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...... एक भाग्यवान व्यापारी
woman कि नदीने अपना विशाल रूप कर लिया है, जिससे नदी समुद्र के समान विशाल हो गई है और उसको समुद्र का रूप प्राप्त हो गया है। कर्कतत्व यह समुद्र-तत्व है। श्रीहरगोविन्द दासजी का रवि, कर्क का ही है और शनि कर्क का। अर्थात् इनकी पैदाइश यद्यपि ९-७-१८८८ को हुई फिर भी आज उम्रके ६३ वें सालपर इनका पूर्वायु समुद्र जैसा विशाल हुआ है। इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है। इनका जन्म भावनगर के पास एक लाख रुपये की आमदनी के रियासती गावमें यानी "चोगठ" गांवमें हुआ था। उम्रके सातवें साल पर ही इन के पिता स्वर्ग सिधार चुके थे
और इसके बाद थोड़ी-सी स्कूल की पढ़ाई होते तक इन्हें अपनी उम्रके तेरहवें वर्ष में बम्बई में नौकरी करने के लिए अपनी मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। व्यापार, व्यवहार, दुकानदारी इत्यादि की अपेक्षा इनको ऊँचे दर्जे का ज्ञान संपादन का बड़ा शौक था, इन को अपनी महत्वाकांक्षा जिस प्रकार से सिद्ध हो, उसी प्रकार के जीवनपथ को अपनाने की बड़ी उमेद थी।
ज्ञान संपादन करने के लिये मुझे कोई भी सुयोग्य गुरु मिल जाय, इस प्रकार की इच्छा इन को अपनी उम्र के १५ वें १६ वें वर्ष में पैदा हुई और इस इच्छा के मुताबिक इन्होने बम्बई में माधवबाग के पास लालबाग में साधु लोगों के आश्रय में प्रवेश कर के साधु समागम प्राप्त किया। उस गुरु के उपदेश का श्री हरगोविन्द दासजी पर इतना बड़ा प्रभाव पड़ा कि वे नौकरी छोड़कर धर्म-साधना के लिये बनारस जाने के निश्चय से
"सुमति भूमि थल हृदय अगाधू ।"
"अच्छी बुद्धि पृथ्वी है, हृदय गहरा स्थल है।"-श्री तुलसीदासजी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com