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www.unn. एक भाग्यवान व्यापारी .......३३..
(सामुद्रिक दृष्टि से भाग्य-चिकित्सा।)
ग्यवान व्यापारी होने के लिये व्यक्ति के दाहिने हाथ में
'उत्तम भाग्यरेखा और उसकी जोड की ही अच्छी रविरेखा एवं बुधरेखा होना अनिवार्य है। साथ ही, जिस व्यक्ति की बोटें वृत्ताकार हों और मस्तक रेखा भी बढ़िया हो उसको आजीवन 'सम्पत्ति, कीर्ति व आरोग्य' और विशेष लाभ, निश्चित रूप से मिलता है। श्री हरगोविंद दास रामजी के दोनों चित्रांकित हाथ देखने चाहिये । भाग्यरेखा की दृष्टि से मैंने उनके बायें हाथ को विशेष महत्व दिया है। बायें हाथ को महत्त्व देने का मुख्य कारण यह कि पुरुषों के दर्शन के प्रसंग में दायाँ हाथ ही प्रचलन में आ गया है। किंतु मेरे संशोधनने एक मौलिक तत्व पेश किया है। विशेषकर गुजराती बंधुओं के पीढ़ी दर पीढ़ी हाथ देखने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उनके प्रसंग में दायें हाथ का महत्व बहुत कम है। कला-कौशल, साहित्य-सर्जन आदि कार्यों के लिये दायें के बनिस्बत बायें हाथ की अपनी अधिक विशेषता है-गुजराती बहिनों और भाइयों के विषय में तो यह एक बड़ा सत्य उदाहरन है। दूसरे प्रांतों या जाति के लोगों के विषय में यह बात नहीं है। उनके लिये बायें हाथ को महत्व ४५ प्रतिशत से अधिक नहीं है । इसके अतिरिक्त गुजराती लोगों के बायें हाथ की सारी रेखायें दायें हाथ की रेखाओं की अपेक्षा अधिक स्पष्ट और उठी हुई पाई जाती हैं। "सत्ययुग में 'बलि' श्रेष्ठ ! त्रेतयुग में 'भार्गव ' श्रेष्ठ ! द्वापर में
'धर्मराज' श्रेष्ठ ! " कलियुग में कौन श्रेष?''-'व्यापारी।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com