Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 311
________________ [३०१] ५४ क्षयोपशम समकितनी मार्गणाए ओघे तथा चोथेथी सातमा गुणस्थानक सुधी मनुष्य गति प्रमाणे जाणवू. ५५ क्षायिक समकितनी मार्गणाए ओघे अनंतानुबंधी ४ त्रण मोहनी ३ ए ७ प्र कृति विना १४१ प्रकृतिनी सत्ता होय. तेने चोथा गुणस्थानथी मांडीने चौ. दमा गुणस्थान सुधी मनुष्य गति प्रमाणे जाणवू. ५६ मिश्रनी मार्गणाए ओघे तथा त्रीजे गुणस्थाने जिन नाम विना १४७नी सना होय. ५७ सास्वादन समकित मार्गणाए ओघे तथा बीजे गुणस्थाने जिन नाम विना - १४७ नी सत्ता होय. ५८ मिथ्यात्वनी मार्गणाए ओघे तथा मिथ्यात्वे १४८ नी सत्ता होय. ५९ संज्ञी मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी चौदे गुणस्थान मनुष्यगति प्रमाणे जाणवा. ६० असंज्ञी मार्गणाए ओघे तथा पहेले अने बीजे गुणस्थाने जिननाम विना १४७ नी सत्ता होय. ६१ आहारीनी मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी तेर गुणस्थानक सुधी मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ६२ अनाहारीनी मागणाए ओघे तथा पहेले, बीजे, चोथे, तेरमे अने चौदमे ए पांच गुणस्थाने मनुष्यगतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू.

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