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roomn एक भाग्यवान् व्यापारी ....५). कलकत्ता भाग गये। उस समय इन के साधु होने की आकांक्षा की वजह से इनके बड़े भाई को और माँ को काफी दुख हुआ। सभी जगह टेलीग्रामदे कर और मंदिर खोजकर इनको ढूँढ़नेकी बहुत कोशिश की, फिर भी हरगोविन्द दास अपने ज्ञानपान की लालसा से तनिक भी पीछे नहीं हटे । जैनों का प्रख्यात तीर्थसमेत शिखर पहाड़के जैनमंदिर का दर्शन लेकर हरगोविन्द दास काशी को गये। वहां एक जैन पाठशाला का बोर्ड देखकर उसमें इन्होंने प्रवेश किया। उस पाठशाला में पहुँचते ही वहाँ के प्रमुख महंतने बिलकुल ठीक कहा-"पधारिये! हरगोविन्द दास रामजी!"
काशी में तीन साल रहकर संस्कृत व्याकरण, साहित्य चन्द्रिका छः हजार श्लोकोंका जैन व्याकरण इत्यादिका अभ्यास श्री हरगोविन्द दासजी ने उस पाठशाला में किया। इतनी पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीहरगोविन्द दासजी फिर बम्बई में आये और बड़े भाई के आग्रह की वजह से इन्होंने फिर से १५ रुपयों पर मूलजी जेठा मार्केट में अपने पहले सेठजी के पास कपड़ों की दुकान में नौकरी करनी शुरू की। परन्तु वह इनकी सेवावृत्ति एक महीने से अधिक न टिक सकी। एक बार ऐसा लगा कि हम भी बड़ा भारी व्यापार करें और हज़ारों लाखों रुपये कमायें
और केवल उनके ब्याजसेही ग्रन्थ खरीद कर के ज्ञान इकठ्ठा करें। इसलिये इस कल्पना से पच्चीस हजार पाने के लिये इन्होंने उमराला गांव में गुड-घी की बनिये की दुकान खोली । सुगंधी सामान भी उस दुकान में बैचा जाता था। लगभग वह दुकान आपने दो साल चलाई । परन्तु उसमें फायदा होनेकी अपेक्षा
" तप अधार
सब सृष्टि भवानी।"-श्री तुलसीदासजी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com