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........ एक भाग्यवान् व्यापारी www.r
-:मुद्रालेख:"बच्चों के लिये पैसा इकट्ठा करना या जायदाद बना कर रखना मुझे पसंद नहीं। इनको ज्ञान देना, शिक्षा रूपी संपत्ति देना, स्वयं कमाकर खा सकें इस योग्य इन्हें बनाना; यही माँ-बाप का पहला कर्तव्य है। बच्चों के स्वावलंबी होने के लिए उन्हें सुसंस्कृत करना चाहिये और इसी सबसे पहले उन्हें शिक्षित बनाना चाहिये।"
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___ "कपड़ा और अनाज दान करना मुझे पसंद है। मगर उससे भी अधिक विद्या-दान करना मुझे और अच्छा लगता है।"
____ "खुद का लड़का और दुकान का नौकर इन दोनो का दर्जा मैं समान समझता हूँ। लडके ने दीवाली मनाई तो नौकर को दिवाली क्यों न मनाने दी जाय?"
"उपन्यासका मुझे शौक नहीं।"
"लोग मंदिर मसजिद और चर्च में जाते हैं और बाहर के संसार में तथा व्यवहार में झूठ बोलते है। यह बात मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। ऐसा विरुद्ध आचरण करना यानी मेरी राय में एक 'धार्मिक झूठ' या धार्मिक असत्याचार है। इस से मैं सहमत नहीं।"
" व्यापाऱ्याचे मुख्य कौशल्य हे की, जेथे जी वस्तु विपुल मसेल,
तेथून ती माणून, दुर्मिळ अशा ठिकाणी, ती विकावयाची." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com