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www.. एक भाग्यवान् व्यापारी .....३).
हरगोविन्द दासजी को बचपन में कोई भी गुरु नहीं मिले। इन्हों ने सोच विचार कर एक तत्व को गुरु बनाया वह तत्व था 'ज्ञान' ! 'ज्ञान' यही हरगोविन्द दास का सच्चा गुरु था। इस लिये इन्हों ने अपनी जिन्दगी में ज्ञानदान को बहुत महत्व दिया। ज्ञानप्राप्ति और ज्ञानदान इस की हरगोविन्द दास को सच्ची लगन थी। ___ श्री हरगोविन्द दास प्रख्यात नेता, प्रख्यात पंडित, प्रख्यात पूँजीपति और प्रख्यात सेनानायक नहीं होंगे, लेकिन ये जीवन के संग्राम में सफलता पूर्वक यश पाने वाले एक महान योद्धा अवश्य है। इस में जरा भी संदेह नहीं। दीघायु होना
और अच्छी तरह से जीना यही इनका बचपन से ध्येय था। लोकमत से रहने की अपेक्षा निसर्ग मत से रहो, यही इनका संदेश है । आयु एक सपना, छाया और पानीपर का बुदबुदा या एक तरह का बड़ा भारी खेल भी हुआ, तो भी वह खेल हर व्यक्ति को यशस्वी बनना चाहिये। उत्तीर्ण होने के लिये अंक अवश्य पाने चाहिये, ऐसा इनका कहना है ।
उदगम स्थलसे नदी बिलकल छोटे रूप में निकलती है और आगे जाकर वह महा नदी बनती है, ऐसा नियम आजतक दिखाई देता है। सामान्य नियम हरगोविन्द दासजी की जिन्दगीको लागू नहीं होता और न तो उतनी उपमा या तुलनासे लेखक का समाधान, होता है। श्रीहरगोविन्दजी के पूर्वायुको नदीकी उपमा दी जाय और इन को जिन्दगी की कल्पना की जाय तो लेखक ऐसा प्रकटरूप में कह सकता है " जो पहले से ही सजग रहता है वह सदा
लाम में रहता है।"
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