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........ एक भाग्यवान व्यापारी
बनारस में तीन वर्षतक जो इन्होंने अभ्यास किया, उस समय इनके साथ एक साधु भी अभ्यास कर रहा था। उसका प्रभाव भी हरगोविन्दजी पर पड़ा था। बचपन से उम्रके सोलह सालतक तपस्या का पाठ इन्होंने अपनी जिन्दगी में स्वीकार किया । गरम पानी पीना चाहिये तो यह क्रम ३-३ वर्ष तक चला कर दिखा दिया । उपवास करना, देवपूजा करना, मंदिर जाना और फिर सरासर झूठ बोल कर दूसरों को फसाना यह आपको बिलकुल पसंद नहीं। ___ जीवित व्यक्तियों के चरित्र पढ़ने का आपको बड़ा शौक है। मृत व्यक्तियों के लिखे गये चरित्र आप कभी पढ़ने को तैयार नहीं होते। आपका कहना है कि जीवित मनुष्यों के चरित्र पढ़कर हम स्वयं जीवित बनें। मरे हुये व्यक्ति के लिखे गये चरित्र काल्पनिक और बनावटी होते हैं, इसलिये बनावटी चरित्रों, उपन्यासों तथा रहस्यकथाओं से श्रीहरगोविन्दजी को नफरत है। Self Helf, मगठी सुख
और शांति, अद्वैताश्रमकी भगवद्गीता, टैगोर चरित्र, सर राधाकृष्णन का चरित्र, महात्मा गांधीके ग्रन्थ, ब्रह्मचर्य सम्बधी पुस्तकों के अध्ययन में आपका बहुत अभ्यास है।
माँके ऊपर आपका अत्यंत प्रेम था। माँकी आज्ञा के कारण आपने अपनी शादी जल्दी की। माँको परिश्रम न पडे, उसे विश्रांति चाहिये और माँको मुझे सुख देना चाहिये, इसप्रकार के आपके उच्च विचार थे और इसलिये प्रत्येक रातको थोड़े समय तक माँके पैर बिना दवाये श्रीहरगोविन्दजी “The way to stop financial joy-riding is to arrest
the chauffear, not the automobile.” Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com