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............ एक भाग्यवान व्यापारी www.ar इन्होंने सूक्ष्म अध्ययन किया है । स्वजाति के धर्म मंदिरों में ही जाना चाहिये, ऐसे इनके विचार नहीं हैं, बल्कि दूसरों के धर्म मंदिरों में जाने को भी ये उत्सुक रहते हैं। आज भी आसक्ति निरपेक्ष काम करते रहना यह इनका बड़ा भारी कार्यक्रम है। आलस्य-दोपहर को सोना-आदि ये बातें इन्होंने कभी जानी ही नहीं।
दान-धर्म करना लेकिन अनाज के रूप में, कपड़ों के रूप में करना यही इनका सिद्धांत है। ज्ञानदान यह प्रमुख बात, इसके बाद अन्नदान और वस्त्रदान । वस्त्रदान की परिपाटी इनकी सोचने लायक है। महात्मा गांधीजी के पास भी ये बहुत बैठे, लेकिन उनके मतों से ये पूरी तौर से सहमत नहीं हुये। कलकत्ता, अहमदाबाद, बम्बई, कोकोनाड़ा, गया, लाहौर, अमृतसर इन अनेक जगहों पर कांग्रेस अधिवेशनों में ये बड़े उत्साह से उपस्थित भी रहे। परन्तु देशसेवा की अपेक्षा देशभाव के बारे में इनके मत बिलकुल ही अलग थे। इनका कहना है कि जेलों में जाकर देश सेवाकी पूर्ति करने की अपेक्षा देशभक्ति के लिये जो आदमी जेलों में गये है, उनके परिवार को अनाज, वस्त्र और आर्थिक मदत करना अधिक महत्व का काम है। यही इनका निश्चित मत रहा। इसी तरह से ये गांधीजी के पहले से ही देशी कपडा पहनते आये हैं। वस्त्र दान करने की इन्होंने
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