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दो शब्द। * श्री. करन्दीकरजी ने श्रीमान् श्रीहरगोवनदास रामजी !
की जीवन-चरित्र की प्रसिद्धि करके अपना संतोष । 1) मनाया है।
फिर भी इतना कहना जरुरी होता है की छोटे से । देहात में जन्म पाकर अपने पुरुषार्थ में लक्ष्मी और सरस्वती । दोनों का साथ मिलाने में श्री हरगोवनदास का दृष्टान्त । बड़ाही प्रशंसनीय है।
'बडे सिद्धान्तो का बोलना और प्रचार करना । कदाचित आसान होता है, परन्तु जीवन में वैसे तत्वों 0 को पचा देना बहुतही कठीन है।" 1. सज्जनो को चाहिये की इस प्रयत्न की कदर करें। और अपने जीवन में ऐसी खुश्बो पैदा करें।
दुर्लभजी खेताणी। ( २६-८-५० घाटकोपर)!
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