Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal

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Page 304
________________ [२९४] अप्रमत्त । अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसंपगय उपशांतमोह क्षीणमोह सयोगी केवळी अयोगी केवळी न. १४१ उ.१४२।१३९ऊ.१४२११३९/उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५४१३८क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ क्ष. ८५ ० क्ष.८५।१३।१२ ० ० ० द. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ स.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३ इ. १४१ उ.१४२।१३९/उ.१४२११३९ १.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८१०३ 3. १४१० श्र.१४५।१३८ उ.१४२११३९. क्ष. १०२ उ.१४२११३९क्ष. १०११९९क्ष.८५ ००००००० . क्ष:८५।१३।१२ . ००० . ऊ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९क्ष. १.११९९० क्ष.१४-११३०क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९/उ.१४२।१३९उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९. क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ . क्ष.८५।१३।१२ उ. १४१ क्ष.१४५।१३८ ऊ. १४१ क्ष.१४५।१३८ ऊ. १४१ .१४२११३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९क्ष. ८५ . क्ष.1४५११३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९क्ष. ८५ क्ष ८५।१३।१२ क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.1४२११३८ उ.१४२११३९ उ.१४२११३०ऊ.१४२११३९० । क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२

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