________________
www.mm. एक भाग्यवान व्यापारी .......... एक ऐसी पद्धति निकली कि यदि इन्हें ३० रुपये का एक कोट बनवाना होता तो गरीबों के ढंग के ये ३० रु. में तीन कोट बनवाते और उसमें से दो कोट दूसरों को देकर, एक स्वयं काम में लाते।
गृहस्थाश्रम आदर्श रूप में बिताना यही इनकी महत्वाकांक्षा बनी हुई है । स्वतः आदर्श बने बिना अपना परिवार आदर्श नहीं हो सकता, इस नियम के अनुसार आपने अपने घर की सारी व्यवस्था की है। मंदिरों. मसजिदों और चर्च में जाकर पापों से बचने के लिये तथा जो भूलें या जो पाप हो चुके उनके लिये परमेश्वरसे क्षमा याचना करना इस बातपर आप विश्वास नहीं करते । इसलिये मंदिरों में जो व्यवहार, जो आचार तथा परमेश्वर एवं देवता के पास जो कुछ कहना होता, वही मंदिर छोड़ने के बाद दुकान और संसार के सारे व्यवहारों में आप अपना आदर्श रखते रहे। दुकान में सत्यका ही आचरण करना; झूठे ढोंग करना नहीं चाहिये यह भी हरगोविन्द दासजी का मत है। इसके खिलाफ आपका बहुत कटाक्ष है।
सांसारिक जीवन में तपश्चर्या करके घरमें रहना, इन्होंने समाज को अपने कर्मों द्वारा दिखा दिया है । परिवार के छोटेछोटे बच्चे तक ऊंचे-ऊंचे तेल काम में लाते हैं, फिर भी श्रीहरगोविन्द दासजी ने अपने सर पर ऐसे तेलों का आजतक स्पर्श नही होने दिया। पूरे बारह वर्ष तक जूते का त्याग करके आपने दिखा दिया। बीस वर्ष की आयु तक हररोज नियमित व्यायाम, कसरत, दंड-बैठक के बिना इन्हों ने एक भी दिन जाने न दिया।
"They throw cats and doges together and call them elephants."
-Andrer Carnegie.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com