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.......... एक भाग्यवान् व्यापारी wwwmom सुधार होना अत्यंत अशक्य है, इस लिये सुधार के विचार को इन्होने छोड़ दिया।
जैन धर्मकी आज्ञानुसार आपने गिरनार, आबु, शत्रुजय, तारंगा, समेतशिखर, राणकपूर, परावापुरीतीर्थ, राजगृही केसरीया, जगडीय्या इत्यादि पवित्र स्थानों की यात्रा करके अपने मन में काफी समाधान प्राप्त किया। जंगल-पहाडों पर जैसे हम एक निश्चय करके एकांत सुख और ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से जाते है, वैसे ही (यात्रा में) विचारों के लिये योग्य दिशा मिलती है, ऐसा इन्हें लगा। __ सांसारिक कार्यों से निवृत्ति मिलने के लिए आपने अपनी सारी जायदाद का तीन लड़कों और एक लडकी के नाम बराबर हिस्से का वसीयत नामा लिखकर बँटवारा कर दिया है। समभाव, त्याग, सांसारिक भावों से अलग रहने, काम, क्रोध, लोभ, मोह का दाव न चलने देने की सामर्थ्य यही मेरी सम्पत्ति है; यह मैं तुम्हें देना चाहता हूं, इस प्रकार ये अपने बच्चों को उपदेश करते हैं और उसके अनुकूल आचरण उनमें पैदा करते है। ___ इन के एक शत्रु ने एक बार इनपर मुकदमा किया था, दोनों अदालतमें गये। अदालतमें पहुंचने पर इनका विपक्षी एक बेंचपर बैठे-बैठे नींद लेने लगा। परिस्थिति इस प्रकारकी थी कि नींद में यदि वह विपक्षी जरा भी इधर से उधर होता तो पक्की फर्शपर गिरकर उसका सिर फूट जाता, परन्तु उसके गिरतेगिरते इन्होंने उसे पकड़कर और सँभाल " लढाई सुरू झाली की, व्यापा-यांचे नशिब उघडते;
नव्हे त्यांचे उखळ पांढरे होण्याची तेवढीच संधि असते!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com