Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 218
________________ [२०८] समजवो. बाकी द्रव्य प्रमाणादि ७ अनुयोगद्वार कर्मप्रकृतिप्राभ्रत विगेरे ग्रंथोथी जाणवां. ते ग्रंथ अधुना लभ्य न होवाथी लेशथी पण ते अमे बतादी शकता नथी. परंतु सांप्रत काळमां पण जे कोई सम्यक् प्रकारे ते अनुयोग द्वारना जाणनार होय, तेमणे अवश्य ते द्वार बताववां. कारण के बुद्धिनी विशिष्टता अत्यारे पण तीव्र तीव्रतर क्षयोपशमथी असीम जणाय छे. वळी अमारा लखाणमां कांइ भूलवाळु होय, ते पण तेवा विद्वाने दर करीने समी चीन बतावq. केमके सज्जनो तो परोपकारमा ज रसिक होय छे. ते अनुयोग द्वारमा बंधोदयसत्तास्थान, प्रकृति, स्थिति, अनुभाग ने प्रदेश रूप जाणवा. तेमां प्रकृति बंध संबंधी तो प्राये अहीं कहेल छे. बाकीना त्रण बंध संबंधी तदनुसार कहेवू अहीं बधोदय सत्तास्थाननो संवेध कह्यो छे, तेमां उदयनी साथे उदीरणा पण ग्रहण करी छे एम समजवू. केमके उदय सते उदीरणा अवश्य होय छे. ते विष कहे छे के.गाथा ५६. ज्यां उदय त्यां उदीरणा. अने ज्यां उदीरणा त्यां उदय. ते बन्नेना स्वामि त्वमां भेद नथी. गाथा ५७. तेमां पण अपवाद बतावे छे.-नीचेनी ४१ प्रकृतिमा उदीरणा विना पण उदय होय. १४ ज्ञानावरणीय ५, अंतराय ५, दर्शनावरण ४, तेनी उदीरणा बारमुं गुणस्थाननी आवळिका शेष होय त्यां सुधी पछी मात्र उदय. . ५ शरीर पर्याप्ति पूरी कर्या पछी ज्यां सुधी इंद्रिय पर्याप्ति पूरी न करे. त्यां सुधी पांच निद्रानो उदय होय, पण उदीरणा न होय. पछी बन्ने साथे प्रवर्ते, अने साथे निवते. २ सातासात वेदनीनो उदय अने उदीरणा प्रमत्त गुणस्थान सुधी. पछी मात्र उदय ज. १ प्रथम समकित प्राप्त करतां अंतकरणमा प्रथमनी स्थिति आवलिका शेष रहे त्यारपछी मिथ्यात्वनो उदय ज होय, उदीरणा न होय. १ क्षयोपशम समकितीने क्षायिक समकित उपार्जन करतां मिथ्यात्वमोहनी अने मिश्रमोहनी खपाव्या पछी समकितमोहनीने सर्व अपवर्तनाए अपवर्ती अंतर्मुहूर्त स्थितिनी करे. पछी उदय उदीरणावडे तेने अनुभवतां आवलिका शेष रहे त्यारे उदय ज होय, उदीरणा न होय. अथवा उपशमश्रेणी अंगीकार करनारने अंतरकरण करतां प्रथमनी स्थिति आवलिका शेष रहे त्यारे समकित मोहनीनो उदय ज होय उदीरणा न होय.

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