, रामदास, बायबल, कुराण; कबीर, तुकाराम, तसेच अनेक संतांचे दोहे, अभंग, त्यांच्या ग्रंथांचाहि त्यांनी चिकित्सकपणे अभ्यास केला. स्वजातीच्या धर्ममंदिरांतून तेवढें जावयाचे असा त्यांचा कटाक्ष नसून अन्य धर्मियांच्या मंदिरांतूनहि ते जाण्यास नेहमी उत्सुक असतात. उत्साह, निरलसपणे कर्तव्य करीत रहाणे, हा त्यांचा मोठा कार्यक्रम. आळस, दुपारची झोप या गोष्टी त्यांना जन्मांत माहीत नाहीत. दानधर्म करावयाचा पण तो अन्नाच्या रूपाने, कापडाच्या रूपांत करावयाचा, असा त्यांचा कटाक्ष आहे. 'ज्ञानदान' ही मुख्य गोष्ट; नंतर 'अन्नदान आणि वस्त्रदान ! ' वस्त्रदानाची त्यांची पद्धत फार विचारार्ह आहे. म. गांधींच्या जवळहि ते पुष्कळ काळ बसले; परंतु म. गांधींच्या मतांशी ते संपूर्ण सहमत झाले नाहीत. कलकत्ता, अहमदाबाद, मुंबई, कोकानाडा, गया, लाहोर, अमृतसर ठिकाणच्या अनेक काँग्रेसच्या अधिवेशनांना ते उत्साहाने हजर राहिले; पण त्यांचे म्हणणे असे की, जेलमध्ये जाऊन देशसेवापूर्ति करण्यापेक्षा, देशभक्ति करता करतां जे लोक तुरुंगांत गेलेले आहेत, त्यांच्या कुटुंबियांना, अन्न-वस्त्र पैसा, यांची मदत करणें अगर करीत राहणे, हे आपण अधिक महत्त्वाचे समजतों, असें त्यांचं निश्चित मत आहे. त्याचप्रमाणे म. गांधींच्याहि पूर्वीपासून श्रीहरगोविंद दास देशी कपडा वापरत आले आहेत. " व्यापार म्हटला की तेथे दुसन्याचा पैसा मालाच ! तो प्रामाणिक पणे घेणे, हीच मोठी अवघड कला आहे." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwmn एक भाग्यवान् व्यापारी .( २३ ) वस्त्रदान अशा पद्धतीने करण्याचा प्रघात त्यांनी स्वतः पाडला, की, " स्वतःला ३० रुपयांचा एक कोट करावयाचा हेतु असला, तर, गरीबांच्या तळमळीने, त्यांनी ३० रुपयांत, ३ कोट बनवावयाचे व दोन कोट लोकांना देऊन, त्यांपैकी आपण 'एकच' कोट वापरावयाचा !" गृहस्थाश्रम आदर्शवत करणे हीच त्यांची महत्वाकांक्षा बनलेली आहे. स्वतः आदर्श झाल्यावांचून आपले कुटुंब आदर्श होणार नाही, या नियमानेच त्यांनी आपली घरची वागणूक सतत ठेविलेली आहे. मंदिरांत. मशिदीत, चर्चमध्ये जाऊन, आपल्या पापाचा पाढा तेवढा वाचावयाचा आणि चुकलों म्हणून 'परमेश्वराजवळ क्षमा-याचना' करावयाची, ही गोष्ट सत्याला धरून नाही. त्या साठी देवळांतील जें वर्तन,वागणे, जे परमेश्वराजवळ, देवाजवळ नेहमी बोलणे, तेंच देऊळ सोडल्यानंतर, दुकानांत, व बाकीच्या जगाच्या व्यवहारांतहि ठेवावयाचे हाच त्यांचा मोठा आदर्श होय. दुकानांतहि पण सत्यच वागावयाचे, दंभ करावयाचा नाही, यांवर श्रीहरगोविंद दासजी यांचा फार कटाक्ष आहे. संसारी-जीवनांतहि तपश्चर्या करून जगतां येते, हे त्यांनी समाजाला आपल्या कृतीने दाखविलेले आहे. कुटुंबांतील, नात्यांतील. लहान मोठ्या मुलांनी उंची उंची तेलें वापरली, तरी आजपर्यंत श्रीहरगोविंद दासजीनी आपल्या मस्तकास, तेलाच्या थेंबाचा स्पर्शहि होऊ दिलेला नाही! संपूर्ण बारा वर्षे " व्यापायाची नीतिमत्ता कधीहि चांचेगिरीची असता कामा नये." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..२४.2mm एक भाग्यवान् व्यापारी www.m पादत्राणांचा त्यांनी त्याग करून दाखविला. २० वर्षेपर्यंत नित्य सडोचा व्यायाम, कसरत, दंड-बैठका कमीतकमी १०५ काढल्याशिवाय, त्यांनी एकही दिवस जाऊ दिला नाही. बनारसला ३ वर्षे जो त्यांनी अभ्यास केला, त्यावेळी त्यांच्या बरोबर अभ्यासास एक साधुहि असे. त्याचाहि प्रभाव श्रीहरगोविंद दासजींवर झालेला आहे. लहानपणापासून, वयाच्या १६ व्या वर्षापासूनच, तपस्येचा पाठ त्यांनी आपल्या आयुष्यात घेतला. गरम पाणीच प्यावयाचं, तर, तो क्रम ३।३ वर्षे त्यांनी चालवून दाखविलेला आहे. उपवास करावयाचा, देवपूजा करावयाची, मंदिरांत जावयाचे आणि सर्रास झूट-खोटें, बोलत आणि वागत सुटावयाचे, हे त्यांना मुळींच मान्य नाही. जिवंत माणसांचीच चरित्र वाचण्याची त्यांना अतिशय आवड आहे. मृतव्यक्तिची लिहिलेली चरित्रे वाचण्यास ते केव्हांहि राजी नसतात; त्यांचे म्हणणे जिवंत माणसांची चरित्रे वाचलीं, म्हणजेच आपणहि जिवंत राहूं! मृत व्यक्तिचीपश्चात् प्रसिद्ध झालेली चरित्रे ही काल्पनिक, बनावट, फार असतात; म्हणूनच बनावट चरित्रं, कादंबया, रहस्यकथा यांचा श्री हरगोविंद दासजींना तिटकारा आहे ! Self-Help मराठी 'सुख आणि शांति', अद्वैताश्रमाची भगवद्गीता, टागोरचरित्र, सर राधाकृष्णन् यांची चरित्रे, म. गांधींचे ग्रंथ, ब्रह्मचर्यासंबंधीची पुस्तकें, अशा वाचनाचा त्यांना फार नाद आहे. "वू दुकानाला सांभाळ, म्हणजे दुकानहि तुला सांभाळील, प्रतिपाळील!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmmm एक भाग्यवान व्यापारी ...(२५). ___ आईवर त्यांचे अत्यंतिक प्रेम. आईच्या आज्ञेकरतांच त्यांनी आपले लग्न लौकर केलें. आईला श्रम नकोत, विश्रांति पाहिजे, आईला आपण सुख दिले पाहिजे, अशी त्यांची उच्च विचारसरणी होती. आणि त्यासाठी रोज रात्री थोडा वेळ तरी मातेचे पाय चुरल्याशिवाय श्रीहरगोविंद दासजींनी रात्र घालविली नाही. सतत ५ वर्षेपर्यंत आईकडून त्यांनी गोरगरीब साधुसजन, जातीय लोक, यांच्याकरितां तांदूळ गहूं यांचें लयलूट दानधर्मकार्य करून घेतले. सतत, चालतां-बोलतां, व्यवहार करतां, जेव्हा जेव्हां म्हणून थोडाहि वेळ सांपडेल, त्या त्या वेळी, ॐकाराचा जप करावयाचा,-चालू ठेवावयाचा, असा त्यांचा अखंड नियम चालू आहे. मुलुंडला १९२० ते १९३० अखेर अनेक विद्वानांची, महान साधुसजनांची, दर रविवारी बैठक होत असे. ज्योतिषशास्त्र रमलशास्त्र यांचें उत्कृष्ट अध्ययन त्यांनी अशाकरतांच केलें, की, गोरगरीबांना त्यांचा वेळी अवेळी फायदा व्हावा. अतिशय श्रम करून मोफत कुंडल्या तयार करून देणे, शुभ कार्याना मुहूर्त काढून देणे, या गोष्टी एक पैसा न घेतां केवळ कर्तव्य म्हणूनच ते करीत असतात. अनेक मोठमोठ्या पंडितांचे व साधुजनांचे त्यांच्यावर अत्यंतिक प्रेम आहे. __ समाजांतील पडदापद्धति किंवा तोंडावर पदर-बुरखा बायकांनी घेणे ही रूढी मोडली जावी म्हणून, त्यांनी पुष्कळ “ God is making commerce his missionary.” Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..२६.mmm. एक भाग्यवान व्यापारी www.er चळवळ केली. पण सटीच्या बळापढ़ें शेवटी त्यांचे काही चाललें नाहीं. रूढीचा विजय झाला, आणि आपण पूर्ण हरलों, असेंते प्रांजलपणे कबूल करतात.श्रीहरगोविंद दासजींचे म्हणणे, "महावीर, भगवान श्रीकृष्ण अशासारख्यांच्या कडून सुद्धा जिथे सुधारणा घडू शकली नाही, रूढीचा त्यांनाहि पाडाव करतां आला नाही, तेथे माझ्या सारख्या सामान्य मनुष्याला आपल्याकडून सुधारणा घडवून आणणे, अगदी अशक्य! म्हणून आपण सुधारणेचा नाद सोडून दिला!" । जैनधर्माच्या आज्ञेनुसार त्यांनी गिरनार, अबू , शत्रुजय, तारंगा, समेतशिखर, राणकपूर, पावापुरीतीर्थ, राजगृही केसरीया जगडीया इत्यादि पवित्र स्थळांची यात्रा करून आपल्या मनाला पुष्कळ समाधान मिळविले. जंगलांत व पहाडांवर आपण निश्चयाकरतां जातो, एकांतसुखाचा लाभ मिळवून ज्ञान उपलब्ध करून घेण्यासाठी जातो, तशाच ठिकाणी विचारांना योग्य दिशा मिळते, असेंच त्यांना वाटते. संसारकार्यातून निवृत्ति मिळविण्यासाठी त्यांनी आपल्या इस्टेटीचें वुइल पत्र करून त्यांत ३ मुलांना व एका मुलीला समान हक्कांची वांटणी करून दिली आहे. समभाव, त्याग, आसक्तिरहित होणे, काम क्रोध लोभ मोह यांचा पगडा चालू न देण्याचे सामर्थ्य, हीच माझी फार मोठी इस्टेट, ती तुम्हांस देत आहे, असा ते आपल्या मुलांमुलींना उपदेश म्हणून करतात व त्यांना तो आचरणांत आणावयास लावतात. " वधूकरतां ज्याप्रमाणे नवरा किंवा वर शोधायचा, अगदी त्याचप्रमाणे व्यापा-यानेंहि केले पाहिजे; त्यांत माळस मज्ञान उपयोगी नाही." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmmm. एक भाग्यवान व्यापारी ...... त्यांच्या शत्रूने एकदा त्यांच्यावर फिर्याद केली होती; दोघेहि कोर्टात गेले ! कोर्टात गेल्यावर एका बाकावर शत्रू निद्रासुराचे आख्यान लावून बसला. परिस्थिति अशी होती की, झोपेत जर तो शत्रू इकडचा तिकडे वळला असता, तर फरशीवर आपटून त्याचे डोके व सर्वांग सडकले असते; परंतु तो पडत असतांना त्याला सावरून धरून त्यांनी उठविले. तेव्हां ते म्हणाले, "तुला माझ्याबद्दल द्वेष असला आणि तूं कोर्टात आलेला असलास, तरी तुझ्याबद्दल माझ्या अतंःकरणांत थोडाहि द्वेष नाही! तुझा मी अधःपात होऊ देणार नाही. परमेश्वरा? माझे कोणी शत्रु असल्यास माझ्या शत्रूच्या अंतःकरणांत सद्बुद्धि दे!" अशीच ते नित्य प्रार्थना करून झोपतात. 'निद्रा मला गाढपणे मिळाली पाहिजे, आणि झोपतांना जगांत शत्रु ठेवून अगर राखून झोपावयाचें नाही,' असा एक त्यांचा नियम आहे. त्यांच्या या सद्वृत्तिने अनेक हितशत्रूनी त्यांची संपूर्ण माफी मागितलेली आहे. ___ इंद्रियांवर, मनावर, हुकमत कशी गाजवता येईल, त्यांना आपल्या नौकरांच्याप्रमाणे कसे वागवतां येईल, याचाच आपण अहोरात्र व सर्वत्र विचार करीत असतो, असे त्यांचे म्हणणे अहि. इंद्रियें व मन ही आपली नोकर नसून ती सर्व आपल मालक झालेले आहेत, आणि आपण त्यांच्या ताब्यांत आहों, ही वाईट गोष्ट आहे, असे त्यांना वाटते. श्रीहरगोविंद दासजी यांचे हे चरित्र जरी अल्प असले तरी • "भाग्याचिया भडसे (पुराने )। उद्यमाचेनि मिषे । समृद्धिजात ( सर्व प्रकारची संपत्ति). आपैसे । घर रिघे (घरांत येईल)."-श्रीज्ञानेश्वर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (.२. . एक भाग्यवान व्यापारी ....... तें स्फूर्तिदायक आहे. 'जो कुटुंबाचे संरक्षण करतो आणि कुंटुबांत, घरांत, अपराजित नेता होतो, तो देशाचाहि नेता होऊं शकतो.' हे साक्रेतिसचे शब्द बहुमोल वाटतात. श्री हरगोविंद दासांचें साधेसुधे, प्रेमळ, भक्तिमार्गाचे आणि ज्ञानासाठी अहोरात्र तळमळणारें आयुष्य पाहिले, म्हणजे त्यांच्या आयुष्याचा आदर्श आपणांपुढे असावा असे वाटते. "Money is the power. Mony, always money." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mummm एक भाग्यवान व्यापारी .....(२९) -सुवचनें.: " मुलांच्याकरतां से सांठवणे अगर इस्टेट, ठेव, करून ठेवणे त्यांना नापसंत. त्यांना 'ज्ञानदान' करणे, त्यांना शिक्षणसंपत्ति देणे, स्वतांस मिळवून खाता येईल, असे त्यांना तयार करणे, हे आईबापांचें पहिले कर्तव्य. मुले स्वार्जनी होण्यासाठी, त्यांना संस्कारित केले पाहिजे, व त्यासाठी त्यांना प्रथम 'ज्ञानी' केले पाहिजे." ___" कपडा व धान्य यांचे दान करणे मला अधिक आवडतें ! परंतु, त्याहिपेक्षां विद्यादान, ज्ञानदान करणे, मला जास्त आवडतें !" ___ "मुलगा आणि दुकानांतील नोकर यांचा दर्जा, मी, समानसारखाच समजतो. मुलाने दिवाळी केली, तर घांट्यानेहि ( नोकरानेहि ) पण, दिवाळी साजरी केली पाहिजे !" ___" कादंबरी-उपन्यास-यांची मला मुळीच आवड नाहीं !" " लोक, मंदिर मसजिद चर्चमध्ये जातात, आणि बाहेरच्या जगांत, किंवा आचरणांत खोटे बोलतात. ही गोष्ट मला मुळीच पसंत नाहीं ! तसें विरुद्ध आचरण करणे म्हणजे माझ्या मते, ते एक अगदी धार्मिक झूट किंवा धार्मिक असत्याचरणच आहे; तें मला संमत नाहीं !" * "पैशाकरतां दुसऱ्यापुढे नाक घासण्याची पाळी, स्वतःवर कधी येऊ देऊ नका." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .३०.... एक भाग्यवान व्यापारी www.ar ★ सामुद्रिक-शास्त्रदृष्टया, भाग्य-चिकित्सा ★ भाग्यवंत व्यापारी होण्यास, त्या व्यक्तिच्या उजव्या तळ हातांत उत्कृष्ट भाग्य-रेषा, आणि त्या भाग्यरेषेच्या जोडीस उत्कृष्ट रविरेषा, तसेंच उत्कृष्ट बुधेरषा, या असाव्या लागतात. हात व हातांची बोटें चौरस आणि मस्तकोषाहि उत्कृष्ट असेल, तर, त्या तशा व्यक्तीस, त्या व्यक्तिच्या आयुष्यांत 'संपत्ति, कीर्ति, व आरोग्य,' यांचा मोठा लाभ निश्चितपणे होत असतो. श्री हरगोविंददास रामजी यांचे, चित्रांतील दोन्ही हात पहावे. भाग्यरेषेच्या मराठी २ या आवृत्तींत आम्ही त्यांचा डावा हात प्रामुख्याने दिलेला होता. डाव्या हातास महत्त्व देण्याचे [ नवीन ] मुख्य कारण असे आहे की, पुरुषांचे हात पाहतांना, उजवा हातच पाहण्याची पद्धति रूढ आहे. परंतु, आमच्या संशोधनाने आम्हांस असे आढळून आले आहे की, विशेषतः गुजराथी लोकांत, त्यांच्या पिढ्यानपिढया शोधून पाहिल्या, तर, त्यांच्यांत त्यांच्या उजव्या हातास, फार कमी महत्व आहे. कला-कौशल्य, उत्कृष्ट लेखन, बहुतेक सर्व क्रिया, उजव्या हातापेक्षां, डाव्या हातानेच जास्त होत असतात गुर्जर-बंधु-भगिनी सोडून, अन्य प्रांतीय अगर अन्य जातीय व्यक्तिकडून उजव्याच हाताला प्रामुख्याने कार्य करावयास लागून, शेकडा ४५ टक्के किंवा त्याच्याहूनहि कमी क्रिया, फक्त डाव्या हाताच्या चालत असतात. त्यामुळे गुजराथी लोकांत, डाव्या हातातील बहुतेक सर्व रेषा, उजव्या हातांतील रेषापेक्षा अधिक उठावदार व सुरेख, प्रायः आढळून येतात. " गरुडाच्या दृष्टिप्रमाणे खया व्यापायाची दृष्टि पाहिजे ! त्याला व्यापाराचे स्थान, लंकेतील सीतेप्रमाणे दुरूनहि दिसलें पाहिजे !" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmm. एक भाग्यवान व्यापारी ...(३१) श्री हरगोविंददास यांच्या डाव्या हातांत सर्व रेषा व अनेक शुभ-चिन्हें स्पष्ट, उठावदार अशी आहेत. व्यापारी व्यक्तिस बुधभाग्यरेषेची व उत्तम बुध-उंचवट्याच्या सामर्थ्याची अतिशय जरूरी असते. उत्तम यशस्वी व्यापाऱ्याच्या उजव्या हातांत, शुक्रापासून म्हणजे आयुष्यरेषेच्या आधाराने उत्पन्न झालेली व शनिपर्वताकडे जाणारी उत्कृष्ट भाग्यरेषा तरी अनुकूल असावी, अथवा व्यापारांत गुजराती नातीचे वैशिष्टय म्हणून, त्यांच्या डाव्या हातांत महत्वाची बुधरेषा तरी स्पष्ट अस्तित्वांत असावी. श्री हरगोविंद दास यांच्या डाव्या हातांत भाग्यरेषा, रविरेषा, व बुधरेषा, यांचे प्रभाव पहावे. विशेष महत्त्वाची गोष्ट त्या हातांत अशी आहे की, भाग्यरेषेच्या आधाराने बुधपर्वताकडे जाणारी बुध-भाग्य-रेषा अगदी सुस्पष्ट अंकित झालेली आहे. मुख्य भाग्य-रेषा, ग्वाही किंवा खात्री देऊन त्या बुधरेषेस सांगत आहे की, संपत्तिचा पाठिंबा व्यापारास खात्रीने मिळेल. व्यापारांत यश निश्चित. द्रव्याचे सहाय्य त्या बुधपर्वतगामी बुधरेषस संपूर्णपणे आहे, असा सिद्धान्त, ती भाग्यरेषा स्पष्ट दर्शविते आहे. 'Great Success in business' असें त्या, भाग्यरेषेपासून निघणाऱ्या बुधरेषेचे सांगणे आहे. बुध'पर्वत, रविरेषा व बुधभाग्यरेषा यांच्यामुळे, यश मिळविण्यास कारण असणारी शास्त्रोक्तता, शास्त्रीयता, व ज्ञानार्जनाची अत्यंत आवड, हे गुणधर्म, त्या रेषांनी व बुधउंचवट्याने व्यक्त होतात. रविरेषेनें उत्साह, शनिरेषेनें द्रव्य, शोधक बुद्धि, व बुधरेषेर्ने शास्त्रीय विषयांची, आणि ज्ञानसंपादनाची आवड, हे धर्म स्पष्ट होतात. रविरेषा, भाग्यरेषा, बुधरेषा, आणि चतुष्कोणी बोटें अगर हात, तसेच " जोडोनिया धन उत्तम व्यवहारें। उदास विचारें. वेंच करी॥" -श्रीतुकाराममहाराज. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..३२..... एक भाग्यवान व्यापारी ..... मस्तकरेषाहि उत्तम असतां ऐश्वर्य व भाग्य ही मिळालींच पाहिजेत, हा सामुद्रिक शास्त्राचा महत्वाचा सिद्धान्त आहे. त्यांची प्रकृति वयाच्या ६३ व्या वर्षीहि चांगली रहाण्यास, तीच बुध-भाग्य-रेषा कारण आहे. शनि कर्कतत्त्वाचा असल्यामुळे मातेच्या पुण्याईने, समुद्राचे सान्निध्य ठेविल्यानें, नशिब उघडते; तसेंच कर्कतत्व हे जलाप्रमाणेच 'वनस्पतीतत्त्व' असल्यामुळे, वनस्पतिचा [ वनस्पति तुपाचा नव्हे !] सुगंधी-सामानाचा व्यापार, त्यांच्या नशिबी आहे, असेंच स्पष्ट आहे. शनिने कर्कतत्त्वाशी संबंध ठेवून असे निदर्शनास आणून दिलेले आहे की, अशा व्यक्तिचे जीवन प्रारंभी अथवा जन्मतः विहिरी-तलाव एवढेच कदाचित् असले, तरी, 'कर्केचा शनि' असल्यामुळे, श्री शनिदेव, तशा व्यक्तिचे नशिब समुद्रासारखें विशाल करीत असतात, असाच त्यांचा अर्थ होय. डाव्या हातांतील बुधाचे बोट अथवा करांगुलि बोट अगदी प्रामाणिकपणा दाखविणारे, सरळ असे आहे, हेहि अभ्यास करण्यास सहाय्य करणारे आहे. श्री हरगोविंद दास यांच्या उजव्या हातांत : मस्तक-रेषा' अथवा 'बुद्धिरेषा' सरळ आहे; व रविरेषा किंवा यशाच्या रेषांचे प्रवाहहि उत्कृष्ट आहेत.. ____ या दृष्टिने प्रत्येक व्यापाराने आपल्या हातांकडे पाहून व शनिदेव आपले नशिब कोणतें ठरवत आहेत, हे जाणून घेऊन, उद्योगधंदा केला, तर उद्योग महाव्यापक होऊन, व्यापारांत यश, संपत्ति, आणि कीर्ति, यांचे वरदान, शनिकडून त्या व्यापाऱ्यास मिळाल्यावांचून रहाणार नाही, असें श्री हरगोविंद दासजींच्या हस्तरेषा, स्पष्ट दर्शवित आहेत. ___ " जोरु साथ, पैसा गांठ ।" . मापली बायको जशी आपल्याबरोबरच पाहिजे, त्याप्रमाणे पैसाहि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.unn. एक भाग्यवान व्यापारी .......३३.. (सामुद्रिक दृष्टि से भाग्य-चिकित्सा।) ग्यवान व्यापारी होने के लिये व्यक्ति के दाहिने हाथ में 'उत्तम भाग्यरेखा और उसकी जोड की ही अच्छी रविरेखा एवं बुधरेखा होना अनिवार्य है। साथ ही, जिस व्यक्ति की बोटें वृत्ताकार हों और मस्तक रेखा भी बढ़िया हो उसको आजीवन 'सम्पत्ति, कीर्ति व आरोग्य' और विशेष लाभ, निश्चित रूप से मिलता है। श्री हरगोविंद दास रामजी के दोनों चित्रांकित हाथ देखने चाहिये । भाग्यरेखा की दृष्टि से मैंने उनके बायें हाथ को विशेष महत्व दिया है। बायें हाथ को महत्त्व देने का मुख्य कारण यह कि पुरुषों के दर्शन के प्रसंग में दायाँ हाथ ही प्रचलन में आ गया है। किंतु मेरे संशोधनने एक मौलिक तत्व पेश किया है। विशेषकर गुजराती बंधुओं के पीढ़ी दर पीढ़ी हाथ देखने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उनके प्रसंग में दायें हाथ का महत्व बहुत कम है। कला-कौशल, साहित्य-सर्जन आदि कार्यों के लिये दायें के बनिस्बत बायें हाथ की अपनी अधिक विशेषता है-गुजराती बहिनों और भाइयों के विषय में तो यह एक बड़ा सत्य उदाहरन है। दूसरे प्रांतों या जाति के लोगों के विषय में यह बात नहीं है। उनके लिये बायें हाथ को महत्व ४५ प्रतिशत से अधिक नहीं है । इसके अतिरिक्त गुजराती लोगों के बायें हाथ की सारी रेखायें दायें हाथ की रेखाओं की अपेक्षा अधिक स्पष्ट और उठी हुई पाई जाती हैं। "सत्ययुग में 'बलि' श्रेष्ठ ! त्रेतयुग में 'भार्गव ' श्रेष्ठ ! द्वापर में 'धर्मराज' श्रेष्ठ ! " कलियुग में कौन श्रेष?''-'व्यापारी।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४)...... एक भाग्यवान व्यापारी wwimwer __ श्री हरगोविंद दासजी के बायें हाथ की सारी रेखायें और शुभचिन्ह स्पष्ट एवं उठे हुये हैं । व्यापारियों के हाथों में बुधरेखा तथा बुध पर्वत काफ़ी उठा हुआ होना अनिवार्य है। बड़े यशस्वी व्यापारियों के दाहिने हाथ में शुक्र के पास तक आयुरेखा अच्छी होनी चाहिये और शनि पर्वत तक जानेवाली उत्कृष्ट भाग्यरेखा भी बड़ी सहायक होती है। लेकिन गुजराती व्यापारियों के साथ एक विशेषता है-उनके बायें हाथ में बुधरेखा का महत्त्व काफी स्पष्ट रहता है। श्री हरगोविंद दासजी के बायें हाथ में भाग्यरेखा, रविरेखा एवं बुधरेखा के प्रभाव देखना चाहिये । इस प्रसंग में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाग्यरेखा के सहारे बुध पर्वत तक जानेवाली बुध भाग्यरेखा बिल्कुल स्पष्ट हो गई है। यहाँ मुख्य भाग्यरेखा बुधरेखा से मानो यह कहती है कि “ सम्पत्ति की सहायता व्यापारको निश्चित मिलेगी। व्यापार में यश जरूर मिलेगा । द्रव्य की सहायता बुधपर्वतगामी बुधरेखा से अवश्य मिलेगी;-व्यापार में अपूर्व सफलता।" बुधपर्वत, रविरेखा व बुध-भाग्यरेखा इनका फल यह है कि यशस्वी होने के साथ साथ शास्त्रज्ञान प्राप्त करने में बड़ी रुचि होगी। बुधपर्वत के उठे होने एवं इन रेखा ओं से यही सूचित होता है। रविरेखा से उत्साह, शनिरेखा से द्रव्य एवं शोधक बुद्धि और बुधरेखा से शास्त्रीय विषयों एवं ज्ञानार्जन के प्रति प्रेम प्रकट होता है। रविरेखा, भाग्यरेखा और हाथ की बोटें चौकोर है और अगर साथ में उत्कृष्ट मस्तकरेखा भी है तो सामुद्रिक सिद्धान्त का यह नियम है कि उसे ' "उद्योगिन: करालम्बं करोति कमलालया (लक्ष्मीः )।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M wwwim एक भाग्यवान व्यापारी ..(३५) ऐश्वर्य एवं सम्पत्ती मिलनी ही चाहिये । उसका आयुर्बल ६३ वर्ष तक अच्छा रहेगा,-'बुध-भाग्य' रेखा इसका कारण है। 'शनि कर्क-तत्व का' होने से माता के पुण्य-प्रताप से, समुद्र के निकट रहने से, भाग्योदय हो; इसी के साथ कर्कतत्व के कारण 'वनस्पति-तत्व' का बोध मानना चाहिये । वनस्पति-सम्बंधी (वनस्पति घी नहीं!) सुगंध-सामग्री का व्यापार होना स्पष्ट भासता है। शनिका कर्कतत्व के साथ सम्बंध होने से ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे व्यक्तिका जन्म जलाशय के निकट होना चाहिये-दूसरे शब्दो में, कर्क के शनि का ऐसा अभिप्राय है कि ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय शनि-कृपा से सागर की भांति अपार हो गा। बायें हाथ की बुध अंगुली ऐसे प्रमाण के लिये देखनी चाहिये। यदि यह उंगली सरल है तो उससे जरूर सहायता मिलती है। श्री हर गोविंददास के दाये हाथ की मस्तक रेखा अथवा बुद्धिरेखा सरल है और रविरेखा या ' यश की रेखा' का प्रवाह भी बड़ा अच्छा है। __ इस दृष्टिसे प्रत्येक व्यापारी यदि आपना हाथ देख कर और यह मालूम करके कि 'शनिदेव किस दिशा में लाभ देंगे!' व्यापार करेंगे तो उनको व्यापार में बड़ी सफलता मिलेगी। शनिदेव की कृपा से व्यापार बढ़ेगा और यश सम्पत्ति और कीर्ति विकसित होती जावेगी। श्री हर गोविंद दासजी की हस्तरेखा से यह स्पष्ट हो गया है । "अनुद्योगिकरालम्बं करोति कमलाग्रजा (मलक्ष्मी)॥" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामुद्रिकभूषण शंकरराव करंदीकर यांची * लोकप्रिय पुस्तकें * (१) मराठी " भाग्यरेषा" (सचित्र सामुद्रिक द्रव्यग्रंथ ३ री आवृत्ति) किं. १४ रुपये. (२) हिन्दी "भाग्यरेषा" (सचित्र १ ली आवृत्ति ) किं. १२ रुपये. (३) श्रीज्ञानेश्वरी-कथामृत (खंड १, २, ३, ४ ) किं. अनुक्रमे ३, २१, ३, ४ रुपये. (४) एक भाग्यवान् व्यापारी (हिंदी-मराठी ) किं. १० आणे. (५) शनिमाहात्म्य (हिंदी-मराठी; पृष्ठे ११६; पुस्तकाच्या आकारांतील) किं. २.रुपये. (६) "संन्यस्त-मदिरा!" (एका अट्टल दारुबाजाची सत्य ___ आत्मकथा. कादंबरीहून सुंदर.) सचित्र, किं. ३ रुपये. (७) शरामीमांथा सन्यासी ! (गुजरात) 8:3३चाया. (लौकरच प्रकाशित होणारी पुस्तकें) (१) भाग्यरेषा (कानडी आवृत्ति); (२) भाग्यरेषा (गुजराती २ री आवृत्ति); (३) उवशा (२रा आवृत्ति); पत्ताः-शं. दि. करंदीकर, २११ चर्निरोड, ३ रा मजला; रूम नं. २१ (ट्रॅमरस्ता) (ब्राह्मणसभे नजिक) गिरगांव, मुंबई ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो शब्द। * श्री. करन्दीकरजी ने श्रीमान् श्रीहरगोवनदास रामजी ! की जीवन-चरित्र की प्रसिद्धि करके अपना संतोष । 1) मनाया है। फिर भी इतना कहना जरुरी होता है की छोटे से । देहात में जन्म पाकर अपने पुरुषार्थ में लक्ष्मी और सरस्वती । दोनों का साथ मिलाने में श्री हरगोवनदास का दृष्टान्त । बड़ाही प्रशंसनीय है। 'बडे सिद्धान्तो का बोलना और प्रचार करना । कदाचित आसान होता है, परन्तु जीवन में वैसे तत्वों 0 को पचा देना बहुतही कठीन है।" 1. सज्जनो को चाहिये की इस प्रयत्न की कदर करें। और अपने जीवन में ऐसी खुश्बो पैदा करें। दुर्लभजी खेताणी। ( २६-८-५० घाटकोपर)! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ पृष्ठ का (क्रीन साइज़) शनिमहात्म्य धार्मिक ग्रंथ। संकट, अडचन, प्रतिकूल ग्रह हों तो, दो रत्न चित्रोंसे शोभित, प्रासंगिक २४ चित्रोंवाली, हिंदी-मराठी दोनों भाषामें अत्यन्त मधुर शनिमहात्म्य संग्रह कर, हर शनिवार को भक्तिसे पढिये! संपत्ति, दीर्घायु, ऐश्वर्यकी प्राप्ति होगी। श्रीतुलसीरामायणके पश्चात् यही धार्मिक ग्रन्थ है। हात्म्य। (हिन्दी-मराठी) साढे सातीका विवरण, शनिका महत्व, कौन सा रत्न किसके योग्य ? ग्रह शांतिका उपाय आदि विषय इसमें है। आज ही मंगाइये। मूल्य शा), डाक खर्च पॅकिंग पत्ता-पामिस्ट शंकरराव करन्दीकर २११, चर्नी रोड, गिरगांव (ब्राह्मणसभाके पास ) बम्बई नं०४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीग्रन्थ हिन्दी भाषा में पहिला alcobito हिन्दी-भाग ねた हिन्दी भाषा में इस प्रकार की यह पहिली ही सामुद्रिक / -पुस्तक है। अपने हाथ में कौनसी भाग्यरेखा है, इसकी जानकारी इस किताब से होगी। यह पुस्तक सामुद्रिक V शास्त्रपर होते हुए भी, किसी भी उपन्यास से कम मनोरंजक और ज्ञानप्रद नहीं है। अपनी किस्मत का फैसला इस पुस्तक से कर सकते हैं। सारी सृष्टि का भाग्य शनिग्रह के आधीन है। प्रत्येक कर्म और प्रत्येक आदमी का कर्म, शनि देवने निश्चित किया है। यदि शनिदेव अनुकूल हों तो निश्चित भाग्य अपने अनुकूल होगा। भारत के बड़े बड़े धनवानों के हस्तचित्र इस पुस्तक में दिये हैं। पृष्ठ संख्या 500 / बढिया छपाई / मूल्य 10 // रुपये / डाक खर्च अलग। प्राप्तिस्थलः–सामुद्रिकभूषण शंकरराव करंदीकर 211 चर्नि रोड (ब्राह्मण सभा के पास) गिरगांव, बम्बई नं.४ प्रकाशक:-शंकर दिनकर करंदीकर 211 चनिरोड गिरगांव (3 रा मजला) मुंबई 4 मुद्रकः-जयराम दिपाजी देसाई, 'राष्ट्रवैभव प्रेस गिरगांव मुंबई 4 Suratiwww.umaragyanbhandar.com