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www.mmm. एक भाग्यवान् व्यापारी .......... ने कोई रात बिताई नहीं । लगातार ५ वर्ष तक माँकी और स इन्होंने अपाहिज, गरीब, साधु, सजन लोगों के लिए चावल, गेहूं आदि के दानधर्म का काम किया।
लगातार चलते, बोलते, व्यवहार करते, जहाँ भी थोडासा समय मिला, उस समय में कसरत और जप करने का नियम आप बराबर चालू रखते हैं। मुलुण्डमें सन् १९२० से सन १९३० के आखिर तक लगातार अनेक विद्वानों, महात्माओं, साधु-सजनों की बैठक हर रविवार को होती रहती थी। ज्योतिष शास्त्र. वैद्यकशास्त्र आदिका आपने अच्छा अध्ययन इस उद्देश्य से किया कि अपाहिज गरीबों को उनके समय असमय पर लाभ पहुंचाया जाय। बहुत ही परिश्रम करके मुफ्त कुंडलिया तैयार कर देना शुभकार्यो के मुहूर्त बता देनाये काम बिना एक पाई लिये ही केवल कतव्य समझकर करते रहे। अनेक बड़े बड़े पंडितों और साधुओं का इनपर बहुत अधिक प्रेम है।
समाज में पर्दा प्रथा अथवा मुहूँ के ऊपर यूंघट या बुर्का डालना यह रूढि तोड़ दी जाय, इसके लिये अपने काफी प्रयत्न किया, परन्तु रूढ़ियों की शक्ति के सामने इनका कुछ न चल सका। "रूढ़ियों की विजय हुई और अपनी पूरी तौर से पराजय हुई" ऐसा आप स्पष्टतया स्वीकार करते है। श्री हरगोविन्द दासजी कहते-“भगवान् महावीर श्रीकृष्ण ऐस-ऐसे लोगों की ओरसे जहाँ सुधार नहीं हो सका, रूढियों का विनाश नहीं हो सका, वहाँ मेरे जैसे साधारण मनुष्य की ओर से
_ "व्यापाऱ्याने चांचेगिरीपासून फार सावध
व दूर राहिले पाहिजे." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com