Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

Previous | Next

Page 223
________________ [२१३] फक्त प्रथम समय करतां बीजे समये विशुदि अनंतगुणी होय. ए प्रमाणे प्रतिसमये अनिवृत्तिकरणना चरम समय सुधी अनंतगुण वृद्धि समजवी. तेना अंतर्मुहूर्तना जेटला समय छे, तेटला ज तेना अध्यवसायनां स्थान जाणवां. अनिवृत्तिकरणनो संख्यातमो भाग गया पछी एक भाग रहे त्यारे अनंतानुबंधीनी नीचेनी स्थितिमांथी आवलिका मात्र स्थितिने मूकीने अंतर्मुहूर्तप्रमाण काळy अंतरकरण करे. पछी अंतरकरण संबंधी दळने उकेरी बध्यमान प्रकृतिमां क्षेपन करे. अने पहेळी स्थितिमाथी उकेरेल आवलिका मात्र दळ वेधमान परप्रकृतिमां स्तिबुक संक्रमे पाणीना परपोटानी जेम संक्रभावे. अंतरकरण कर्या पछी बीजे ज समये उपली अनंतानुबंधीनी स्थितिने उपशमाववा मांडे छे तेमां पण समये समये असंख्यातगुण वधता वधता स्थितिदळने उपशमावे छे. यावत् अंतर्मुहूर्त काळमां सर्व अनंतानुबंधीना दळने उपशमावी नांखे छे. जेम धूळ उपर पाणी छांटी छांटीने घणवडे करी न उडे तेवी करे, तेम कर्मरूप रेणुने परिणामविशुद्धिरूप जळवडे सिंची अनिवृत्तिकरणरूप घणवडे उदय, उदीरणा, निधत्त अने निकाचनाने अयोग्य करी दे, तेनुं नाम उपशमना समजवी. आ प्रमाणे अनंतानुबंधीने उपशमावे अन्य आचार्य कहे छ के-अनंतानुबंधीनी तो विसंयोजना एटले क्षपणा ज थाय. पण उपशमना न थाय. ते आ प्रमाणे-चोथा गुणस्थानवाळा वेदक समकिती चारे गतिमां, पांचमा गुणठाणावाला बे गतिमां. छठा सातमावाळा मनुष्यगतिमां पर्याप्तावस्थामां अनंतानुबंधी खपाववा माटे प्रथम यथाप्रवृत्ति विगैरे त्रण करण करे. करणनी वक्तव्यता उपर प्रमाणे जाणवी. विशेष एटलो के अनिवृत्तिकरणमां अंतरकरण न करे, अने अनंतानुबंधीने उपशमावे नहीं. पण कम्मपयडी ग्रंथमां कह्या प्रमाणे उद्वलना संक्रमणवडे नीचेनी स्थितिमांथी आवलिकामात्र मूकीने बाकीना सर्व अनंतानुबंधीने खपावे, अने आवलिकाने स्तिबुक संक्रमे अन्य वेदाती प्रकृतिमां संक्रभावे. त्यार पछी अंतर्मुहुर्त पूर्ण थये अनिवृत्तिकरणने अंते शेष कर्मना स्थितिघात, रसघात अने गुणश्रेणि न होय, जीव स्वभावस्थ ज होय. आ प्रमाणे अनंतानु बंधीनी विसयोजना जाणवी. हचे दर्शन त्रिकनी उपशमना कहे छे.-तेमां मिथ्यात्व मोहनीनी उपशमना मिथ्या दृष्टिने अने वेदक समकितीने होय. अने मिश्रमोहनी तथा समकित

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312